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असीमित है नारी

Black Butterfly

Demi Sexual
VIP
कदम तो बढे मेरे

पर राह थी तुम्हारी

ये रस्म निभाने में


मेरी उम्र गई सारी



कहते हो तुम


मैं सहमी सी लगू प्यारी

तुम राम की मर्यादा


मैं सीता बेचारी



मैं भरी सभा की पांचाली

तुम दुःशासन,

तुम ही चक्रधारी

तुम सुख को रहे थामे

मैं आँसू की अधिकारी



तुम धूप से हो प्रखरित


मैं यामिनी अधिकारी

तुम बेसब्री का उथलापन

मै भूमि अतिभारी



तुम रिश्तों के सोपान


मैं सहती रही दुश्वारी

तुम दर्प से मुझे जीते

मैं जीत कर भी हारी



नहीं है ये नहीं है सच

तुम तोड़ दो खुमारी

तुम सीमित हो मुझतक

पर असीमित है नारी।
 
Last edited:
कदम तो बढे मेरे
पर राह थी तुम्हारी
ये रस्म निभाने में
मेरी उम्र गई सारी

कहते हो तुम
मैं सहमी सी लगू प्यारी
तुम राम की मर्यादा
मैं सीता बेचारी

मैं भरी सभा की पांचाली
तुम दुःशासन,
तुम ही चक्रधारी
तुम सुख को रहे थामे
मैं आँसू की अधिकारी

तुम धूप से हो प्रखरित
मैं यामिनी अधिकारी
तुम बेसब्री का उथलापन
मै भूमि अतिभारी

तुम रिश्तों के सोपान
मैं सहती रही दुश्वारी
तुम दर्प से मुझे जीते
मैं जीत कर भी हारी

नहीं है ये नहीं है सच
तुम तोड़ दो खुमारी
तुम सीमित हो मुझतक
पर असीमित है नारी।
सृष्टि नहीं नारी बिना, यही जगत आधार।
नारी के हर रूप की, महिमा बड़ी अपार।।

जिस घर में होता नहीं ,नारी का सम्मान।
देवी पूजन व्यर्थ है, व्यर्थ वहाँ सब दान।।

लक्ष्मी, दुर्गा, शारदा, सब नारी के रूप।

देवी सी गरिमा मिले, नारी जन्म अनूप।।

कठिन परिस्थिति में सदा, लेती खुद को ढाल।
नारी इक बहती नदी, जीवन करे निहाल।।
 
नारी, नारी का नहीं, देती आयी साथ।
शायद उसका इसलिए, रिक्त रहा है हाथ।।

खुशियों का गेरू लगा, रखती घर को लीप।
नारी रंग गुलाल है, दीवाली का दीप।।

खुशियों को रखती सँजो, ज्यों मोती को सीप।
नारी बंदनवार है, नारी संध्या दीप।।
 
तार-तार होती रही, फिर भी बनी सितार।
नारी ने हर पीर सह, बाँटा केवल प्यार।।

पायल ही बेड़ी बनी, कैसी है तकदीर।
नारी का क़िरदार बस, फ्रेम जड़ी तस्वीर।।

नारी को अबला समझ, मत कर भारी भूल।
नारी इस संसार में, जीवन का है मूल।।
 
गुड़िया, कंगन, मेंहदी, नेह भरी बौछार।
बेटी खुशियों से करे, घर आँगन गुलज़ार।।

बेटी को नित कोख में, मार रहा संसार।
ऐसे में कैसे मने, राखी का त्योहार।।

बेटी हरसिंगार है, बेटी लाल गुलाब।

बेटी से हैं महकते, दो-दो घर के ख़्वाब।।
 
तितली सी उन्मुक्त है, बेटी की परवाज़।
किंतु कहाँ वह जानती, उपवन के सब राज।।

है सावित्री सी सती, बनती पति की ढाल।
पतिव्रत नारी सामने, घुटने टेके काल।।

नारी मूरत त्याग की, प्रेम दया की खान।
करना जीवन में सदा, नारी का सम्मान।।
 
सूना है नारी बिना, सारा यह संसार।
वह मकान को घर करे, देकर अपना प्यार।।

नारी तू अबला नहीं ,स्वयं शक्ति पहचान।
अपने हक को लड़ स्वयं, तब होगा उत्थान।।

क्यूं नारी लाचार है, लुटती क्यूं है लाज।

क्या पुरुषत्व विहीन ही, हुई धरा ये आज।।
 
सूना है नारी बिना, सारा यह संसार।
वह मकान को घर करे, देकर अपना प्यार।।

नारी तू अबला नहीं ,स्वयं शक्ति पहचान।
अपने हक को लड़ स्वयं, तब होगा उत्थान।।

क्यूं नारी लाचार है, लुटती क्यूं है लाज।

क्या पुरुषत्व विहीन ही, हुई धरा ये आज।।
Nari k upar to pura book likh di:Cwl:
Kash real me bhi sab respect karte
 
कदम तो बढे मेरे

पर राह थी तुम्हारी

ये रस्म निभाने में

मेरी उम्र गई सारी



कहते हो तुम

मैं सहमी सी लगू प्यारी

तुम राम की मर्यादा

मैं सीता बेचारी



मैं भरी सभा की पांचाली

तुम दुःशासन,

तुम ही चक्रधारी

तुम सुख को रहे थामे

मैं आँसू की अधिकारी



तुम धूप से हो प्रखरित

मैं यामिनी अधिकारी

तुम बेसब्री का उथलापन

मै भूमि अतिभारी



तुम रिश्तों के सोपान

मैं सहती रही दुश्वारी

तुम दर्प से मुझे जीते

मैं जीत कर भी हारी



नहीं है ये नहीं है सच

तुम तोड़ दो खुमारी

तुम सीमित हो मुझतक

पर असीमित है नारी।
"नारी" एक शब्द है जो एक सोच को दर्शाता है। सोच असीमित कैसे हो सकती है?
 
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