इस बिखरन में
खुद को
समेट के रखना
कितना मुश्किल है।
किसी से
बिछड़ कर
खुद को
सहज रखना
कितना मुश्किल है।
इंतज़ार में
जिये जाना
कितना मुश्किल है।
रस्मों की तरह
जिंदगी निभाना
कितना मुश्किल है।
खुद से खुद ही
लड़े जाना
कितना मुश्किल है।
खुद को
समेट के रखना
कितना मुश्किल है।
किसी से
बिछड़ कर
खुद को
सहज रखना
कितना मुश्किल है।
इंतज़ार में
जिये जाना
कितना मुश्किल है।
रस्मों की तरह
जिंदगी निभाना
कितना मुश्किल है।
खुद से खुद ही
लड़े जाना
कितना मुश्किल है।