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विदाई

Rockzz ✨श्वेतराग✨

खराब किस्मत का बादशाह (King of bad luck)
Senior's
Chat Pro User
कितना खुश नसीब होता होगा वह पुरुष,
जिसके प्यार में कोई स्त्री दीवानी होती है...❤️

किंतु अपना तो कुछ अलग ही रहा...

मेरे प्रेम का समस्त अध्याय विरह का रहा,
मैं वंचित हुआ प्रेम से, प्रेमिका से,
और अंततः अब स्वयं से भी होना है...

और चाहा भी तो नहीं था इससे ज्यादा...

मेरी हर तलाश तुम पर ही खत्म होगी
मैंने अपनी आरजुओं को बस इतने ही पंख लगाये थे..!!


अब तो आरजू बस ये है की...


मेरे हिस्से में सिर्फ तुम रहो...
सारा जहां लोगों को मुबारक !!


एहसास होता है की..

तुम थे, वक़्त था, मैं नही !
मैं था, वक़्त था, तुम नही !
मैं हूँ, तुम हो, वक़्त नही !
वक़्त रहेगा, मैं नही, तुम नही !!


कुछ तुम्हारे लिए...

बेबस हैं कि तुझ तक आ नहीं सकते
अपनी मोहब्बत तुझे हम दिखा नहीं सकते
रोक नहीं सकता यूँ तो ये ज़ालिम ज़माना
पर तुझ ही पर तोहमतें लगवा नहीं सकते।

तू ख़ास है कितना जता नहीं सकते
पर तेरा ख़ास दिन भुला नहीं सकते
माना कि हक नहीं रहा हमें पर
अपना फ़र्ज़ भी तो भुला नहीं सकते।

दुआ तो दे सकते हैं
चाहे उपहार पहुँचा नहीं सकते
प्रेम रहेगा सदा तुझसे
चाह कर भी हम दिखा नहीं सकते
ख़ुश रहे तू बस सदा
इससे ज़्यादा जता नहीं सकते।


तुमको तो अपनी किस्मत मान बैठा था मैं...

सारा इल्जाम अपने सर ले कर,
हमने किस्मत को माफ कर दिया..!!


इससे ज्यादा लिख नहीं सकता अब
तुमने कहा की शायरी लिखो तो लिख दिया।
अंतिम विदाई मान लेना इसे।
क्योंकि एहसास और विश्वास पे रिश्ते टिकते हैं।
ना कि किसी एहसान पे ना ही किसी गुमान पे।


अन्त, का मतलब है एक नई शुरुआत
विदा लेना चाहूंगा तुम्हें शुभकामनाएं देने के साथ।


और एक खास चीज जो तुम्हारे लिए ही तो लिखा था जानती ही हो.....
तुम्ही को सौंपता हूं....
IMG_20240604_005358.jpg


काश की हाथ बढ़ा दिया होता तुमने...
 
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कितना खुश नसीब होता होगा वह पुरुष,
जिसके प्यार में कोई स्त्री दीवानी होती है...❤️

किंतु अपना तो कुछ अलग ही रहा...

मेरे प्रेम का समस्त अध्याय विरह का रहा,
मैं वंचित हुआ प्रेम से, प्रेमिका से,
और अंततः अब स्वयं से भी होना है...

और चाहा भी तो नहीं था इससे ज्यादा...

मेरी हर तलाश तुम पर ही खत्म होगी
मैंने अपनी आरजुओं को बस इतने ही पंख लगाये थे..!!


अब तो आरजू बस ये है की...


मेरे हिस्से में सिर्फ तुम रहो...
सारा जहां लोगों को मुबारक !!


एहसास होता है की..

तुम थे, वक़्त था, मैं नही !
मैं था, वक़्त था, तुम नही !
मैं हूँ, तुम हो, वक़्त नही !
वक़्त रहेगा, मैं नही, तुम नही !!


कुछ तुम्हारे लिए...

