हुजूर आपका भी एहतराम करता चलूँ
इधर से गुज़रा था, सोचा सलाम करता चलूँ
निगाह-ओ-दिल की यही आखरी तमन्ना है
तुम्हारी ज़ुल्फ़ के साये में शाम करता चलूँ
उन्हें ये जिद के मुझे देख कर किसी को न देख
मेरा ये शौक के सबसे कलाम करता चलूँ
ये मेरे ख़्वाबों की दुनिया नहीं सही लेकिन
अब आ गया हूँ तो दो दिन कयाम करता चलूँ
इधर से गुज़रा था, सोचा सलाम करता चलूँ
निगाह-ओ-दिल की यही आखरी तमन्ना है
तुम्हारी ज़ुल्फ़ के साये में शाम करता चलूँ
उन्हें ये जिद के मुझे देख कर किसी को न देख
मेरा ये शौक के सबसे कलाम करता चलूँ
ये मेरे ख़्वाबों की दुनिया नहीं सही लेकिन
अब आ गया हूँ तो दो दिन कयाम करता चलूँ