कोई चराग़ जलाता नहीं सलीक़े सेकिसी पे जान लुटानी थी ,सो लुटा आया,
ज़रा सी बात में किस किस का मशवरा लेता।
कोई चराग़ जलाता नहीं सलीक़े से
ग़ैरों से कहा तुम ने ग़ैरों से सुना तुम नेकोई चराग़ जलाता नहीं सलीक़े से
मगर सभी को शिकायत हवा से होती है।।
जाने क्यों लोग, किसी का दिल तोड़ देते हैं !ग़ैरों से कहा तुम ने ग़ैरों से सुना तुम ने
कुछ हम से कहा होता कुछ हम से सुना होता
मुझे तुझ से शिकायत भी है लेकिन ये भी सच हैजाने क्यों लोग, किसी का दिल तोड़ देते हैं !
अपनों से नाता तोड़ के, गैरों से जोड़ लेते हैं।।
गिला भी तुझ से बहुत है मगर मोहब्बत भीमुझे तुझ से शिकायत भी है लेकिन ये भी सच है
तुझे ऐ ज़िंदगी मैं वालिहाना चाहता हूँ
चाही थी दिल ने तुझ से वफ़ा कम बहुत ही कमगिला भी तुझ से बहुत है मगर मोहब्बत भी
वो बात अपनी जगह है ये बात अपनी जगह।।
दुनिया के सितम याद न अपनी ही वफ़ा यादचाही थी दिल ने तुझ से वफ़ा कम बहुत ही कम
शायद इसी लिए है गिला कम बहुत ही कम
रौशनी मुझ से गुरेज़ाँ है तो शिकवा भी नहींदुनिया के सितम याद न अपनी ही वफ़ा याद
अब मुझको नहीं कुछ भी मोहब्बत के सिवा याद।।
रौशनी मुझ से गुरेज़ाँ है तो शिकवा भी नहीं
मेरे ग़म-ख़ाने में कुछ ऐसा अँधेरा भी नहीं
शिकवा अपनों से किया जाता है ग़ैरों से नहींइक पतिंगे ने ये अपने रक़्स-ए-आख़िर में कहा
रौशनी के साथ रहिए रौशनी बन जाइए।।
अब घर भी नहीं घर की तमन्ना भी नहीं हैशिकवा अपनों से किया जाता है ग़ैरों से नहीं
आप कह दें तो कभी आप से शिकवा न करें
मैंने तो बस मोहब्बत ही की थी,एक मेरी तरफ से,
पछतायंगे इक रोज़ कड़ी धूप पड़ी तो,
जो लोग मुहब्बत का शज़र(वृक्ष) काट रहे है!!
सिर्फ़ शिकवे दिख रहे हैं ये नहीं दिखता तुझेअब घर भी नहीं घर की तमन्ना भी नहीं है
मुद्दत हुई सोचा था कि घर जाएँगे इक दिन।।
गलतफहमी की गुंजाईश नहीं सच्ची मोहब्बत में,मैंने तो बस मोहब्बत ही की थी,
फिर क्यों लग रहा है ऐसा,
कोई गुनाह किया हो जैसा
कहाँ आँसुओं की ये सौग़ात होगी,गलतफहमी की गुंजाईश नहीं सच्ची मोहब्बत में,
जहाँ किरदार हल्का हो वहां कहानी डूब जाती है !
एक दीवाने को जो आए हैं समझाने कईसिर्फ़ शिकवे दिख रहे हैं ये नहीं दिखता तुझे
तुझ से शिकवे रखने वाला तेरा दीवाना भी है