बेबस हैं कि तुझ तक आ नहीं सकते
अपनी मोहब्बत तुझे हम दिखा नहीं सकते
रोक नहीं सकता यूँ तो ये ज़ालिम ज़माना
पर तुझ ही पर तोहमतें लगवा नहीं सकते।

तू ख़ास है कितना जता नहीं सकते
पर तेरा ख़ास दिन भुला नहीं सकते
माना कि हक नहीं रहा हमें पर
अपना फ़र्ज़ भी तो भुला नहीं सकते।

दुआ तो दे सकते हैं
चाहे उपहार पहुँचा नहीं सकते
प्रेम रहेगा सदा तुझसे
चाह कर भी हम दिखा नहीं सकते
ख़ुश रहे तू बस सदा
इससे ज़्यादा जता नहीं सकते।


तुमको तो अपनी किस्मत मान बैठा था मैं...

सारा इल्जाम अपने सर ले कर,
हमने किस्मत को माफ कर दिया..!!


इससे ज्यादा लिख नहीं सकता अब
तुमने कहा की शायरी लिखो तो लिख दिया।
अंतिम विदाई मान लेना इसे।
क्योंकि एहसास और विश्वास पे रिश्ते टिकते हैं।
ना कि किसी एहसान पे ना ही किसी गुमान पे।


अन्त, का मतलब है एक नई शुरुआत
विदा लेना चाहूंगा तुम्हें शुभकामनाएं देने के साथ।


और एक खास चीज जो तुम्हारे लिए ही तो लिखा था जानती ही हो.....
तुम्ही को सौंपता हूं....
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काश की हाथ बढ़ा दिया होता तुमने...
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कितना खुश नसीब होता होगा वह पुरुष,
जिसके प्यार में कोई स्त्री दीवानी होती है...❤️

किंतु अपना तो कुछ अलग ही रहा...

मेरे प्रेम का समस्त अध्याय विरह का रहा,
मैं वंचित हुआ प्रेम से, प्रेमिका से,
और अंततः अब स्वयं से भी होना है...

और चाहा भी तो नहीं था इससे ज्यादा...

मेरी हर तलाश तुम पर ही खत्म होगी
मैंने अपनी आरजुओं को बस इतने ही पंख लगाये थे..!!


अब तो आरजू बस ये है की...


मेरे हिस्से में सिर्फ तुम रहो...
सारा जहां लोगों को मुबारक !!


एहसास होता है की..

तुम थे, वक़्त था, मैं नही !
मैं था, वक़्त था, तुम नही !
मैं हूँ, तुम हो, वक़्त नही !
वक़्त रहेगा, मैं नही, तुम नही !!


कुछ तुम्हारे लिए...

बेबस हैं कि तुझ तक आ नहीं सकते
अपनी मोहब्बत तुझे हम दिखा नहीं सकते
रोक नहीं सकता यूँ तो ये ज़ालिम ज़माना
पर तुझ ही पर तोहमतें लगवा नहीं सकते।

तू ख़ास है कितना जता नहीं सकते
पर तेरा ख़ास दिन भुला नहीं सकते
माना कि हक नहीं रहा हमें पर
अपना फ़र्ज़ भी तो भुला नहीं सकते।

दुआ तो दे सकते हैं
चाहे उपहार पहुँचा नहीं सकते
प्रेम रहेगा सदा तुझसे
चाह कर भी हम दिखा नहीं सकते
ख़ुश रहे तू बस सदा
इससे ज़्यादा जता नहीं सकते।


तुमको तो अपनी किस्मत मान बैठा था मैं...

सारा इल्जाम अपने सर ले कर,
हमने किस्मत को माफ कर दिया..!!


इससे ज्यादा लिख नहीं सकता अब
तुमने कहा की शायरी लिखो तो लिख दिया।
अंतिम विदाई मान लेना इसे।
क्योंकि एहसास और विश्वास पे रिश्ते टिकते हैं।
ना कि किसी एहसान पे ना ही किसी गुमान पे।


अन्त, का मतलब है एक नई शुरुआत
विदा लेना चाहूंगा तुम्हें शुभकामनाएं देने के साथ।


और एक खास चीज जो तुम्हारे लिए ही तो लिखा था जानती ही हो.....
तुम्ही को सौंपता हूं....
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काश की हाथ बढ़ा दिया होता तुमने...

woh beautiful
 
कितना खुश नसीब होता होगा वह पुरुष,
जिसके प्यार में कोई स्त्री दीवानी होती है...❤️

किंतु अपना तो कुछ अलग ही रहा...

