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द्रौपदी

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几乇ㄗㄒㄩ几乇
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द्रौपदी की कहानी, एक जज़्बात है,
आँचल में शक्ति, उसकी हर बात है।
बच गई आग से, न हो कभी बेबस,
फूल है वो, जो जलने से न घबराए बस।

अग्नि की देवी, सच्चाई का रूप,
सहन की ताकत, उसका है अनूप।
हर ठोकर पर वो मुस्कराए,
कायनात में खुद को वो साबित कराए।

वक्त की आंधी, ना कर सके उसे झुकाए,
धैर्य की मूरत, दुर्दशा में भी ना वो भटकाए।
द्रौपदी है, एक आस्था की मिसाल,

जलते रहकर भी, वो खिलती है हर हाल।
 
द्रौपदी की कहानी, एक जज़्बात है,
आँचल में शक्ति, उसकी हर बात है।
बच गई आग से, न हो कभी बेबस,
फूल है वो, जो जलने से न घबराए बस।

अग्नि की देवी, सच्चाई का रूप,
सहन की ताकत, उसका है अनूप।
हर ठोकर पर वो मुस्कराए,
कायनात में खुद को वो साबित कराए।

वक्त की आंधी, ना कर सके उसे झुकाए,
धैर्य की मूरत, दुर्दशा में भी ना वो भटकाए।
द्रौपदी है, एक आस्था की मिसाल,

जलते रहकर भी, वो खिलती है हर हाल।
बहुत खूब...
 
द्रौपदी की कहानी, एक जज़्बात है,
आँचल में शक्ति, उसकी हर बात है।
बच गई आग से, न हो कभी बेबस,
फूल है वो, जो जलने से न घबराए बस।

अग्नि की देवी, सच्चाई का रूप,
सहन की ताकत, उसका है अनूप।
हर ठोकर पर वो मुस्कराए,
कायनात में खुद को वो साबित कराए।

वक्त की आंधी, ना कर सके उसे झुकाए,
धैर्य की मूरत, दुर्दशा में भी ना वो भटकाए।
द्रौपदी है, एक आस्था की मिसाल,

जलते रहकर भी, वो खिलती है हर हाल।
शांति दूत बन स्वयं भगवान चले,
किसी तरह ये महासमर अब टले।
कौरव पांडव में सुलह हो जाए,
समाप्त अब ये कलह हो जाए।

द्रौपदी को माधव का विचार न भाया,
प्रतिशोध की अग्नि थी, मन अकुलाया।
बोली द्रुपदा, कर माधव को प्रणाम।
क्या तुम भी भूले मेरा अपमान?
या लगाने चले हो घावों का दाम।

तनिक याद करो वो कुरु राज्यसभा,
मेरे घायल मन की पीड़ा और व्यथा।
दुःसाशन ने केशों से मुझे खींचा था,
भरी सभा में मुझे घसीटा था।

दुर्योधन मुझ पर खूब हंसा था,
कर्ण ने वैश्या कहकर तंज कसा था।
दुःशासन ने मुझे हाथ लगाया था,
इन सबने गोविंद, बहुत रुलाया था।

सभा भरी थी महारथियों से,
सगे संबंधी और नरपतियों से।
उनमें से भी कोई कुछ ना बोला,
पितामह ने भी अपना मुंह ना खोला।

मेरा चीर हरण जब हुआ था,
मर्यादा का दहन तब हुआ था।
कोई सहायता को मेरी ना आया।
केवल तुमने ही था मान बचाया।

मेरा मन भला शांति कैसे चाहेगा,
प्रस्ताव तुम्हारा मन को कैसे भाएगा।
मेरे अपमान का प्रतिशोध तो रण है,
दुर्योधन दुःशासन और कर्ण का मरण है।

मेरे ये केश खुले यदि रह जाएंगे,
रण में ध्वजा बन ये लहराएंगे।
अपमानित जीवन मेरा है जब तक,
पांडव कायर कहलाएंगे तब तक।

मैं नहीं चाहती गिरिधर, तुम जाओ,
कोई शांति प्रस्ताव अब उन्हें सुनाओ।
अब तो रणभेरी तुम बज जाने दो,
रणभूमि में मरघट बन जाने दो।

रण में जब दुष्ट सब मारे जायेंगे,
पाशे शकुनी वाले सब हारे जायेंगे।
शोनित से वसुधा की प्यास बुझेगी,
मेरे घायल मन की भी आग बुझेगी।
 
