कदम तो बढे मेरे
पर राह थी तुम्हारी
ये रस्म निभाने में
मेरी उम्र गई सारी
कहते हो तुम
मैं सहमी सी लगू प्यारी
तुम राम की मर्यादा
मैं सीता बेचारी
मैं भरी सभा की पांचाली
तुम दुःशासन,
तुम ही चक्रधारी
तुम सुख को रहे थामे
मैं आँसू की अधिकारी
तुम धूप से हो प्रखरित
मैं यामिनी अधिकारी
तुम बेसब्री का उथलापन
मै भूमि अतिभारी
तुम रिश्तों के सोपान
मैं सहती रही दुश्वारी
तुम दर्प से मुझे जीते
मैं जीत कर भी हारी
नहीं है ये नहीं है सच
तुम तोड़ दो खुमारी
तुम सीमित हो मुझतक
पर असीमित है नारी।
पर राह थी तुम्हारी
ये रस्म निभाने में
मेरी उम्र गई सारी
कहते हो तुम
मैं सहमी सी लगू प्यारी
तुम राम की मर्यादा
मैं सीता बेचारी
मैं भरी सभा की पांचाली
तुम दुःशासन,
तुम ही चक्रधारी
तुम सुख को रहे थामे
मैं आँसू की अधिकारी
तुम धूप से हो प्रखरित
मैं यामिनी अधिकारी
तुम बेसब्री का उथलापन
मै भूमि अतिभारी
तुम रिश्तों के सोपान
मैं सहती रही दुश्वारी
तुम दर्प से मुझे जीते
मैं जीत कर भी हारी
नहीं है ये नहीं है सच
तुम तोड़ दो खुमारी
तुम सीमित हो मुझतक
पर असीमित है नारी।
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