मेरे प्रेम का समस्त अध्याय विरह का रहा,
मैं वंचित हुआ प्रेम से, प्रेमिका से,
और अंततः अब स्वयं से भी होना है...

और चाहा भी तो नहीं था इससे ज्यादा...

मेरी हर तलाश तुम पर ही खत्म होगी
मैंने अपनी आरजुओं को बस इतने ही पंख लगाये थे..!!


अब तो आरजू बस ये है की...


मेरे हिस्से में सिर्फ तुम रहो...
सारा जहां लोगों को मुबारक !!


एहसास होता है की..

तुम थे, वक़्त था, मैं नही !
मैं था, वक़्त था, तुम नही !
मैं हूँ, तुम हो, वक़्त नही !
वक़्त रहेगा, मैं नही, तुम नही !!


कुछ तुम्हारे लिए...

बेबस हैं कि तुझ तक आ नहीं सकते
अपनी मोहब्बत तुझे हम दिखा नहीं सकते
रोक नहीं सकता यूँ तो ये ज़ालिम ज़माना
पर तुझ ही पर तोहमतें लगवा नहीं सकते।

तू ख़ास है कितना जता नहीं सकते
पर तेरा ख़ास दिन भुला नहीं सकते
माना कि हक नहीं रहा हमें पर
अपना फ़र्ज़ भी तो भुला नहीं सकते।

दुआ तो दे सकते हैं
चाहे उपहार पहुँचा नहीं सकते
प्रेम रहेगा सदा तुझसे
चाह कर भी हम दिखा नहीं सकते
ख़ुश रहे तू बस सदा
इससे ज़्यादा जता नहीं सकते।


तुमको तो अपनी किस्मत मान बैठा था मैं...

सारा इल्जाम अपने सर ले कर,
हमने किस्मत को माफ कर दिया..!!


इससे ज्यादा लिख नहीं सकता अब
तुमने कहा की शायरी लिखो तो लिख दिया।
अंतिम विदाई मान लेना इसे।
क्योंकि एहसास और विश्वास पे रिश्ते टिकते हैं।
ना कि किसी एहसान पे ना ही किसी गुमान पे।


अन्त, का मतलब है एक नई शुरुआत
विदा लेना चाहूंगा तुम्हें शुभकामनाएं देने के साथ।


और एक खास चीज जो तुम्हारे लिए ही तो लिखा था जानती ही हो.....
तुम्ही को सौंपता हूं....
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काश की हाथ बढ़ा दिया होता तुमने...
निभाई है कई लोगों ने
रिश्ते की कहानी
कभी शबरी ने देखी राह
कहीं मीरा दीवानी
तुझसे जुड़ा मैंने इक
अनोखा-सा बंधन समझा
मैं खुश ....
 
मेरी खातिर तूने
कितने लम्हे गुजारे
कभी खुद को मिटा
मुझमें जालये
अब हमने भी प्रीत के
इस बंधन को समझा
मैं खुश .....
 
निभाई है कई लोगों ने
रिश्ते की कहानी
कभी शबरी ने देखी राह
कहीं मीरा दीवानी
तुझसे जुड़ा मैंने इक
अनोखा-सा बंधन समझा
मैं खुश ....
वाह !!
क्या बात है।
 
वो दूर न जा सके
कोशिश तो पूरी होगी
वरना उसके बिना तो

ये जिंदगी अधूरी होगी।
रास्ते कहां ख़त्म होते हैं ज़िंदग़ी के सफ़र में,
मंज़िल तो वहां है जहां ख्वाहिशें थम जाएं।
 
पता चल जाए जब
फिर अपनापन खत्म,
जो पता न चला

तभी तो दिल जीता।
अदम की जो हक़ीक़त है वो पूछो अहल-ए-हस्ती से
मुसाफ़िर को तो मंज़िल का पता मंज़िल से मिलता है
 
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