ईश्वर ने जब सृष्टि को रचा
किसी भी चीज़ को
रंग से ख़ाली न रखा
छोड़ दिया बस पानी
बेरंग
बेस्वाद।
इस ज़्यादती पर
बहुत रोया पानी।
पानी घुल रहा था अपनी उदासियों में
और उदासियां घुल रही थीं
सृष्टि में।
कहां पता था पानी को
वो हर रंग में घुल जाएगा
हर तिश्नगी बुझाएगा।
कि अकल्पित रहेगा
जीवन उसके बिना।
सृष्टि बननी थी, बनी
मैं बना
तुम बनी
फिर हम मिले ...
मुझे तुम भी
पानी जैसे ही लगी।।
किसी भी चीज़ को
रंग से ख़ाली न रखा
छोड़ दिया बस पानी
बेरंग
बेस्वाद।
इस ज़्यादती पर
बहुत रोया पानी।
पानी घुल रहा था अपनी उदासियों में
और उदासियां घुल रही थीं
सृष्टि में।
कहां पता था पानी को
वो हर रंग में घुल जाएगा
हर तिश्नगी बुझाएगा।
कि अकल्पित रहेगा
जीवन उसके बिना।
सृष्टि बननी थी, बनी
मैं बना
तुम बनी
फिर हम मिले ...
मुझे तुम भी
पानी जैसे ही लगी।।