शांति दूत बन स्वयं भगवान चले,
किसी तरह ये महासमर अब टले।
कौरव पांडव में सुलह हो जाए,
समाप्त अब ये कलह हो जाए।

द्रौपदी को माधव का विचार न भाया,
प्रतिशोध की अग्नि थी, मन अकुलाया।
बोली द्रुपदा, कर माधव को प्रणाम।
क्या तुम भी भूले मेरा अपमान?
या लगाने चले हो घावों का दाम।

तनिक याद करो वो कुरु राज्यसभा,
मेरे घायल मन की पीड़ा और व्यथा।
दुःसाशन ने केशों से मुझे खींचा था,
भरी सभा में मुझे घसीटा था।

दुर्योधन मुझ पर खूब हंसा था,
कर्ण ने वैश्या कहकर तंज कसा था।
दुःशासन ने मुझे हाथ लगाया था,
इन सबने गोविंद, बहुत रुलाया था।

सभा भरी थी महारथियों से,
सगे संबंधी और नरपतियों से।
उनमें से भी कोई कुछ ना बोला,
पितामह ने भी अपना मुंह ना खोला।

मेरा चीर हरण जब हुआ था,
मर्यादा का दहन तब हुआ था।
कोई सहायता को मेरी ना आया।
केवल तुमने ही था मान बचाया।

मेरा मन भला शांति कैसे चाहेगा,
प्रस्ताव तुम्हारा मन को कैसे भाएगा।
मेरे अपमान का प्रतिशोध तो रण है,
दुर्योधन दुःशासन और कर्ण का मरण है।

मेरे ये केश खुले यदि रह जाएंगे,
रण में ध्वजा बन ये लहराएंगे।
अपमानित जीवन मेरा है जब तक,
पांडव कायर कहलाएंगे तब तक।

मैं नहीं चाहती गिरिधर, तुम जाओ,
कोई शांति प्रस्ताव अब उन्हें सुनाओ।
अब तो रणभेरी तुम बज जाने दो,
रणभूमि में मरघट बन जाने दो।

रण में जब दुष्ट सब मारे जायेंगे,
पाशे शकुनी वाले सब हारे जायेंगे।
शोनित से वसुधा की प्यास बुझेगी,
मेरे घायल मन की भी आग बुझेगी।
amazing ji:Laugh1::hearteyes:
 
द्रौपदी की कहानी, एक जज़्बात है,
आँचल में शक्ति, उसकी हर बात है।
बच गई आग से, न हो कभी बेबस,
फूल है वो, जो जलने से न घबराए बस।

अग्नि की देवी, सच्चाई का रूप,
सहन की ताकत, उसका है अनूप।
हर ठोकर पर वो मुस्कराए,
कायनात में खुद को वो साबित कराए।

वक्त की आंधी, ना कर सके उसे झुकाए,
धैर्य की मूरत, दुर्दशा में भी ना वो भटकाए।
द्रौपदी है, एक आस्था की मिसाल,

जलते रहकर भी, वो खिलती है हर हाल।
उठी हुंकार मन मे ऐसी विद्रोह की,

जैसे द्रोपती के चीरहरण की पुकार-सी,

हो द्रवित नैन लगीं आसुओ की धार की,

देख व्यथा लजा गई नारी के स्वाभिमान की।।

अपनो ने ही लगा दी दांव पर,

भारी सभा मे अस्मत की हार पर,

हो उठीं कुंठित व्याकुलता ललाट नारी की,

कौन रक्षा करेगा अब यो अबला नारी की ?
देख फिर से वह वही लजा गई,

अपनो के चेहरों में नक़ाबपोश कैसे है?

वसन के हरण में वह भीख मांगती गई,

जुए के खेल में वह भी तो हार-सी गई।।
 
द्रौपदी की कहानी, एक जज़्बात है,
आँचल में शक्ति, उसकी हर बात है।
बच गई आग से, न हो कभी बेबस,
फूल है वो, जो जलने से न घबराए बस।

अग्नि की देवी, सच्चाई का रूप,
सहन की ताकत, उसका है अनूप।
हर ठोकर पर वो मुस्कराए,
कायनात में खुद को वो साबित कराए।

वक्त की आंधी, ना कर सके उसे झुकाए,
धैर्य की मूरत, दुर्दशा में भी ना वो भटकाए।
द्रौपदी है, एक आस्था की मिसाल,

जलते रहकर भी, वो खिलती है हर हाल।
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