अब वो झोंके कहाँ सबा जैसे
आग है शहर की हवा जैसे,
शब सुलगती है दोपहर की तरह
चाँद, सूरज से जल बुझा जैसे,
मुद्दतों बाद भी ये आलम है
आज ही तू जुदा हुआ जैसे
इस तरह मंज़िलों से हूँ महरूम
मैं शरीक़े सफ़र न था जैसे,
अब भी वैसी है दूरी ए मंज़िल
साथ चलता हो रास्ता जैसे..!!