Thakur Shaab
Wellknown Ace
” गुज़र जायेगा ये दौर भी ज़रा सब्र तो रख !
जब खुशियाँ ही न रुकी तो ग़म की क्या औकात है !
जब खुशियाँ ही न रुकी तो ग़म की क्या औकात है !
“लोग कहते हैं दु:ख बुरा होता है जब भी आता है रुलाकर जाता है” गुज़र जायेगा ये दौर भी ज़रा सब्र तो रख !
जब खुशियाँ ही न रुकी तो ग़म की क्या औकात है !
“ये दिन भी क़यामत की तरह गुज़रा है” गुज़र जायेगा ये दौर भी ज़रा सब्र तो रख !
जब खुशियाँ ही न रुकी तो ग़म की क्या औकात है !
“जो लोग दर्द को समझते हैं” गुज़र जायेगा ये दौर भी ज़रा सब्र तो रख !
जब खुशियाँ ही न रुकी तो ग़म की क्या औकात है !
मुस्कुराते हुए इंसान को कभी जब देखना, हो सकता है रूमाल गिला मिले “” गुज़र जायेगा ये दौर भी ज़रा सब्र तो रख !
जब खुशियाँ ही न रुकी तो ग़म की क्या औकात है !
” ज़िन्दगी की हक़ीक़त को बस इतना ही जाना है , दर्द में अकेले हैं खुशियों में ज़माना है “” गुज़र जायेगा ये दौर भी ज़रा सब्र तो रख !
जब खुशियाँ ही न रुकी तो ग़म की क्या औकात है !
“न जाने किस दरबार का चिराग़ हूँ मैं , जिसका दिल करता है जलाकर छोड़ देता है “” गुज़र जायेगा ये दौर भी ज़रा सब्र तो रख !
जब खुशियाँ ही न रुकी तो ग़म की क्या औकात है !
” नाज़ुक लगते थे जो लोग, वास्ता पड़ा तो पत्थर के निकले“न जाने किस दरबार का चिराग़ हूँ मैं , जिसका दिल करता है जलाकर छोड़ देता है “