सच बात मान लीजिए चेहरे पे धूल है,
इल्ज़ाम आइने पे लगाना फ़ज़ूल है।
तेरी नवाज़िशें हों तो कांटा भी फूल है,
गम भी मुझे क़ुबूल खुशी भी क़ुबूल है।
उस पार अब तो कोई तेरा मुंतज़िर नहीं,
कच्चे घड़े पे तैर के जाना फ़ज़ूल है।
जब भी मिला है ज़ख्म का तोहफा दिया मुझे,
दुश्मन ज़रूर है मगर बा-उसूल है।
गम भी मुझे क़ुबूल खुशी भी क़ुबूल है।
साभार: अनजान
इल्ज़ाम आइने पे लगाना फ़ज़ूल है।
तेरी नवाज़िशें हों तो कांटा भी फूल है,
गम भी मुझे क़ुबूल खुशी भी क़ुबूल है।
उस पार अब तो कोई तेरा मुंतज़िर नहीं,
कच्चे घड़े पे तैर के जाना फ़ज़ूल है।
जब भी मिला है ज़ख्म का तोहफा दिया मुझे,
दुश्मन ज़रूर है मगर बा-उसूल है।
गम भी मुझे क़ुबूल खुशी भी क़ुबूल है।
साभार: अनजान