Ab kya hi jawab doon apko nahi de sakta jawabMooch nehi toh mard nehi
Ab kya hi jawab doon apko nahi de sakta jawabMooch nehi toh mard nehi
Mooch se hi mard hote hai kyaAb kya hi jawab doon apko nahi de sakta jawab
Meri ek raaj batayu apko hame mucho wala mard bhot pasand hai..like a gentleman..Ab kya hi jawab doon apko nahi de sakta jawab
Nehi baba ! sabki apni apni pasand hoti hai..Mooch se hi mard hote hai kya
Bahut achi bat hai moocho wala dhund lo aese na dhundna moocho se sirf mard ho or baki taye taye fis ho kahin smbhal ke dhundnaMeri ek raaj batayu apko hame mucho wala mard bhot pasand hai..like a gentleman..
Han ab bat boli apne sahiNehi baba ! sabki apni apni pasand hoti hai..
Meri kehne ki matlab woh nehi thi, are hame toh koyi bhi chal jayegi , mooch hogi toh woh mere liye bonus samjhungi..Bahut achi bat hai moocho wala dhund lo aese na dhundna moocho se sirf mard ho or baki taye taye fis ho kahin smbhal ke dhundna
Han ab bat boli apne sahi
Isme bhi bonusMeri kehne ki matlab woh nehi thi, are hame toh koyi bhi chal jayegi , mooch hogi toh woh mere liye bonus samjhungi..
Mooch na ho rakhwa dena mooch badi badi gabbar singh ki tarahMeri kehne ki matlab woh nehi thi, are hame toh koyi bhi chal jayegi , mooch hogi toh woh mere liye bonus samjhungi..
Nehi hame Gabbar singh nehi chaiye meh toh apni pasand ke hisab se style bata dungi unko..Mooch na ho rakhwa dena mooch badi badi gabbar singh ki tarah
Ye sahi hai isme mooch nahi haiChup ki jiye ap kuch bhi View attachment 250288
Kainchi leke ap khud hi style bna dijiyega unkiNehi hame Gabbar singh nehi chaiye meh toh apni pasand ke hisab se style bata dungi unko..
कुछ खोना भी चाहता था
कुछ पाने के लिए !!!
पीछे रहना भी चाहता था
तुम्हारे साथ चलते रहने के लिए!!!
रुकना भी चाहता था
तुम्हें साथ चलते देखने के लिए !!!
कुछ खोना भी चाहता था
कुछ पाने के लिए !!!
गिरना भी चाहता था
कि तुम संभाल सको !!!
रातों को तुम्हारी यादों में
जागना भी चाहता था !!!
तुम्हारे काबिल बनने के लिए
इस जमाने से लड़ना भी चाहता था !!!
कुछ खोना भी चाहता था
कुछ पाने के लिए !!!
कुछ खोना भी चाहता था
कुछ पाने के लिए !!!
पीछे रहना भी चाहता था
तुम्हारे साथ चलते रहने के लिए!!!
रुकना भी चाहता था
तुम्हें साथ चलते देखने के लिए !!!
कुछ खोना भी चाहता था
कुछ पाने के लिए !!!
गिरना भी चाहता था
कि तुम संभाल सको !!!
रातों को तुम्हारी यादों में
जागना भी चाहता था !!!
तुम्हारे काबिल बनने के लिए
इस जमाने से लड़ना भी चाहता था !!!
कुछ खोना भी चाहता था
कुछ पाने के लिए !!!
कुछ खोना भी चाहता था
कुछ पाने के लिए !!!
पीछे रहना भी चाहता था
तुम्हारे साथ चलते रहने के लिए!!!
रुकना भी चाहता था
तुम्हें साथ चलते देखने के लिए !!!
कुछ खोना भी चाहता था
कुछ पाने के लिए !!!
गिरना भी चाहता था
कि तुम संभाल सको !!!
रातों को तुम्हारी यादों में
जागना भी चाहता था !!!
तुम्हारे काबिल बनने के लिए
इस जमाने से लड़ना भी चाहता था !!!
कुछ खोना भी चाहता था
कुछ पाने के लिए !!!
वह तोड़ती पत्थर। सजा सहज सितार, सुनी मैंने वह नहीं जो थी सुनी झंकार। "मैं तोड़ती पत्थरवह तोड़ती पत्थर;
देखा उसे मैंने इलाहाबाद के पथ पर—
वह तोड़ती पत्थर।
कोई न छायादार
पेड़ वह जिसके तले बैठी हुई स्वीकार;
श्याम तन, भर बँधा यौवन,
नत नयन प्रिय, कर्म-रत मन,
गुरु हथौड़ा हाथ,
करती बार-बार प्रहार :—
सामने तरु-मालिका अट्टालिका, प्राकार।
चढ़ रही थी धूप;
गर्मियों के दिन
दिवा का तमतमाता रूप;
उठी झुलसाती हुई लू,
रुई ज्यों जलती हुई भू,
गर्द चिनगीं छा गईं,
प्राय: हुई दुपहर :—
वह तोड़ती पत्थर।
देखते देखा मुझे तो एक बार
उस भवन की ओर देखा, छिन्नतार;
देखकर कोई नहीं,
देखा मुझे उस दृष्टि से
जो मार खा रोई नहीं,
सजा सहज सितार,
सुनी मैंने वह नहीं जो थी सुनी झंकार
एक क्षण के बाद वह काँपी सुघर,
ढुलक माथे से गिरे सीकर,
लीन होते कर्म में फिर ज्यों कहा—
‘मैं तोड़ती पत्थर।’
पानी की एक बूँद, जिन्दा रखती है, हम सबकी उम्मीद को...
मैं उस दिन
नदी के किनारे पर गया
तो क्या जाने
पानी को क्या सूझी
पानी ने मुझे
बूँद-बूँद पी लिया
और मैं
पिया जाकर पानी से
उसकी तरंगों में
नाचता रहा
रात-भर
लहरों के साथ-साथ
बाँचता रहा!