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स्त्री

Yug Purush

Favoured Frenzy
Chat Pro User
स्त्री का मन ब्लाउज के हुक मे फसा नहीं होता कि
जिसको खोलते ही उसका मन खुल जाए......
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न मंगलसूत्र की तरह गले में बंधा होता है कि उसके बंधते ही उसका मन भी बंध जाए.......

स्त्री का मन एक यात्रा है, और ये आप पर निर्भर है की आप कहां तक पहुंचते हो।।♥️
 
स्त्री का मन ब्लाउज के हुक मे फसा नहीं होता कि
जिसको खोलते ही उसका मन खुल जाए......
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न मंगलसूत्र की तरह गले में बंधा होता है कि उसके बंधते ही उसका मन भी बंध जाए.......


स्त्री का मन एक यात्रा है, और ये आप पर निर्भर है की आप कहां तक पहुंचते हो।।♥️
Bahut sundar baat kahi aapne :angel:
 
स्त्री का मन ब्लाउज के हुक मे फसा नहीं होता कि
जिसको खोलते ही उसका मन खुल जाए......
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न मंगलसूत्र की तरह गले में बंधा होता है कि उसके बंधते ही उसका मन भी बंध जाए.......


स्त्री का मन एक यात्रा है, और ये आप पर निर्भर है की आप कहां तक पहुंचते हो।।♥️
वो स्त्री है..........
सब सहती है और मुस्कराती है।
बदले में सिर्फ़ प्रेम चाहती है।

अपमान का हर कड़वा घूंट
गंगाजल समझ पी जाती है।

पर तुम समझ ही नहीं पाते
वह सच में क्या चाहती है।

ये रोज़ रोज़ काजल चूड़ी
साड़ी तो बस यूं ही मांगती है।
 
एक स्त्री तुमसे बदले में
थोडा़ सम्मान पाना चाहती है।

तुम ही मेरी जीवन शक्ति
हो ये कहलवाना चाहती है।

वो स्त्री है थोड़े में बहुत
कुछ जताना चाहती है।

कतरा कतरा करके अपना
घर बसाना चाहती है।

तुम्हारे दिल में छोटी सी
ही सही पर अपनी अलग
दुनिया बसाना चाहती है।

अपमान और उपेक्षा नहीं
बस थोडा़ सा प्यार और
सम्मान पाना चाहती है।
 
स्त्री का मन ब्लाउज के हुक मे फसा नहीं होता कि
जिसको खोलते ही उसका मन खुल जाए......
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न मंगलसूत्र की तरह गले में बंधा होता है कि उसके बंधते ही उसका मन भी बंध जाए.......


स्त्री का मन एक यात्रा है, और ये आप पर निर्भर है की आप कहां तक पहुंचते हो।।♥️
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वो स्त्री है..........
सब सहती है और मुस्कराती है।
बदले में सिर्फ़ प्रेम चाहती है।

अपमान का हर कड़वा घूंट
गंगाजल समझ पी जाती है।

पर तुम समझ ही नहीं पाते
वह सच में क्या चाहती है।

ये रोज़ रोज़ काजल चूड़ी
साड़ी तो बस यूं ही मांगती है।
कभी महबूबा, तो कभी मोहब्बत बन जाती हूं,
सूना हो मां का आंचल, तो ममता की मूरत बन जाती हूं।।
 
एक स्त्री तुमसे बदले में
थोडा़ सम्मान पाना चाहती है।

तुम ही मेरी जीवन शक्ति
हो ये कहलवाना चाहती है।

वो स्त्री है थोड़े में बहुत
कुछ जताना चाहती है।

कतरा कतरा करके अपना
घर बसाना चाहती है।

तुम्हारे दिल में छोटी सी
ही सही पर अपनी अलग
दुनिया बसाना चाहती है।

अपमान और उपेक्षा नहीं
बस थोडा़ सा प्यार और
सम्मान पाना चाहती है।
नारी ने ही संसार रचाया,
नारी ने सृष्टि को चलाया,
उसका यूं तिरस्कार न करो,
देह जलाकर पुरस्कार न दो।
 
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