रंगमंच जैसी जिंदगी हो गई है
कभी हंस के दिखाना है
कभी रो कर ..
बिना बात हंस भी नहीं सकते
दर्शकों को बुरा लग सकता है,
" अरे! तुम टुच्चे कलाकार हो,
तुमको पटकथा के अनुसार ही भाव-भंगिमा रखनी है,
जितना किरदार है उतना करो और चलते बनो .."
पर कलाकार के मन का क्या?
उसके अंदर का गुबार कब बाहर आयेगा?
किसी को परवाह नहीं,
खैर ..!
कभी हंस के दिखाना है
कभी रो कर ..
बिना बात हंस भी नहीं सकते
दर्शकों को बुरा लग सकता है,
" अरे! तुम टुच्चे कलाकार हो,
तुमको पटकथा के अनुसार ही भाव-भंगिमा रखनी है,
जितना किरदार है उतना करो और चलते बनो .."
पर कलाकार के मन का क्या?
उसके अंदर का गुबार कब बाहर आयेगा?
किसी को परवाह नहीं,
खैर ..!