सुनसान रात में कुछ ख्याल आते हैं
आसमान के परे से कई सारे सवाल लाते हैं
मन को जरा सा भटकाके
नईं राहों की तरफ ठेल आते हैं
राहें जिनमें आसमानों का रंग अलग हैं
उमींदे जिनमें ख्वाबों का रंग अलग हैं
चाहते जिनमें वादों का रंग अलग है
शिकायते जिनमें किरदारों का रंग अलग है
और
कुछ ठहर सा जाता है उस पल में
किसी बीते हुए कल में
अलग है जमीन अलग है , होश अलग है
कुछ ख्वाबों के साथ हौसलों का जोश अलग है
भटकती हुई ख्वाहिसो का अफसोस अलग हैं
और उसपे ये
ठहरी जमीन पर भटके हुए समय का अफसोस अलग है
कभी-कभी खुशियों दिखाते हैं
फिर
कुछ खुशियों और गमों को एक साथ सहलाते हैं
फिर
रूठी हुई शाम को अंधेरी चांदनी में भिगो के
मां की बांतों सा गुदगुदाते है
जरा फिक्र दिखाते हैं ,
मन में छुपे पन्ने पर प्यारा सा कोई गीत सजाते हैं
धुन बनाते हे , दिल को बहलाते है ,
ठहरी हुई जमीन पर मन को पंख लगाते हैं
यही कुछ ख्याल आते हैं सुनसान रात में
और कुछ ठहर सा जाता ह बीते हुए कल में
और ऐसे ही सारा " समा ", " समा " सा जाता है बिखरे हुए पल में।।