बारिश....
बारिश.... हां वही बारिश हूं मैं जिसका कब से इंतजार था तुम्हें वही बारिश जिसके लिए बेताब थे किस कदर मुन्तजिर थे तुम सहरा में तड़पते प्यासे की मानिंद और अब खुल कर बरस कर जब मैं तुझसे लिपटना चाहूं तेरी तलब ए प्यास बुझाना चाहूं तो तुम मुझसे भाग कर कहीं दूर सहारा क्यों ढूंढते हो मेरी प्रीत में भीग जाने से इस कदर क्यों डरते हो।
बारिश.... हां वही बारिश हूं मैं जिसका कब से इंतजार था तुम्हें वही बारिश जिसके लिए बेताब थे किस कदर मुन्तजिर थे तुम सहरा में तड़पते प्यासे की मानिंद और अब खुल कर बरस कर जब मैं तुझसे लिपटना चाहूं तेरी तलब ए प्यास बुझाना चाहूं तो तुम मुझसे भाग कर कहीं दूर सहारा क्यों ढूंढते हो मेरी प्रीत में भीग जाने से इस कदर क्यों डरते हो।