ख़्याल तेरा दिल से आख़िर मैं भुलाऊँ किस तरह,
सीने में बसे इन अरमानों को बुझाऊँ किस तरह।
लाख ज़ब्त कर लूँ मैं क्यों न अपने अरमानों को,
आँखों से छलकती मोहब्बत छुपाऊँ किस तरह।
मोहब्बत है मुझे आज भी कैसे मैं कहूँ तुझसे,
ग़म -ए-दिल का अकेले बोझ उठाऊँ किस तरह।
मोहब्बत करके देख ली हमने ये दुनिया सारी,
किसी गैर से अपना दिल मैं लगाऊँ किस तरह।
दोस्त बन कर ये कैसी दुश्मनी निभाई है तुमने,
किसी को भी दोस्त अपना मैं बनाऊँ किस तरह।
जाने किस बात से ख़फ़ा होकर रूठ गए हो तुम,
ख़ता जाने बगैर आखिर तुम्हें मनाऊँ किस तरह।