गहरी नींद से अचानक नींद टूट गईं, आँख खुलते ही हिचकिया आने लगी,ऐसा लगा कोई याद कर रहा हो, सन्नाटा था चारों तरफ अधेरा ही अंधेरा , नजरें खिड़की पे पड़ा तो देखि चारो तरफ खोर छाया हुवा था,, फिर नजरें मोबाइल पे पड़ी झट से ऑन लाइन हो गईं, इधर भी सन्नाटाका मौसम छाया था,, पर हिचकिया रुक ही नहीं रही थी,मैं हिचकिया को बोलने लगी ऐसे बेवज बेमौसम की तरह बरसना छोड़दो तुम, नहीं तों तेरे कहावत से भी भरोसा उठ जायेगा सायद उसको इसबात को बूरा लगा होगा वो चुप हो गया,
फिर सोंचमे डुब्ने लगी,बेवजह आज तक कुछ हुवा भी नहीं,, सायद इस हिचकीयो का भी कुछ कहानी होंगी ,,इसका भी तों कुछ वजूद होगा,,,,, इन हिचकियोने भी मेरे जैसे किसी की यादे समेट के रखा होगा उसकी सोच मे डब्ने क्या लगिथि अचानक आँखे उन म्यासेज पे पढ़ी ,
सारा शब्द बिखरा पढ़ा था, जैसे शब्दो ने शब्दोसे युद्ध छेड़ा हो,
कही शब्दो को निमोठा था,कही शब्दोने शब्दो की तिरो से घायल किया था, तों कही शब्द बेहोसी मे पडा था,, कितने शब्द ने शब्दो की गला रिटदी गईं थी, किसी की सपनो का, किसी की तामनाओ का और किसी की बिस्वास का लघु बहराहथा उन पन्नोंमे
"उस तरवार का धार उतना तेज ना था जितना शब्दो का होगा
बरस रही शब्दो की तीर थोड़ा खाता उन लब्जो का भी होगा"
घायल शब्द दर्द के मारे छटपटा रहेथे, कितने शब्दो आख़री पढ़ाव मे गिरे पड़े थे उन सफ़ेद पन्नों मे,,
कभी उन पन्नों को सजाने वाले शब्द आज उन्ही शब्दो की लघुसे उन पन्नों पर दाग़ लगा रहथा
कितनी शब्दो बेहोसी मे भी सवाल कर रहे थे आखिर इस युद्ध से मिला क्या बिजय हुवा कौन,, मेरी इन कानो मे बस यही आवाज़ गुन्जरहेथी और वो आवाज़ धीमे धीमे होने लगे, कब ये पालके बंद हुई पता भी ना चला, शुभ जब जगी वही सवाल मेरी मनसपटल मे घूम रहथा, और सवाल कर रहा था उन युद्ध से आखिर मिला क्या,,,,,????
फिर सोंचमे डुब्ने लगी,बेवजह आज तक कुछ हुवा भी नहीं,, सायद इस हिचकीयो का भी कुछ कहानी होंगी ,,इसका भी तों कुछ वजूद होगा,,,,, इन हिचकियोने भी मेरे जैसे किसी की यादे समेट के रखा होगा उसकी सोच मे डब्ने क्या लगिथि अचानक आँखे उन म्यासेज पे पढ़ी ,
सारा शब्द बिखरा पढ़ा था, जैसे शब्दो ने शब्दोसे युद्ध छेड़ा हो,
कही शब्दो को निमोठा था,कही शब्दोने शब्दो की तिरो से घायल किया था, तों कही शब्द बेहोसी मे पडा था,, कितने शब्द ने शब्दो की गला रिटदी गईं थी, किसी की सपनो का, किसी की तामनाओ का और किसी की बिस्वास का लघु बहराहथा उन पन्नोंमे
"उस तरवार का धार उतना तेज ना था जितना शब्दो का होगा
बरस रही शब्दो की तीर थोड़ा खाता उन लब्जो का भी होगा"
घायल शब्द दर्द के मारे छटपटा रहेथे, कितने शब्दो आख़री पढ़ाव मे गिरे पड़े थे उन सफ़ेद पन्नों मे,,
कभी उन पन्नों को सजाने वाले शब्द आज उन्ही शब्दो की लघुसे उन पन्नों पर दाग़ लगा रहथा
कितनी शब्दो बेहोसी मे भी सवाल कर रहे थे आखिर इस युद्ध से मिला क्या बिजय हुवा कौन,, मेरी इन कानो मे बस यही आवाज़ गुन्जरहेथी और वो आवाज़ धीमे धीमे होने लगे, कब ये पालके बंद हुई पता भी ना चला, शुभ जब जगी वही सवाल मेरी मनसपटल मे घूम रहथा, और सवाल कर रहा था उन युद्ध से आखिर मिला क्या,,,,,????
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