भारी बारिश में भीग कर आई थी वो,
हवाओं से कुछ सीख कर आई थी वो...
गले से लगाकर कुछ कह रही थी मुझसे,
मानो दुपट्टा हटाकर कुछ कह रही थी मुझसे...
कि आज तू घूम मेरे दिल के ऊपर,
जो किसी ने ना देखा उस तिल के ऊपर...
मेरे पैर से लेकर नाक की बाली तक,
मेरे कानों की बाली से होंठों की लाली तक...
सफ़र कर मुझमें, और घूमता जा...
छोड़ना मत मेरे जिस्म का एक हिस्सा भी तू,
बस आज मुझे चूमता जा...
फिर उतार कर मैं शर्ट अपना,
उसके भीगे जिस्म को पोंछने लगा था...
कैसे-कैसे प्यार करूँगा उससे, ये सोचने लगा था...
फिर उसे गले से लगाया,
उसे गोद में बिठाया...
और फिर सुकून के समंदर में कहीं खो गए थे हम...
बाहर कड़क रही थी बिजली बारिश में,
और अंदर एक-दूसरे से लिपटकर सुकून से सो गए थे हम...
हवाओं से कुछ सीख कर आई थी वो...
गले से लगाकर कुछ कह रही थी मुझसे,
मानो दुपट्टा हटाकर कुछ कह रही थी मुझसे...
कि आज तू घूम मेरे दिल के ऊपर,
जो किसी ने ना देखा उस तिल के ऊपर...
मेरे पैर से लेकर नाक की बाली तक,
मेरे कानों की बाली से होंठों की लाली तक...
सफ़र कर मुझमें, और घूमता जा...
छोड़ना मत मेरे जिस्म का एक हिस्सा भी तू,
बस आज मुझे चूमता जा...
फिर उतार कर मैं शर्ट अपना,
उसके भीगे जिस्म को पोंछने लगा था...
कैसे-कैसे प्यार करूँगा उससे, ये सोचने लगा था...
फिर उसे गले से लगाया,
उसे गोद में बिठाया...
और फिर सुकून के समंदर में कहीं खो गए थे हम...
बाहर कड़क रही थी बिजली बारिश में,
और अंदर एक-दूसरे से लिपटकर सुकून से सो गए थे हम...

