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मरीज़-ए-मोहब्बत हूं,

अब इस युग मे सुदामा और कृष्ण मिलने से रहे
मिलेंगे भाई।
नज़रें पारखी रखो।
एक बार सुदामा बनो, तो एक बार कृष्ण।
फिर देखना निस्वार्थ प्रेम हो तो...
कृष्ण भी मिलेंगे और सुदामा भी।


मेरा अनुभव ये कहता है की शर्म मात्र की वजह से कुछ बेहतरीन दोस्त या तो छोड़ देते हैं या फिर छूट जाते हैं।

तुम कृष्ण बनो हमें सुदामा बनने में तनिक लज्जा का भी अनुभव नहीं होगा।
 
बहुत सही
जब कोई इंसान किसी से किनारा करता है तो सच मे वो इंसान सामने वाले कि लाख अच्छाइयाँ भूला कर सिर्फ एक बुराई पकड़ लेता है ।
हाँ लेकिन उस वक़्त वो इंसन उसकी अच्छाइयाँ देख ले तो शायद उसकी बुराई छोटी पड़ जाए लेकिन छोड़ने वाले इंसन अच्छाइयाँ नही सिर्फ एक बुराई देखते है
आये हाय क्या बात बोली अपने तो आज मेरा दिल ही नही मेरे फ़ेफ़डे तक जीत लिए
:smile1: :clapping:
 
भई वाह !
हम थोड़े से खुद से खफा क्या हुए
यहां तो सबको शायरी आ गई ।


सुनो सबलोग,
यूं अकेले अकेले क्यों रहना

डर तो प्यार और उसके धोखे से है,
आओ सब मिल के दोस्ती का एक आशियाना बनाएं,

जिसमे सिर्फ खुशियां ही खुशियां हो।

फिर चलेंगे हम सब मिल के उनका दीदार करने..
हम भी तो देखें किस अदा ने हमारे दोस्त को गुमसुम कर दिया।
:sarcasm:
 
हो जब घनघोर अंधेरा
रोशनी का मन बनाना चाहिए,
जिंदगी में हर हाल में मुस्कुराना चाहिए ।
जब कुछ न हो अपने पास
तो आस पर हर दिन बिताना चाहिए
जिंदगी में हर हाल में मुस्कुराना चाहिए ।
जब छूट गया हो अपना कोई
तो खुद में उसे ढूंढ लेना चाहिए
जिंदगी में हर हाल में मुस्कुराना चाहिए ।
जो है तुम्हारे पास उसमें ही
रब को देख लेना चाहिए
जिंदगी में हर हाल में मुस्कुराना चाहिए ।
जब मिले जाए तुम्हे कोई खुद के जैसा
उसको जिंदगी भर के लिए गले लगा लेना चाहिए
जिंदगी में हर हाल में मुस्कुराना चाहिए ।
 
Mareez-e-mohabbat unhi ka fasana sunata raha dum nikaltey nikaltey
magar zikr-e-shaam-e-alum jab ke aaya, chiragh-e-sehar bujh gaya jaltey jaltey


irada tha tark-e-mohabbat ka laikin, fariab-e-tabassum maiN phir aa gaey hum
abhi kha ke Thokar sanbhalney na paey, ke phir Thokar sanbhaltey sanbhaltey

unhain Khat maiN likha ke dil muztarib hai, jawab onka aaya mohabbat na kartey
tumhain dil laganey ko kis nay kaha tha, behal jaey ga dil beheltey beheltey



aray koi vadaa Khilafi ki hud hai, hisab apney dil maiN laga kar to dekho
qayamat ka din aa agaya rafta rafta, mulaqaat ka din badaltey badaltey

humaiN apney dil ki to parwa nahi hai, magar dar raha hoon yeh kam_sin ki zid hai
kaheeN paa-e-nazuk maiN mooch aa na jaey, dil-e-sakht jaaN ko masaltey masaltey



wo mehmaa.n rahe bhi to kab tak hamaare, hui shamma gul aur na duube sitaare,
"Qamar" is qadar unko jaldi thee ghar kii, wo ghar chal diye chaandni dhalte dhalte.
 
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