बहुत कठिन है किसी का सब कुछ स्वीकार करना उसका क्रोध, घृणा, अवहेलना, विछोह और कटु वचन।
उसका बिछड़कर पुनः मिलना फिर क्षमा कर देना।
पर यदि प्रेम में हो तो ये सब भी सुखद ही लगता है।
प्रेम इंसान को सहनशील बनाता है।
जिसने प्रेम में मिले पीड़ा, क्रोध, विछोह स्वीकारा न हो, आंसुओं के भय से रिश्ता संवारा न हो टूट कर पुनः जोड़ना और अपने प्रेम को सहेजना सीखा न हो .. वो प्रेम नहीं बस आकर्षण है।
किसी का जाना और पुनः लौट आना उसकी गलतियों को भुला कर पुनः स्वीकार करना ये केवल वही कर सकता है जो अथाह और निःस्वार्थ प्रेम करता है!!!!!
उसका बिछड़कर पुनः मिलना फिर क्षमा कर देना।
पर यदि प्रेम में हो तो ये सब भी सुखद ही लगता है।
प्रेम इंसान को सहनशील बनाता है।
जिसने प्रेम में मिले पीड़ा, क्रोध, विछोह स्वीकारा न हो, आंसुओं के भय से रिश्ता संवारा न हो टूट कर पुनः जोड़ना और अपने प्रेम को सहेजना सीखा न हो .. वो प्रेम नहीं बस आकर्षण है।
किसी का जाना और पुनः लौट आना उसकी गलतियों को भुला कर पुनः स्वीकार करना ये केवल वही कर सकता है जो अथाह और निःस्वार्थ प्रेम करता है!!!!!