मैं यह सोचकर उसके दर से उठा था,
कि रोक लगी, वह मना लेगी मुझको।
हवाओं में लहराता रहा मेरा दामन,
कि दामन पकड़कर बिठा लेगी मुझको।।
कदम ऐसे अंदाज से उठ रहे थे मेरे,
कि आवाज देकर बुला लेगी मुझको।
मगर उसने रोका ना वापस बुलाया,
ना दामन ही पकड़ा ना मुझको बिठाया।।
मैं आहिस्ता-आहिस्ता बढ़ता ही आया,
यहां तक की उससे जुदा हो गया मैं।
जुदा हो गया मैं सदा के लिए,
जुदा हो गया मैं....................।।
कि रोक लगी, वह मना लेगी मुझको।
हवाओं में लहराता रहा मेरा दामन,
कि दामन पकड़कर बिठा लेगी मुझको।।
कदम ऐसे अंदाज से उठ रहे थे मेरे,
कि आवाज देकर बुला लेगी मुझको।
मगर उसने रोका ना वापस बुलाया,
ना दामन ही पकड़ा ना मुझको बिठाया।।
मैं आहिस्ता-आहिस्ता बढ़ता ही आया,
यहां तक की उससे जुदा हो गया मैं।
जुदा हो गया मैं सदा के लिए,
जुदा हो गया मैं....................।।