कितना अच्छा हो
जो मैं उसका तकिया
बन जाऊँ
उसकी हर साँस
को महसूस कर पाऊँ
उसकी हंसी सुन पाऊँ
उसके अश्को को
समा लूँ खुद मैं
कभी उसकी बाहो में
महफूज हो जाऊं
कभी उसके होंठो की
नरमी को महसूस कर पाऊँ
कितना अच्छा हो...
कितना अच्छा हो
जो मैं हवा बन जाऊँ
जब भी मन करे
उसे अपनी गिरफ्त में
ले कर कस लूँ
जो कभी वो कांप जाए
उसे अपनी गर्माहट का
एहसास दे पाऊँ
जो कभी वो बेचैन
हो जाए
उसे शीतलता से
सराबोर कर पाऊं
कितना अच्छा हो...
कितना अच्छा हो
जो मैं एक दरख्त
हो जाऊं
मुझ पर बांधे
वो अपनी मन्नतो
का लाल धागा
कर ले आलिंगन मेरा
और मिल जाए मुझमे
जो हो जाए पूरी
उसकी हर आस
फिर आए वो
उस लाल धागे को
खोलने अपनी
उंगलियों से
कितना अच्छा हो...
कितना अच्छा हो
जो मैं एक मूरत बन जाऊँ
मुझमे ढूंढे वो अपने
इष्ट को
हर बार मेरे सजदे
में झुक जाए
रोज निहारे वो मुझे
रोज सँवारे मुझे
दूध ,दही रोज
मुझको भोग लगाएं
मेरी आँखों मे ढूंढे वो
अपने सारे जवाब
कितना अच्छा हो मैं
कृष्ण हो जाऊं
कितना अच्छा हो
वो मेरी बाँसुरी हो जाए...
जो मैं उसका तकिया
बन जाऊँ
उसकी हर साँस
को महसूस कर पाऊँ
उसकी हंसी सुन पाऊँ
उसके अश्को को
समा लूँ खुद मैं
कभी उसकी बाहो में
महफूज हो जाऊं
कभी उसके होंठो की
नरमी को महसूस कर पाऊँ
कितना अच्छा हो...
कितना अच्छा हो
जो मैं हवा बन जाऊँ
जब भी मन करे
उसे अपनी गिरफ्त में
ले कर कस लूँ
जो कभी वो कांप जाए
उसे अपनी गर्माहट का
एहसास दे पाऊँ
जो कभी वो बेचैन
हो जाए
उसे शीतलता से
सराबोर कर पाऊं
कितना अच्छा हो...
कितना अच्छा हो
जो मैं एक दरख्त
हो जाऊं
मुझ पर बांधे
वो अपनी मन्नतो
का लाल धागा
कर ले आलिंगन मेरा
और मिल जाए मुझमे
जो हो जाए पूरी
उसकी हर आस
फिर आए वो
उस लाल धागे को
खोलने अपनी
उंगलियों से
कितना अच्छा हो...
कितना अच्छा हो
जो मैं एक मूरत बन जाऊँ
मुझमे ढूंढे वो अपने
इष्ट को
हर बार मेरे सजदे
में झुक जाए
रोज निहारे वो मुझे
रोज सँवारे मुझे
दूध ,दही रोज
मुझको भोग लगाएं
मेरी आँखों मे ढूंढे वो
अपने सारे जवाब
कितना अच्छा हो मैं
कृष्ण हो जाऊं
कितना अच्छा हो
वो मेरी बाँसुरी हो जाए...
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