मैं तुम्हे
कभी गुलाब नही दूँगा....
किताबों में पड़े गुलाब सूख जाते हैं.....
और जैसे जैसे वो सूखते हैं....
सूखता जाता है आपस का प्रेम.....
मुझे गुलाबों के सूखने से डर लगता है.....
हाँ कभी मौका मिला
तो मैं जरूर दूँगा तुम्हे मोर का एक पंख
तुम उसे संभाल के रख लेना
प्रेम की किताब के एकदम बीचो बीच....
मोर के पंख कभी सूखते नहीं....
बचपन में सुना था
किताबों में मोर का पंख रखने से.....अच्छी रहती याददाश्त....
और यूँ भी....भूलने की आदत बहुत है तुम्हे....
कभी गुलाब नही दूँगा....
किताबों में पड़े गुलाब सूख जाते हैं.....
और जैसे जैसे वो सूखते हैं....
सूखता जाता है आपस का प्रेम.....
मुझे गुलाबों के सूखने से डर लगता है.....
हाँ कभी मौका मिला
तो मैं जरूर दूँगा तुम्हे मोर का एक पंख
तुम उसे संभाल के रख लेना
प्रेम की किताब के एकदम बीचो बीच....
मोर के पंख कभी सूखते नहीं....
बचपन में सुना था
किताबों में मोर का पंख रखने से.....अच्छी रहती याददाश्त....
और यूँ भी....भूलने की आदत बहुत है तुम्हे....
श्वेतराग
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