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Musafir

Harcore_Ankit

Epic Legend
Chat Pro User
मुसाफ़िर हूं राह का , ये , राह कोन सी पता नहीं
ठेहरा हूं जहां अभी , ये , जगह कोन सी पता नहीं

कदमों के निशा कुछ , पीछे छोड़ आया हूं
बस मंज़िल की तलाश में , कुछ नाते तोड़ आया हूं
वो गांव की मिट्टी, कोमल हवाएं, नदियों का पानी
बस मैं भी , ढूंढ़ते हुए मेरी अमर कहानी , ( मंजिल की तलाश में ) घर से बाहर निकल आया हूं ,


ये आसमान का रंग , अलग ह ज़रा शहर में
लोगों के मिजाज़ का रंग , अलग ह ज़रा शहर में
बांतो में मिठास हैं , मन में , जरा खटास हैं
शिर पर फितूर हैं , कुछ बड़ा करने का सुरूर हैं
यही छोटी सी दुनिया हैं सबकी , yupps , पर मंज़िल थोड़ी दूर हैं


हर सुबह नई चमक लाती हैं , और बस ज़रा सी जगाती हैं
इन नैनों को खोलती हैं , और बस सुरीला बोलती हैं
दिखाती हैं दुनिया के प्यारे रंग किसी रोज़
तो
किसी रोज़ काले बादलों से मिलवाती हैं

चलाती हैं हर राह पे , ये राह बोहोत बुड़बक बनाती हैं ,
मंज़िल के पास ले जा के भी , बोहोत दूर हो बताती हैं ,
क्यूं?
क्यूं ऐसा करती हैं ये राह ?
क्या कुछ सिखाना चाहती हैं...
या
सफ़र छोटा न लगे, इसलिए बस चलाती हैं ?

चलाती in sense ( चलते रहो मुसाफ़िर की तरह , कोई अपना पा ही लोगे ,
और मंज़िल से थके हारे किसी रोज़ अपनी मंज़िल बना ही लोगे )...

हा
मुसाफ़िर हूं राह का , ये , राह कोन सी पता नहीं
ठेहरा हूं जहां अभी , ये , जगह कोन सी पता नहीं
 
मुसाफ़िर हूं राह का , ये , राह कोन सी पता नहीं
ठेहरा हूं जहां अभी , ये , जगह कोन सी पता नहीं

कदमों के निशा कुछ , पीछे छोड़ आया हूं
बस मंज़िल की तलाश में , कुछ नाते तोड़ आया हूं
वो गांव की मिट्टी, कोमल हवाएं, नदियों का पानी
बस मैं भी , ढूंढ़ते हुए मेरी अमर कहानी , ( मंजिल की तलाश में ) घर से बाहर निकल आया हूं ,


ये आसमान का रंग , अलग ह ज़रा शहर में
लोगों के मिजाज़ का रंग , अलग ह ज़रा शहर में
बांतो में मिठास हैं , मन में , जरा खटास हैं
शिर पर फितूर हैं , कुछ बड़ा करने का सुरूर हैं
यही छोटी सी दुनिया हैं सबकी , yupps , पर मंज़िल थोड़ी दूर हैं


हर सुबह नई चमक लाती हैं , और बस ज़रा सी जगाती हैं
इन नैनों को खोलती हैं , और बस सुरीला बोलती हैं
दिखाती हैं दुनिया के प्यारे रंग किसी रोज़
तो
किसी रोज़ काले बादलों से मिलवाती हैं

चलाती हैं हर राह पे , ये राह बोहोत बुड़बक बनाती हैं ,
मंज़िल के पास ले जा के भी , बोहोत दूर हो बताती हैं ,
क्यूं?
क्यूं ऐसा करती हैं ये राह ?
क्या कुछ सिखाना चाहती हैं...
या
सफ़र छोटा न लगे, इसलिए बस चलाती हैं ?

चलाती in sense ( चलते रहो मुसाफ़िर की तरह , कोई अपना पा ही लोगे ,
और मंज़िल से थके हारे किसी रोज़ अपनी मंज़िल बना ही लोगे )...

