मुसाफ़िर हूं राह का , ये , राह कोन सी पता नहीं
ठेहरा हूं जहां अभी , ये , जगह कोन सी पता नहीं
कदमों के निशा कुछ , पीछे छोड़ आया हूं
बस मंज़िल की तलाश में , कुछ नाते तोड़ आया हूं
वो गांव की मिट्टी, कोमल हवाएं, नदियों का पानी
बस मैं भी , ढूंढ़ते हुए मेरी अमर कहानी , ( मंजिल की तलाश में ) घर से बाहर निकल आया हूं ,
ये आसमान का रंग , अलग ह ज़रा शहर में
लोगों के मिजाज़ का रंग , अलग ह ज़रा शहर में
बांतो में मिठास हैं , मन में , जरा खटास हैं
शिर पर फितूर हैं , कुछ बड़ा करने का सुरूर हैं
यही छोटी सी दुनिया हैं सबकी , yupps , पर मंज़िल थोड़ी दूर हैं
हर सुबह नई चमक लाती हैं , और बस ज़रा सी जगाती हैं
इन नैनों को खोलती हैं , और बस सुरीला बोलती हैं
दिखाती हैं दुनिया के प्यारे रंग किसी रोज़
तो
किसी रोज़ काले बादलों से मिलवाती हैं
चलाती हैं हर राह पे , ये राह बोहोत बुड़बक बनाती हैं ,
मंज़िल के पास ले जा के भी , बोहोत दूर हो बताती हैं ,
क्यूं?
क्यूं ऐसा करती हैं ये राह ?
क्या कुछ सिखाना चाहती हैं...
या
सफ़र छोटा न लगे, इसलिए बस चलाती हैं ?
चलाती in sense ( चलते रहो मुसाफ़िर की तरह , कोई अपना पा ही लोगे ,
और मंज़िल से थके हारे किसी रोज़ अपनी मंज़िल बना ही लोगे )...
हा
मुसाफ़िर हूं राह का , ये , राह कोन सी पता नहीं
ठेहरा हूं जहां अभी , ये , जगह कोन सी पता नहीं
ठेहरा हूं जहां अभी , ये , जगह कोन सी पता नहीं
कदमों के निशा कुछ , पीछे छोड़ आया हूं
बस मंज़िल की तलाश में , कुछ नाते तोड़ आया हूं
वो गांव की मिट्टी, कोमल हवाएं, नदियों का पानी
बस मैं भी , ढूंढ़ते हुए मेरी अमर कहानी , ( मंजिल की तलाश में ) घर से बाहर निकल आया हूं ,
ये आसमान का रंग , अलग ह ज़रा शहर में
लोगों के मिजाज़ का रंग , अलग ह ज़रा शहर में
बांतो में मिठास हैं , मन में , जरा खटास हैं
शिर पर फितूर हैं , कुछ बड़ा करने का सुरूर हैं
यही छोटी सी दुनिया हैं सबकी , yupps , पर मंज़िल थोड़ी दूर हैं
हर सुबह नई चमक लाती हैं , और बस ज़रा सी जगाती हैं
इन नैनों को खोलती हैं , और बस सुरीला बोलती हैं
दिखाती हैं दुनिया के प्यारे रंग किसी रोज़
तो
किसी रोज़ काले बादलों से मिलवाती हैं
चलाती हैं हर राह पे , ये राह बोहोत बुड़बक बनाती हैं ,
मंज़िल के पास ले जा के भी , बोहोत दूर हो बताती हैं ,
क्यूं?
क्यूं ऐसा करती हैं ये राह ?
क्या कुछ सिखाना चाहती हैं...
या
सफ़र छोटा न लगे, इसलिए बस चलाती हैं ?
चलाती in sense ( चलते रहो मुसाफ़िर की तरह , कोई अपना पा ही लोगे ,
और मंज़िल से थके हारे किसी रोज़ अपनी मंज़िल बना ही लोगे )...
हा
मुसाफ़िर हूं राह का , ये , राह कोन सी पता नहीं
ठेहरा हूं जहां अभी , ये , जगह कोन सी पता नहीं