उदास कर रही है, कोई वजह धीरे-धीरे मुझमें शाम ढ़ल रही है, बेवजह धीरे-धीरे
मायूस होकर क्यूँ हवा चल रही है ये किसको ख़बर है, वो खफा चल रही है।
कैसे कहें हम, ये कैसे बताएँ ज़िंदगी नाराज़ हमसे, कौन पहली दफ़ा चल रही है।
पता नहीं है, होश में आँए, न आँए पलकें थकने लगीं हैं,अल-सुबह धीरे-धीरे
यूँ गुमसुम न बैठो, चलो फिर से मुस्कुराएँ रात होने लगी है, फिर जवाँ धीरे-धीरे
दो पल मिले थे, दो पल बचे हैं चलो कुछ लिखें, कुछ मिटाएँ, इस दफ़ा धीरे-धीरे...
मायूस होकर क्यूँ हवा चल रही है ये किसको ख़बर है, वो खफा चल रही है।
कैसे कहें हम, ये कैसे बताएँ ज़िंदगी नाराज़ हमसे, कौन पहली दफ़ा चल रही है।
पता नहीं है, होश में आँए, न आँए पलकें थकने लगीं हैं,अल-सुबह धीरे-धीरे
यूँ गुमसुम न बैठो, चलो फिर से मुस्कुराएँ रात होने लगी है, फिर जवाँ धीरे-धीरे
दो पल मिले थे, दो पल बचे हैं चलो कुछ लिखें, कुछ मिटाएँ, इस दफ़ा धीरे-धीरे...