कभी खामोश बैठोगे कभी कुछ गुनगुनाओगे,
मैं उतना याद आऊँगा मुझे जितना भुलाओगे।
कोई जब पूछ बैठेगा खामोशी का सबब तुमसे,
बहुत समझाना चाहोगे मगर समझा न पाओगे।
कभी दुनिया मुक्कमल बन के आएगी निगाहों में,
कभी मेरे कभी दुनिया की हर एक शह में पाओगे।
कहीं पर भी रहें हम तुम मोहब्बत फिर मोहब्बत है,
तुम्हें हम याद आयेंगे हमें तुम याद आओगे।
मैं उतना याद आऊँगा मुझे जितना भुलाओगे।
कोई जब पूछ बैठेगा खामोशी का सबब तुमसे,
बहुत समझाना चाहोगे मगर समझा न पाओगे।
कभी दुनिया मुक्कमल बन के आएगी निगाहों में,
कभी मेरे कभी दुनिया की हर एक शह में पाओगे।
कहीं पर भी रहें हम तुम मोहब्बत फिर मोहब्बत है,
तुम्हें हम याद आयेंगे हमें तुम याद आओगे।