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असीमित है नारी

well Baat toh sahi hai... dekha jaye toh

मैंने आपसे इसलिए पूछा क्योंकि मेरी नज़र में आपका टाइटल गलत है। इस दुनिया को संतुलित तरीके से बनाया गया है, और जहां संतुलन होता है, वहां असीमितता नहीं हो सकती।

‘नारा’ और ‘नारी’ दोनों एक ही हैं क्योंकि वे दोनों इंसान हैं।

अब आपकी नजर शायद उन्हें सही से देख नहीं पा रही, इसलिए आप ‘नारी’ को असीमित मान रही हैं।


नारा की आवाज़ में है ताकत की बात,
नारी की हर धड़कन में छुपी है अनंत सौगात।
दोनों हैं समान, पर भिन्न रंग की बात,
एक धरा पर, एक आकाश की सौगात।
 
कदम तो बढे मेरे

पर राह थी तुम्हारी

ये रस्म निभाने में

मेरी उम्र गई सारी



कहते हो तुम

मैं सहमी सी लगू प्यारी

तुम राम की मर्यादा

मैं सीता बेचारी



मैं भरी सभा की पांचाली

तुम दुःशासन,

तुम ही चक्रधारी

तुम सुख को रहे थामे

मैं आँसू की अधिकारी



तुम धूप से हो प्रखरित

मैं यामिनी अधिकारी

तुम बेसब्री का उथलापन

मै भूमि अतिभारी



तुम रिश्तों के सोपान

मैं सहती रही दुश्वारी

तुम दर्प से मुझे जीते

मैं जीत कर भी हारी



नहीं है ये नहीं है सच

तुम तोड़ दो खुमारी

तुम सीमित हो मुझतक

पर असीमित है नारी।
Bahut khub
 
कदम तो बढे मेरे

पर राह थी तुम्हारी

ये रस्म निभाने में

मेरी उम्र गई सारी



कहते हो तुम

मैं सहमी सी लगू प्यारी

तुम राम की मर्यादा

मैं सीता बेचारी



मैं भरी सभा की पांचाली

तुम दुःशासन,

तुम ही चक्रधारी

तुम सुख को रहे थामे

मैं आँसू की अधिकारी



तुम धूप से हो प्रखरित

मैं यामिनी अधिकारी

तुम बेसब्री का उथलापन

मै भूमि अतिभारी



तुम रिश्तों के सोपान

मैं सहती रही दुश्वारी

तुम दर्प से मुझे जीते

मैं जीत कर भी हारी



नहीं है ये नहीं है सच

तुम तोड़ दो खुमारी

तुम सीमित हो मुझतक

पर असीमित है नारी।
IMG_20240729_082624.jpg
 
कदम तो बढे मेरे

पर राह थी तुम्हारी

ये रस्म निभाने में

मेरी उम्र गई सारी



कहते हो तुम

मैं सहमी सी लगू प्यारी

तुम राम की मर्यादा

मैं सीता बेचारी



मैं भरी सभा की पांचाली

तुम दुःशासन,

तुम ही चक्रधारी

तुम सुख को रहे थामे

मैं आँसू की अधिकारी



तुम धूप से हो प्रखरित

मैं यामिनी अधिकारी

तुम बेसब्री का उथलापन

मै भूमि अतिभारी



तुम रिश्तों के सोपान

मैं सहती रही दुश्वारी

तुम दर्प से मुझे जीते

मैं जीत कर भी हारी



नहीं है ये नहीं है सच

तुम तोड़ दो खुमारी

तुम सीमित हो मुझतक

पर असीमित है नारी।
Kya bat hai bahut khoob
 
कदम तो बढे मेरे

पर राह थी तुम्हारी

ये रस्म निभाने में

मेरी उम्र गई सारी



कहते हो तुम

मैं सहमी सी लगू प्यारी

तुम राम की मर्यादा

मैं सीता बेचारी



मैं भरी सभा की पांचाली

तुम दुःशासन,

तुम ही चक्रधारी

तुम सुख को रहे थामे

मैं आँसू की अधिकारी



तुम धूप से हो प्रखरित

मैं यामिनी अधिकारी

तुम बेसब्री का उथलापन

मै भूमि अतिभारी



तुम रिश्तों के सोपान

मैं सहती रही दुश्वारी

तुम दर्प से मुझे जीते

मैं जीत कर भी हारी



नहीं है ये नहीं है सच

तुम तोड़ दो खुमारी

तुम सीमित हो मुझतक

पर असीमित है नारी।
असीमित है नारी
पुरुषों पे भी भारी
कदम रोका क्यों खुद
कैसी है लाचारी।

जो बीत गया बुरा
उसकी दुहाई क्यों
सीमित कर रखा खुद को

करो अब भरपाई तुम।
 
Lovely ✨✨
कदम तो बढे मेरे

पर राह थी तुम्हारी

ये रस्म निभाने में

मेरी उम्र गई सारी



कहते हो तुम

मैं सहमी सी लगू प्यारी

तुम राम की मर्यादा

मैं सीता बेचारी



मैं भरी सभा की पांचाली

तुम दुःशासन,

तुम ही चक्रधारी

तुम सुख को रहे थामे

मैं आँसू की अधिकारी



तुम धूप से हो प्रखरित

मैं यामिनी अधिकारी

तुम बेसब्री का उथलापन

मै भूमि अतिभारी



तुम रिश्तों के सोपान

मैं सहती रही दुश्वारी

तुम दर्प से मुझे जीते

मैं जीत कर भी हारी



नहीं है ये नहीं है सच

तुम तोड़ दो खुमारी

तुम सीमित हो मुझतक

पर असीमित है नारी।
 
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