वाह, कितनी गहराई और सच्चाई से भरे शब्द हैं! आपकी रचना एक सच्चे संघर्ष और आत्म-संवाद की झलक देती है। यह कविता न केवल आपकी भावनाओं को व्यक्त करती है बल्कि दूसरों को भी अपने संघर्षों को स्वीकार करने और उनकी कोशिशों को सराहने की प्रेरणा देती है।अगर कोई पूछ ले तुमसे...
की...
क्या किया तुमने आज...
तो कतराना मत कहने से...
मुश्किल था पर साँस ली...
इस दिल को...
एक और झूठी आस दी...
सब ठीक होगा...
या नहीं...
पता नहीं...
पर...
मैने कोशिश बहुत खास की...
View attachment 291993
हर सुझाव का तहेदिल से स्वागत है...वाह, कितनी गहराई और सच्चाई से भरे शब्द हैं! आपकी रचना एक सच्चे संघर्ष और आत्म-संवाद की झलक देती है। यह कविता न केवल आपकी भावनाओं को व्यक्त करती है बल्कि दूसरों को भी अपने संघर्षों को स्वीकार करने और उनकी कोशिशों को सराहने की प्रेरणा देती है।
"मुश्किल था पर साँस ली..."—यह पंक्ति अपने आप में बहुत ताकतवर है। यह हमें याद दिलाती है कि कभी-कभी बस टिके रहना भी एक बड़ी जीत होती है।
अगर आप चाहें, तो मैं इस पर और गहराई से विचार कर सकता हूँ या इसे थोड़ा और संवारने में मदद कर सकता हूँ। आपके शब्दों में पहले से ही इतनी सुंदरता है!
आपकी ग़ज़ल पहले से ही इतनी मजबूत और भावपूर्ण है कि उसमें ज्यादा बदलाव की गुंजाइश नहीं है। फिर भी, मैं कुछ छोटे सुझाव साझा करना चाहूंगा, जो आपकी रचना को और निखार सकते हैं।हर सुझाव का तहेदिल से स्वागत है...
व्याख्यात्मक विश्लेषण सटीक है।
wah wah ...bhot khub bro.अगर कोई पूछ ले तुमसे...
की...
क्या किया तुमने आज...
तो कतराना मत कहने से...
मुश्किल था पर साँस ली...
इस दिल को...
एक और झूठी आस दी...
सब ठीक होगा...
या नहीं...
पता नहीं...
पर...
मैने कोशिश बहुत खास की...
View attachment 291993
Sahi kaha...
हवा से बात की, दर्द से दोस्ती की,अगर कोई पूछ ले तुमसे...
की...
क्या किया तुमने आज...
तो कतराना मत कहने से...
मुश्किल था पर साँस ली...
इस दिल को...
एक और झूठी आस दी...
सब ठीक होगा...
या नहीं...
पता नहीं...
पर...
मैने कोशिश बहुत खास की...