हा
मुसाफ़िर हूं राह का , ये , राह कोन सी पता नहीं
ठेहरा हूं जहां अभी , ये , जगह कोन सी पता नहीं
Rah aur manzil pta ho to safar kaisa chhote...
Pr jha thro apne rang me rang lo sabko
 
Rah aur manzil pta ho to safar kaisa chhote...
Pr jha thro apne rang me rang lo sabko
Ye wo wali Manjil ki baat nhi h ye wo wali Manjil ki baat h ,
kisi ko mukkamal jahaan nhi milta ,
Kisi ko jamin nhi milti to
Kisi ko aasman nhi milta ye wo wali h bs

Or hum chalte hi rhte h unhi k liye rookte hi nhi ... To jb Smj aa jayega manjil se roobaru ho jaayenge ..
 
मुसाफ़िर हूं राह का , ये , राह कोन सी पता नहीं
ठेहरा हूं जहां अभी , ये , जगह कोन सी पता नहीं

कदमों के निशा कुछ , पीछे छोड़ आया हूं
बस मंज़िल की तलाश में , कुछ नाते तोड़ आया हूं
वो गांव की मिट्टी, कोमल हवाएं, नदियों का पानी
बस मैं भी , ढूंढ़ते हुए मेरी अमर कहानी , ( मंजिल की तलाश में ) घर से बाहर निकल आया हूं ,


ये आसमान का रंग , अलग ह ज़रा शहर में
लोगों के मिजाज़ का रंग , अलग ह ज़रा शहर में
बांतो में मिठास हैं , मन में , जरा खटास हैं
शिर पर फितूर हैं , कुछ बड़ा करने का सुरूर हैं
यही छोटी सी दुनिया हैं सबकी , yupps , पर मंज़िल थोड़ी दूर हैं


हर सुबह नई चमक लाती हैं , और बस ज़रा सी जगाती हैं
इन नैनों को खोलती हैं , और बस सुरीला बोलती हैं
दिखाती हैं दुनिया के प्यारे रंग किसी रोज़
तो
किसी रोज़ काले बादलों से मिलवाती हैं

चलाती हैं हर राह पे , ये राह बोहोत बुड़बक बनाती हैं ,
मंज़िल के पास ले जा के भी , बोहोत दूर हो बताती हैं ,
क्यूं?
क्यूं ऐसा करती हैं ये राह ?
क्या कुछ सिखाना चाहती हैं...
या
सफ़र छोटा न लगे, इसलिए बस चलाती हैं ?

चलाती in sense ( चलते रहो मुसाफ़िर की तरह , कोई अपना पा ही लोगे ,
और मंज़िल से थके हारे किसी रोज़ अपनी मंज़िल बना ही लोगे )...

हा
मुसाफ़िर हूं राह का , ये , राह कोन सी पता नहीं
ठेहरा हूं जहां अभी , ये , जगह कोन सी पता नहीं
Meh bhi ak musafir hoon...
 
Ye wo wali Manjil ki baat nhi h ye wo wali Manjil ki baat h ,
kisi ko mukkamal jahaan nhi milta ,
Kisi ko jamin nhi milti to
Kisi ko aasman nhi milta ye wo wali h bs

Or hum chalte hi rhte h unhi k liye rookte hi nhi ... To jb Smj aa jayega manjil se roobaru ho jaayenge ..
Rasta to hai n pyare manzil apne aap mil hi jayegi..
Chalte rho, chlne ka naam zindagi hai..
Jo ruk gye to socho sb khatam..
 
Rasta to hai n pyare manzil apne aap mil hi jayegi..
Chalte rho, chlne ka naam zindagi hai..
Jo ruk gye to socho sb khatam..

Bhot jayada tension le lia h bhai lg rha h isliye sara text muje lg rha h hawa me udd rha h :Drunk: thoda bhot Smj aaya , jindgi fhoolo se h iski moj leni chahiye , or kisi se dusmani ho to uski taang tod deni chahiye :cool1: mai shi hu na :Cwl:
 
Bhot jayada tension le lia h bhai lg rha h isliye sara text muje lg rha h hawa me udd rha h :Drunk: thoda bhot Smj aaya , jindgi fhoolo se h iski moj leni chahiye , or kisi se dusmani ho to uski taang tod deni chahiye :cool1: mai shi hu na :Cwl:
Maine tension lena chhod Diya hai
Ab tension deta hu...
Maar-pit me jyada yakin nhi hai bt todne me jo sukoon hai wo mast hai lekin dushman ki tangein nhi 'Akad'
 
