सुखे रेगिस्तान के मरुद्यान सी हो सकते थे तुम,
मनो जैसे तुम सुखद, मनोरम और थकाननाशक !
या फिर हो सकते थे स्वच्छ गंगा के समान,
पवित्र, शाश्वत और श्रद्धा से निपुण !
तुम हो सकते थे चिलचिलती गर्मियों में ठंडी हवाओं सी,
जैसे मधुर, सुहानी व मदस्तस्त !
या फिर तुम हो सकते थे किसी समंदर
के जल सी, खारा, अप्रिय और विनाशकारी !
लेकिन तुमने इन सबसे अलग,
चाँदनी रातों में किसी दोपहर का होना दूरस्थ किंतु चक्षुप्रिय !
तेज प्रकाश के आकर्षण को जब्त किया,
जिसे ना तो अनदेखा करना मेरे वश में था
और ना ही जिसे छूने मात्र जैसी मुझेमे वो ऊँचाई !
मनो जैसे तुम सुखद, मनोरम और थकाननाशक !
या फिर हो सकते थे स्वच्छ गंगा के समान,
पवित्र, शाश्वत और श्रद्धा से निपुण !
तुम हो सकते थे चिलचिलती गर्मियों में ठंडी हवाओं सी,
जैसे मधुर, सुहानी व मदस्तस्त !
या फिर तुम हो सकते थे किसी समंदर
के जल सी, खारा, अप्रिय और विनाशकारी !
लेकिन तुमने इन सबसे अलग,
चाँदनी रातों में किसी दोपहर का होना दूरस्थ किंतु चक्षुप्रिय !
तेज प्रकाश के आकर्षण को जब्त किया,
जिसे ना तो अनदेखा करना मेरे वश में था
और ना ही जिसे छूने मात्र जैसी मुझेमे वो ऊँचाई !