सोचती हूं....
रंग चुराकर फिज़ाओं से, अब किस्मत सजा लूं! सन्नाटा कोई, पसरा हुआ है, दिल में कब से, हवा के राग से संगीत बना, अब गुनगुना लूं! कश्ती जिंदगी की, सूखी नदिया में खड़ी है, दरिया बादलों का, दे जो पानी, सागर भरा लूं ! जुस्तजू सब... जीने की... रखकर एक किनारे, रखकर एक आजाद कर दूजों से, खुद को खुद से मिला लूं!
रंग चुराकर फिज़ाओं से, अब किस्मत सजा लूं! सन्नाटा कोई, पसरा हुआ है, दिल में कब से, हवा के राग से संगीत बना, अब गुनगुना लूं! कश्ती जिंदगी की, सूखी नदिया में खड़ी है, दरिया बादलों का, दे जो पानी, सागर भरा लूं ! जुस्तजू सब... जीने की... रखकर एक किनारे, रखकर एक आजाद कर दूजों से, खुद को खुद से मिला लूं!