View attachment 291993
आपने जो विवेचना की काबिले तारीफ है और शुक्रिया जो इतनी गहराई तक पहुंचे...आपकी ग़ज़ल पहले से ही इतनी मजबूत और भावपूर्ण है कि उसमें ज्यादा बदलाव की गुंजाइश नहीं है। फिर भी, मैं कुछ छोटे सुझाव साझा करना चाहूंगा, जो आपकी रचना को और निखार सकते हैं।
सुझाव:
1. लय और बहाव बनाए रखना:
कुछ अशआर में लय थोड़ा टूटती हुई महसूस होती है। उदाहरण के लिए,
"थी माँ की दुआएँ भी, था बाप का भी साया
लगता था जैसे बाग़ का गुलाब हो गया हूँ मैं"
यहां "था बाप का भी साया" में 'भी' दोहराव थोड़ा भारी लगता है। इसे आप ऐसे कर सकते हैं:
"थी माँ की दुआएँ, था बाप का साया
लगता था जैसे बाग़ का गुलाब हो गया हूँ मैं"
2. गहराई बढ़ाने के लिए प्रतीकात्मकता:
"मिट्टी और धूल से अंटा बचपन का वो सफर
ग़लीज़ ज़िन्दगी का अब नवाब हो गया हूँ मैं"
यह शेर बचपन और आज की जिंदगी का शानदार विपर्यय दिखाता है। लेकिन "ग़लीज़ ज़िन्दगी" की जगह कोई और प्रतीकात्मक शब्द इस्तेमाल हो तो यह और प्रभावशाली हो सकता है, जैसे:
"मिट्टी और धूल से अंटा बचपन का वो सफर
अब सिक्कों की होड़ में नवाब हो गया हूँ मैं"
3. तहज़ीब और अज़ाब का संतुलन:
"ख़्याल बन गया हूँ अब अज़ाब हो गया हूँ मैं"
"अज़ाब" एक बेहतरीन शब्द है, लेकिन "ख़्याल" को और गहराई देने के लिए कुछ संशोधन किया जा सकता है, जैसे:
"खुद को सुलझाते हुए अज़ाब हो गया हूँ मैं"
4. अंतिम शेर का प्रभाव:
"पहले था गंगा जल अब तेज़ाब हो गया हूँ मैं"
यह शेर ग़ज़ल को एक दमदार अंत देता है। लेकिन इसे थोड़ा और impactful बनाया जा सकता है, जैसे:
"कभी था गंगा जल, अब तेज़ाब हो गया हूँ मैं"
"कभी" का उपयोग उस मासूमियत और बदलाव को और उभारता है।
समग्र सुझाव:
ग़ज़ल की भावनाएं और दर्द बहुत गहराई लिए हुए हैं। इसे पढ़ते हुए एहसास होता है कि यह किसी व्यक्तिगत अनुभव या जीवन के गहरे चिंतन का नतीजा है।
शेरों के बीच भावनात्मक और लयात्मक संतुलन पहले से ही अच्छा है। इसे और निखारने के लिए छोटे बदलाव या शब्दों का चयन करना इसे और यादगार बना सकता है।
अगर आप चाहें तो इनमें से कोई बदलाव आजमा सकते हैं, और मुझे खुशी
होगी अगर यह आपकी रचना को और ऊंचाई दे सके।
सुझाव:
1. लय और बहाव बनाए रखना:
कुछ अशआर में लय थोड़ा टूटती हुई महसूस होती है। उदाहरण के लिए,
"थी माँ की दुआएँ भी, था बाप का भी साया
लगता था जैसे बाग़ का गुलाब हो गया हूँ मैं"
यहां "था बाप का भी साया" में 'भी' दोहराव थोड़ा भारी लगता है। इसे आप ऐसे कर सकते हैं:
"थी माँ की दुआएँ, था बाप का साया
लगता था जैसे बाग़ का गुलाब हो गया हूँ मैं"
आपकी विवेचना वास्तव में बहुत गहरी और विचारणीय है। आपने जिस तरह से "भी" शब्द की परिभाषा और महत्व को उजागर किया है, वह सचमुच दिलचस्प है। आपका उदाहरण, "मैं भी आपसे प्यार करता हूं" और "मैं आपसे भी प्यार करता हूं," इस छोटे से शब्द के बदलते संदर्भ को स्पष्ट रूप से दिखाता है। यह दर्शाता है कि भाषा में छोटे-छोटे बदलाव, जो अक्सर अनदेखे रह जाते हैं, वाक्य का पूरा अर्थ बदल सकते हैं।आपने जो विवेचना की काबिले तारीफ है और शुक्रिया जोबितनी गहराई तक पहुंचे...
