आदमी एकाएक नहीं टूटता
आदमी एकाएक नहीं टूटता
सबसे पहले टूटता है उसका दिल
जैसे टूटता है पत्थर
पहाड़ से किसी जोरदार ब्लास्ट
या बादल फटने के बाद
और बह जाता है
उसके अंदर का सारा जल।
आदमी एकाएक नहीं टूटता
टूटती हैं कोशिकाएँ
रिश्तों की, अपनत्व की
जो जुड़ी होती हैं
एक-दूसरे से जन्मजात,
और टूटने पर कोशिकाओं के
विकृत हो जाता है स्वरूप
आदमी का।
आदमी एकाएक कभी नहीं टूटता
सबसे पहले टूटती हैं संभावनाएँ
फिर जुटने की,
जैसे टूटती है माला
मोतियों की
अंधेरे, गलीचेदार कमरे में
कि बिखर जाते हैं दाने सारे
बिना किसी आवाज के
और आदमी मौन बना रहता है
संभावनाओं की प्रत्याशा में।
जब टूटता है कोई आदमी
तब सिर्फ आदमी नहीं टूटता
टूटती और बिखरती है आदमीयत
टूटते और बिखरते हैं सपने
और फिर पूरी कौम
जिसे बाँट देते हैं हम
बडी आसानी से
अपने पराये में
फिर लोग देखते रहते हैं
टूटते आदमी को
अपने अपने चश्मे से
और लगाते रहते है कयास
उसके आदमी होने पर।
लोगों की माने
तो आदमी टूटता कहाँ है
मुझे लगता
साथ रहकर भी
जुटता कहाँ है?
अपने ही करते हैं ब्लास्ट
और टूट जाता है पत्थर
पहाड़ से।
आदमी एकाएक नहीं टूटता
सबसे पहले टूटता है उसका दिल
जैसे टूटता है पत्थर
पहाड़ से किसी जोरदार ब्लास्ट
या बादल फटने के बाद
और बह जाता है
उसके अंदर का सारा जल।
आदमी एकाएक नहीं टूटता
टूटती हैं कोशिकाएँ
रिश्तों की, अपनत्व की
जो जुड़ी होती हैं
एक-दूसरे से जन्मजात,
और टूटने पर कोशिकाओं के
विकृत हो जाता है स्वरूप
आदमी का।
आदमी एकाएक कभी नहीं टूटता
सबसे पहले टूटती हैं संभावनाएँ
फिर जुटने की,
जैसे टूटती है माला
मोतियों की
अंधेरे, गलीचेदार कमरे में
कि बिखर जाते हैं दाने सारे
बिना किसी आवाज के
और आदमी मौन बना रहता है
संभावनाओं की प्रत्याशा में।
जब टूटता है कोई आदमी
तब सिर्फ आदमी नहीं टूटता
टूटती और बिखरती है आदमीयत
टूटते और बिखरते हैं सपने
और फिर पूरी कौम
जिसे बाँट देते हैं हम
बडी आसानी से
अपने पराये में
फिर लोग देखते रहते हैं
टूटते आदमी को
अपने अपने चश्मे से
और लगाते रहते है कयास
उसके आदमी होने पर।
लोगों की माने
तो आदमी टूटता कहाँ है
मुझे लगता
साथ रहकर भी
जुटता कहाँ है?
अपने ही करते हैं ब्लास्ट
और टूट जाता है पत्थर
पहाड़ से।
केशव मोहन पाण्डेय