कभी देहरी में सिमटे
कभी आंचल में लिपटे
ये ख्वाब मेरे
मेरे ही दामन से छूटे
कभी खुद को ये ढूंढे
कभी मुझको ये पूछे
कभी कोनों से झकते
कभी कोरो से रोते
ये ख्वाब मेरे
अपने ही ख्वाबों को ढोते
कभी बाते बनाते
कभी सब कुछ छिपाते
कभी जोरो से मुस्काते
कभी पत्थर से चुभ जाते
ये ख्वाब मेरे
आकर मुझको ही डसते
कभी तो गुनगुनाते
कभी ये ठहर जाते
कभी पतंग से ये उड़ जाते
कभी कट कर जमीं पर गिर जाते
ये ख्वाब मेरे
जैसे कच्चे से धागे
कभी आंचल में लिपटे
ये ख्वाब मेरे
मेरे ही दामन से छूटे
कभी खुद को ये ढूंढे
कभी मुझको ये पूछे
कभी कोनों से झकते
कभी कोरो से रोते
ये ख्वाब मेरे
अपने ही ख्वाबों को ढोते
कभी बाते बनाते
कभी सब कुछ छिपाते
कभी जोरो से मुस्काते
कभी पत्थर से चुभ जाते
ये ख्वाब मेरे
आकर मुझको ही डसते
कभी तो गुनगुनाते
कभी ये ठहर जाते
कभी पतंग से ये उड़ जाते
कभी कट कर जमीं पर गिर जाते
ये ख्वाब मेरे
जैसे कच्चे से धागे
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