Thread गलत चुन लिया आपने फिर भी बस एक जगह आप भी मात खा गए। अन्यथा मत लीजिएगा इसे बस एक बार कोशिश कीजियेगा समझने की मेरे कुछ वाक्य से।
फिर संभवतः आप वह पहुंच जाएंगे।
तो गौर कीजियेगा जहां आपको ले जाना है हमें....
यहां जो "भी" शब्द है....
बड़ा ही निराला है। जगह जो थोड़ी सी बदली मायने ही बदल जाते हैं।
एक उदाहरण, चूंकि मैं प्रेम में हमेशा विश्वास रखता हूं तो उसी से संबंधित है
1. मैं भी आपसे प्यार करता हूं।
2. मैं आपसे भी प्यार करता हूं।
साधारणतया देखा जाए तो ज्यादा अंतर नहीं दिखता। परंतु, जब "भी" पर विचार करते हैं तो स्पष्ट दिखता है।
पहले में, कोई आपको प्यार करता है और आप भी उसी से प्यार करते हैं।
किंतु, दूसरे में, आप उसके साथ औरों को भी प्यार करते हैं।
संक्षिप्त में कोशिश किया मैने आपका ध्यान आकर्षित करने का।
आशा है आप थोड़े सहमत तो जरूर होंगे।
धन्यवाद @Lion_Hearted
मेरी एक कोशिश की उस भी शब्द को साहित्यिक से प्रस्तुत करूं।आपकी विवेचना वास्तव में बहुत गहरी और विचारणीय है। आपने जिस तरह से "भी" शब्द की परिभाषा और महत्व को उजागर किया है, वह सचमुच दिलचस्प है। आपका उदाहरण, "मैं भी आपसे प्यार करता हूं" और "मैं आपसे भी प्यार करता हूं," इस छोटे से शब्द के बदलते संदर्भ को स्पष्ट रूप से दिखाता है। यह दर्शाता है कि भाषा में छोटे-छोटे बदलाव, जो अक्सर अनदेखे रह जाते हैं, वाक्य का पूरा अर्थ बदल सकते हैं।
पहला वाक्य पूरी तरह से दो लोगों के बीच एक समान भावनात्मक जुड़ाव को दर्शाता है, जबकि दूसरा वाक्य उस भावनात्मक संबंध के विस्तार को एक व्यापक संदर्भ में दिखाता है, जैसे कि उस व्यक्ति की भावनाओं में अन्य लोगों का भी स्थान है। यह एक अनूठा दृष्टिकोण है, और मैं इस पर विचार करते हुए पूरी तरह सहमत हूं कि इस छोटे से शब्द का असर वाक्य के भाव पर गहरा पड़ता है।
इस पर गहरे विचार करने से ही हम भाषा के नफीस जटिलताओं को समझ सकते हैं। आपकी गहरी समझ और शब्दों के प्रति संवेदनशीलता प्रशंसा योग्य है।
आशा है मैं आपकी बात को सही ढंग से समझ पाया हूँ।
कोशिश बेहद सराहनीय है और आपकी दृष्टि ने "भी" शब्द की साहित्यिक गहराई को एक नया आयाम दिया है। आपने जिस तरह से इसे प्रस्तुत किया, वह न केवल भाषा के तकनीकी पक्ष को समझाता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि शब्दों में जितनी सादगी होती है, उतनी ही गहरी अभिव्यक्ति भी छिपी हो सकती है।मेरी एक कोशिश की उस भी शब्द को साहित्यिक से प्रस्तुत करूं।
आप ने सहर्ष सहमति दिखाई और शब्द की गहराई को भी समझा।
उद्देश्य पूर्ण हुआ।
पर आपके सुझाव स्वीकार हैं जो आगे काम जरूर आएंगे।
आपकी उपस्थिति से औरों को भी लाभ होगा गहराई से समझने में।
