रोका भी नहीं
जाने कैसे सुनाऊ तुम्हारी मुहब्बत की दास्ता तुमने कभी रोका भी .
नही और कभी जाने भी न दिया
अपनी मुहब्बत की जंजीर में तुमने कभी बाँधा भी नही और हम कभी आज़ाद भी ना हुए....
एक सुकून था तुम्हारे प्यार में जिसे मैं ना खोना चाहती थी और ना ही पाना...
गिला तो इसी बात का है तुमने कभी रोका भी नही और तुमने कभी जाने भी ना दिया..
जाने कैसे सुनाऊ तुम्हारी मुहब्बत की दास्ता तुमने कभी रोका भी .
नही और कभी जाने भी न दिया
अपनी मुहब्बत की जंजीर में तुमने कभी बाँधा भी नही और हम कभी आज़ाद भी ना हुए....
एक सुकून था तुम्हारे प्यार में जिसे मैं ना खोना चाहती थी और ना ही पाना...
गिला तो इसी बात का है तुमने कभी रोका भी नही और तुमने कभी जाने भी ना दिया..