मुसाफ़िर हूं राह का , ये , राह कोन सी पता नहीं
ठेहरा हूं जहां अभी , ये , जगह कोन सी पता नहीं

कदमों के निशा कुछ , पीछे छोड़ आया हूं
बस मंज़िल की तलाश में , कुछ नाते तोड़ आया हूं
वो गांव की मिट्टी, कोमल हवाएं, नदियों का पानी
बस मैं भी , ढूंढ़ते हुए मेरी अमर कहानी , ( मंजिल की तलाश में ) घर से बाहर निकल आया हूं ,


ये आसमान का रंग , अलग ह ज़रा शहर में
लोगों के मिजाज़ का रंग , अलग ह ज़रा शहर में
बांतो में मिठास हैं , मन में , जरा खटास हैं
शिर पर फितूर हैं , कुछ बड़ा करने का सुरूर हैं
यही छोटी सी दुनिया हैं सबकी , yupps , पर मंज़िल थोड़ी दूर हैं


हर सुबह नई चमक लाती हैं , और बस ज़रा सी जगाती हैं
इन नैनों को खोलती हैं , और बस सुरीला बोलती हैं
दिखाती हैं दुनिया के प्यारे रंग किसी रोज़
तो
किसी रोज़ काले बादलों से मिलवाती हैं

चलाती हैं हर राह पे , ये राह बोहोत बुड़बक बनाती हैं ,
मंज़िल के पास ले जा के भी , बोहोत दूर हो बताती हैं ,
क्यूं?
क्यूं ऐसा करती हैं ये राह ?
क्या कुछ सिखाना चाहती हैं...
या
सफ़र छोटा न लगे, इसलिए बस चलाती हैं ?

चलाती in sense ( चलते रहो मुसाफ़िर की तरह , कोई अपना पा ही लोगे ,
और मंज़िल से थके हारे किसी रोज़ अपनी मंज़िल बना ही लोगे )...

हा
मुसाफ़िर हूं राह का , ये , राह कोन सी पता नहीं
ठेहरा हूं जहां अभी , ये , जगह कोन सी पता नहीं
Osm hai bro
 
मुसाफ़िर हूं राह का , ये , राह कोन सी पता नहीं
ठेहरा हूं जहां अभी , ये , जगह कोन सी पता नहीं

कदमों के निशा कुछ , पीछे छोड़ आया हूं
बस मंज़िल की तलाश में , कुछ नाते तोड़ आया हूं
वो गांव की मिट्टी, कोमल हवाएं, नदियों का पानी
बस मैं भी , ढूंढ़ते हुए मेरी अमर कहानी , ( मंजिल की तलाश में ) घर से बाहर निकल आया हूं ,


ये आसमान का रंग , अलग ह ज़रा शहर में
लोगों के मिजाज़ का रंग , अलग ह ज़रा शहर में
बांतो में मिठास हैं , मन में , जरा खटास हैं
शिर पर फितूर हैं , कुछ बड़ा करने का सुरूर हैं
यही छोटी सी दुनिया हैं सबकी , yupps , पर मंज़िल थोड़ी दूर हैं


हर सुबह नई चमक लाती हैं , और बस ज़रा सी जगाती हैं
इन नैनों को खोलती हैं , और बस सुरीला बोलती हैं
दिखाती हैं दुनिया के प्यारे रंग किसी रोज़
तो
किसी रोज़ काले बादलों से मिलवाती हैं

चलाती हैं हर राह पे , ये राह बोहोत बुड़बक बनाती हैं ,
मंज़िल के पास ले जा के भी , बोहोत दूर हो बताती हैं ,
क्यूं?
क्यूं ऐसा करती हैं ये राह ?
क्या कुछ सिखाना चाहती हैं...
या
सफ़र छोटा न लगे, इसलिए बस चलाती हैं ?

चलाती in sense ( चलते रहो मुसाफ़िर की तरह , कोई अपना पा ही लोगे ,
और मंज़िल से थके हारे किसी रोज़ अपनी मंज़िल बना ही लोगे )...

हा
मुसाफ़िर हूं राह का , ये , राह कोन सी पता नहीं
ठेहरा हूं जहां अभी , ये , जगह कोन सी पता नहीं
Chalte jaao ek din manjil mil hi jayegi
Musafir ki BHI Kismat ek din khil hi jayegi
( Bahut badia )
 
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