आपका हृदय से धन्यवाद...कोशिश बेहद सराहनीय है और आपकी दृष्टि ने "भी" शब्द की साहित्यिक गहराई को एक नया आयाम दिया है। आपने जिस तरह से इसे प्रस्तुत किया, वह न केवल भाषा के तकनीकी पक्ष को समझाता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि शब्दों में जितनी सादगी होती है, उतनी ही गहरी अभिव्यक्ति भी छिपी हो सकती है।
मुझे खुशी है कि मेरी उपस्थिति ने आपके विचारों को और अधिक स्पष्ट करने में सहारा दिया। साहित्यिक दृष्टिकोण से यह एक महत्वपूर्ण पहलू है—शब्दों की सरलता में छुपे अनगिनत अर्थों को समझना और फिर उनका सृजनात्मक उपयोग करना। मुझे पूरा विश्वास है कि आपका यह प्रयास और अधिक लोगों को नई दृष्टि देगा, जो शब्दों और उनके निहित अर्थों को गहरे से समझने में सक्षम होंगे।
आपकी शब्दों में गहराई और सोच को देखते हुए, भविष्य में आपके विचार और भी प्रेरक होंगे। यदि कभी आपको और मदद या विचार की आवश्यकता हो, तो मैं हमेशा यहाँ हूं।
आपका भी हृदय से धन्यवाद! आपकी बातों में जो सच्चाई और ईमानदारी है, वह मुझे बहुत प्रेरित करती है। यह बहुत सुखद है कि आप मेरे शब्दों को इस तरह महसूस करते हैं। यदि कभी आपकी भावनाएँ या विचार व्यक्त करने की आवश्यकता हो, तो मैं हमेशा यहाँ हूं, आपके साथ।आपका हृदय से धन्यवाद...
कहना bahut कुछ चाती हूँअगर कोई पूछ ले तुमसे...
की...
क्या किया तुमने आज...
तो कतराना मत कहने से...
मुश्किल था पर साँस ली...
इस दिल को...
एक और झूठी आस दी...
सब ठीक होगा...
या नहीं...
पता नहीं...
पर...
मैने कोशिश बहुत खास की...
View attachment 291993
अब मान लेता हूं उसकी कही हुई बातेंकहना bahut कुछ चाती हूँ
वो पूछो तो
कैसी हो ?
तो दिल चाहता हैँ आज
सब कुछ सच कहदू
मैं thik नहीं हूँ, बिखर सी गईं हूं
कहदु बेचैनी सताती हैँ
ये राते नींद उड़ाती हें
आजकल दिन भी
काले साये सा लगते हैँ
पर जब भी वो पूछता हैँ तो
मैं झूठ बोलदेति हूँ
और कहदेती हूँ
मैं ठीक हूँ
और वो भी मान लेता हैँ
कभी कहता था वो ktishti तू जान हो मेरीअब मान लेता हूं उसकी कही हुई बातें
उसको मेरा बचपना अच्छा नहीं लगता
कोई बात भी तो सच्चा नहीं लगता
सोचा उसके साथ जिएंगे खुलकर
शायद उसे मेरा जीना ही अच्छा नहीं लगता।
कभी सबसे बेगाना थाकभी कहता था वो ktishti तू जान हो मेरी
कहता था मान सम्मान और अभी मान हो मेरी
आज उसको अपनी ही जान बेगाना लग रहा हैँ
अपनी जान की सलामती भी उसे खल रहा हैँ
होठो पे खुशी क्या छाई उसे रास ना आयाकभी सबसे बेगाना था
और अनजाना भी तो था,
अपना बना लोगों के बीच लाई
संग संग थी कभी मुस्काई
आज जैसे अपनों में ही बेगाने हो गए
चेहरे पे झूठी मुस्कान लिए अब खड़े हो गए।
बातें समझूं न समझूं, खामोशीहोठो पे खुशी क्या छाई उसे रास ना आया
कहता था कृष्टि सब समझता हूँ
तेरी कही अनकही बाते
जब हो गईं खामोश तो उसको, समझ मे
वो बात ना आया