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Deleted member 14812
Guest
well Baat toh sahi hai... dekha jaye tohToh Insaan kya hai phir ?
well Baat toh sahi hai... dekha jaye tohToh Insaan kya hai phir ?
well Baat toh sahi hai... dekha jaye toh
Bahut khubकदम तो बढे मेरे
पर राह थी तुम्हारी
ये रस्म निभाने में
मेरी उम्र गई सारी
कहते हो तुम
मैं सहमी सी लगू प्यारी
तुम राम की मर्यादा
मैं सीता बेचारी
मैं भरी सभा की पांचाली
तुम दुःशासन,
तुम ही चक्रधारी
तुम सुख को रहे थामे
मैं आँसू की अधिकारी
तुम धूप से हो प्रखरित
मैं यामिनी अधिकारी
तुम बेसब्री का उथलापन
मै भूमि अतिभारी
तुम रिश्तों के सोपान
मैं सहती रही दुश्वारी
तुम दर्प से मुझे जीते
मैं जीत कर भी हारी
नहीं है ये नहीं है सच
तुम तोड़ दो खुमारी
तुम सीमित हो मुझतक
पर असीमित है नारी।
कदम तो बढे मेरे
पर राह थी तुम्हारी
ये रस्म निभाने में
मेरी उम्र गई सारी
कहते हो तुम
मैं सहमी सी लगू प्यारी
तुम राम की मर्यादा
मैं सीता बेचारी
मैं भरी सभा की पांचाली
तुम दुःशासन,
तुम ही चक्रधारी
तुम सुख को रहे थामे
मैं आँसू की अधिकारी
तुम धूप से हो प्रखरित
मैं यामिनी अधिकारी
तुम बेसब्री का उथलापन
मै भूमि अतिभारी
तुम रिश्तों के सोपान
मैं सहती रही दुश्वारी
तुम दर्प से मुझे जीते
मैं जीत कर भी हारी
नहीं है ये नहीं है सच
तुम तोड़ दो खुमारी
तुम सीमित हो मुझतक
पर असीमित है नारी।
Kya bat hai bahut khoobकदम तो बढे मेरे
पर राह थी तुम्हारी
ये रस्म निभाने में
मेरी उम्र गई सारी
कहते हो तुम
मैं सहमी सी लगू प्यारी
तुम राम की मर्यादा
मैं सीता बेचारी
मैं भरी सभा की पांचाली
तुम दुःशासन,
तुम ही चक्रधारी
तुम सुख को रहे थामे
मैं आँसू की अधिकारी
तुम धूप से हो प्रखरित
मैं यामिनी अधिकारी
तुम बेसब्री का उथलापन
मै भूमि अतिभारी
तुम रिश्तों के सोपान
मैं सहती रही दुश्वारी
तुम दर्प से मुझे जीते
मैं जीत कर भी हारी
नहीं है ये नहीं है सच
तुम तोड़ दो खुमारी
तुम सीमित हो मुझतक
पर असीमित है नारी।
असीमित है नारीकदम तो बढे मेरे
पर राह थी तुम्हारी
ये रस्म निभाने में
मेरी उम्र गई सारी
कहते हो तुम
मैं सहमी सी लगू प्यारी
तुम राम की मर्यादा
मैं सीता बेचारी
मैं भरी सभा की पांचाली
तुम दुःशासन,
तुम ही चक्रधारी
तुम सुख को रहे थामे
मैं आँसू की अधिकारी
तुम धूप से हो प्रखरित
मैं यामिनी अधिकारी
तुम बेसब्री का उथलापन
मै भूमि अतिभारी
तुम रिश्तों के सोपान
मैं सहती रही दुश्वारी
तुम दर्प से मुझे जीते
मैं जीत कर भी हारी
नहीं है ये नहीं है सच
तुम तोड़ दो खुमारी
तुम सीमित हो मुझतक
पर असीमित है नारी।
कदम तो बढे मेरे
पर राह थी तुम्हारी
ये रस्म निभाने में
मेरी उम्र गई सारी
कहते हो तुम
मैं सहमी सी लगू प्यारी
तुम राम की मर्यादा
मैं सीता बेचारी
मैं भरी सभा की पांचाली
तुम दुःशासन,
तुम ही चक्रधारी
तुम सुख को रहे थामे
मैं आँसू की अधिकारी
तुम धूप से हो प्रखरित
मैं यामिनी अधिकारी
तुम बेसब्री का उथलापन
मै भूमि अतिभारी
तुम रिश्तों के सोपान
मैं सहती रही दुश्वारी
तुम दर्प से मुझे जीते
मैं जीत कर भी हारी
नहीं है ये नहीं है सच
तुम तोड़ दो खुमारी
तुम सीमित हो मुझतक
पर असीमित है नारी।