हाँ वही कोरा कागज़
जो कभी मोहब्बत ने
हुस्न की तवज्जो खातिर
फेंका था,
इश्क के कई मौसम बीते
हुए किस्से भी कई मशहूर
पर वो खाली कागज़
असल की मिट्टी में
सनता रहा,
बस किसी तरह
वक़्त के तूफ़ान
उसे उड़ा तितर-बितर
दब खोने नहीं देते थे,
इक रोज़ किसी ने
उस लावारिस कागज़ को उठा
लिख दी उस पर
कोई नज़्म,
अब आता जाता हर शख्स
उसे पढ़ मुस्कुरा कर
खुद का रिश्तेदार बताता है।
जो कभी मोहब्बत ने
हुस्न की तवज्जो खातिर
फेंका था,
इश्क के कई मौसम बीते
हुए किस्से भी कई मशहूर
पर वो खाली कागज़
असल की मिट्टी में
सनता रहा,
बस किसी तरह
वक़्त के तूफ़ान
उसे उड़ा तितर-बितर
दब खोने नहीं देते थे,
इक रोज़ किसी ने
उस लावारिस कागज़ को उठा
लिख दी उस पर
कोई नज़्म,
अब आता जाता हर शख्स
उसे पढ़ मुस्कुरा कर
खुद का रिश्तेदार बताता है।