तर्क नहीं है मेरे पास
………….. प्रेम का ,
बस!, प्रेम है तुमसे ,
तर्क रहित …. प्रेम
तर्क पाखंड भी हो सकता है
मगर
प्रेम कभी पाखंड नहीं होता ।
न ही प्रेम कभी अंधा होता है।
अंधा तो हमारा मन होता है
हमारे तर्क होते हैं।
प्रेम में कभी कोई पागल नहीं हुआ
न ही कोई विक्षिप्तता हुआ,,
विक्षिप्तता तो मन हुआ
जो स्वीकार नहीं पाया…
यह कि ,,
प्रेम बाहर नहीं
अंदर है, मन के भीतर है ,
बाहर तो सिर्फ़ तर्क है ।।
………….. प्रेम का ,
बस!, प्रेम है तुमसे ,
तर्क रहित …. प्रेम
तर्क पाखंड भी हो सकता है
मगर
प्रेम कभी पाखंड नहीं होता ।
न ही प्रेम कभी अंधा होता है।
अंधा तो हमारा मन होता है
हमारे तर्क होते हैं।
प्रेम में कभी कोई पागल नहीं हुआ
न ही कोई विक्षिप्तता हुआ,,
विक्षिप्तता तो मन हुआ
जो स्वीकार नहीं पाया…
यह कि ,,
प्रेम बाहर नहीं
अंदर है, मन के भीतर है ,
बाहर तो सिर्फ़ तर्क है ।।