गम मेरा कभी मुझसे,यूं बेगाना ना हो।
काश मौसम कभी भी, सुहाना ना हो।।
शाम ढलकर,कभी फिर ये रात ना हो।
गर मेरे ख्वाबों मे उनको,आना ना हो।।
आगाज कोई अंजाम पे, पहुँचे ही ना।
इस कदर बेरहम भी , जमाना ना हो।।
अदावत भी हो तो,पाक साफ ही हो।
ऐसा ना हो, फिर आना जाना ना हो।।
दास्तां-ए-दर्द-ए-दिल को,पढ़ लेते हैं।
शायद फिर कभी , गुनगुनाना ना हो।।
जुल्म-ओ-सितम पर ऐसे,उतरे हैं वो।
जैसे कि उन्हें,हमे फिर सताना ना हो।।
फांसलों को इतना, बढा दिया तुमने।
जैसे रूठे हुए को,तुम्हें मनाना ना हो।।
मरहम लाओ कभी, ऐसा लाना तुम।
नये जख्मों मे दर्द,फिर पुराना ना हो।।
काश मौसम कभी भी, सुहाना ना हो।।
शाम ढलकर,कभी फिर ये रात ना हो।
गर मेरे ख्वाबों मे उनको,आना ना हो।।
आगाज कोई अंजाम पे, पहुँचे ही ना।
इस कदर बेरहम भी , जमाना ना हो।।
अदावत भी हो तो,पाक साफ ही हो।
ऐसा ना हो, फिर आना जाना ना हो।।
दास्तां-ए-दर्द-ए-दिल को,पढ़ लेते हैं।
शायद फिर कभी , गुनगुनाना ना हो।।
जुल्म-ओ-सितम पर ऐसे,उतरे हैं वो।
जैसे कि उन्हें,हमे फिर सताना ना हो।।
फांसलों को इतना, बढा दिया तुमने।
जैसे रूठे हुए को,तुम्हें मनाना ना हो।।
मरहम लाओ कभी, ऐसा लाना तुम।
नये जख्मों मे दर्द,फिर पुराना ना हो।।