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#मोहब्बत_24_कैरेट

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अमृता प्रीतम : " मुझे अपनाया क्यूँ नहीं ? "
साहिर का जबाब था :
" वो अफ़्साना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन
उसे इक ख़ूब-सूरत मोड़ दे कर छोड़ना अच्छा ."


कई बातें ऐसी होती हैं जिन्हें शब्दों की सज़ा नहीं देनी चाहिए ।

साहिर अमृता से सीधे सवाल करते हैं : " इमरोज़ की तुम्हारी ज़िन्दगी में क्या जगह है ? "
अमृता कहतीं हैं : " तुम्हारा प्यार मेरे लिए किसी पहाड़ की चोटी है पर चोटी पर ज्यादा देर खड़े नहीं रह सकते , बैठने को समतल जमीन भी चाहिए और इमरोज़ मेरे लिए समतल जमीन हैं. "

अमृता ये भी कहती हैं : " तुम एक ऐसे छायादार घने वृक्ष के समान हो, जिसके नीचे बैठ कर चैन और सुकून पाया जा सकता है पर रात नहीं गुजारी जा सकती . "
साहिर उनसे पूछते हैं : " इमरोज़ को पता है कि मैं यहाँ हूँ ? "
जबाब में अमृता कहती हैं : " जब बरसों तक उसकी पीठ पर मैं तुम्हारा नाम लिखती रही थी तो यहाँ की खामोशी से भी वो समझ गया होगा कि मैं तुम्हारे साथ हूँ . "

अमृता को खांसी आती है और साहिर कहते हैं : " पानी पी लो " .
अमृता कहती हैं : " तुम पिला दो."

किनारे रखे मटके से साहिर गिलास में पानी ले आते हैं पर कहते हैं : " तुम्हें पता है मुझे ऐसी लिजलिजी मुहब्बत पसंद नहीं . "

यानि साहिर का लिखा सबकुछ ठोस धरातल पर था । वायवीय नहीं था कुछ भी ।

साहिर फिर अमृता से पूछते हैं : 'तुम्हारे व्यक्तित्व में अन्दर की औरत ज्यादा प्रभावी है या कवियत्री ?'
अमृता कहती हैं : " याद है ,जब एक बार तुम्हें बुखार था और मैंने तुम्हारे गले और छाती पर विक्स मला था, उस वक़्त मैं सिर्फ एक औरत रह गयी थी और औरत ही बने रह जाना चाहती थी ."

अमृता ये भी कहती हैं : " हमारे बीच कई दीवार के साथ ,अदब की दीवार भी है . तुम उर्दू में लिखते हो और मैं पंजाबी में . जब 'सुनहड़े' को साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला तो मैंने सोचा ऐसे पुरस्कार का क्या फायदा, जिसके लिए लिखा, उसने तो पढ़ा ही नहीं ."
साहिर कहते हैं : " पंजाबी मेरी मातृभाषा है और मैं तुम्हारी लिखी हर नज़्म पढता हूँ , भले ही बतलाता नहीं ."

थोड़ी देर तक दोनों चुप बैठ रहते हैं पर उनके बीच की बहती प्रेमधारा और बोलती खामोशी दर्शक शिद्दत से महसूस करते हैं .

फिर एक 'ट्रंक कॉल' आता है और इस बार अमृता फोन उठाती हैं . साहिर के हार्ट अटैक की खबर है . दोस्तों के संग ताश की बाजी खेलते हुए वे दुनिया को विदा कह गए .

अमृता टेरेस पर वापस आ कर चौंक कर पूछती हैं : ' तुम कौन हो ? '
साहिर कहते हैं : ' तुमसे बिना विदा लिए कैसे चला जाता ? मेरी ज़िन्दगी की सारी जमा पूँजी तो तुम ही हो . '

[ अमृता प्रीतम और साहिर लुधियानवी के जीवन पर आधारित (नाटक) ' एक मुलाकात के कुछ अंश]
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अमृता प्रीतम : " मुझे अपनाया क्यूँ नहीं ? "
साहिर का जबाब था :
" वो अफ़्साना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन
उसे इक ख़ूब-सूरत मोड़ दे कर छोड़ना अच्छा ."


कई बातें ऐसी होती हैं जिन्हें शब्दों की सज़ा नहीं देनी चाहिए ।

साहिर अमृता से सीधे सवाल करते हैं : " इमरोज़ की तुम्हारी ज़िन्दगी में क्या जगह है ? "
अमृता कहतीं हैं : " तुम्हारा प्यार मेरे लिए किसी पहाड़ की चोटी है पर चोटी पर ज्यादा देर खड़े नहीं रह सकते , बैठने को समतल जमीन भी चाहिए और इमरोज़ मेरे लिए समतल जमीन हैं. "

अमृता ये भी कहती हैं : " तुम एक ऐसे छायादार घने वृक्ष के समान हो, जिसके नीचे बैठ कर चैन और सुकून पाया जा सकता है पर रात नहीं गुजारी जा सकती . "
साहिर उनसे पूछते हैं : " इमरोज़ को पता है कि मैं यहाँ हूँ ? "
जबाब में अमृता कहती हैं : " जब बरसों तक उसकी पीठ पर मैं तुम्हारा नाम लिखती रही थी तो यहाँ की खामोशी से भी वो समझ गया होगा कि मैं तुम्हारे साथ हूँ . "

अमृता को खांसी आती है और साहिर कहते हैं : " पानी पी लो " .
अमृता कहती हैं : " तुम पिला दो."

किनारे रखे मटके से साहिर गिलास में पानी ले आते हैं पर कहते हैं : " तुम्हें पता है मुझे ऐसी लिजलिजी मुहब्बत पसंद नहीं . "

यानि साहिर का लिखा सबकुछ ठोस धरातल पर था । वायवीय नहीं था कुछ भी ।

साहिर फिर अमृता से पूछते हैं : 'तुम्हारे व्यक्तित्व में अन्दर की औरत ज्यादा प्रभावी है या कवियत्री ?'
अमृता कहती हैं : " याद है ,जब एक बार तुम्हें बुखार था और मैंने तुम्हारे गले और छाती पर विक्स मला था, उस वक़्त मैं सिर्फ एक औरत रह गयी थी और औरत ही बने रह जाना चाहती थी ."

अमृता ये भी कहती हैं : " हमारे बीच कई दीवार के साथ ,अदब की दीवार भी है . तुम उर्दू में लिखते हो और मैं पंजाबी में . जब 'सुनहड़े' को साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला तो मैंने सोचा ऐसे पुरस्कार का क्या फायदा, जिसके लिए लिखा, उसने तो पढ़ा ही नहीं ."
साहिर कहते हैं : " पंजाबी मेरी मातृभाषा है और मैं तुम्हारी लिखी हर नज़्म पढता हूँ , भले ही बतलाता नहीं ."

थोड़ी देर तक दोनों चुप बैठ रहते हैं पर उनके बीच की बहती प्रेमधारा और बोलती खामोशी दर्शक शिद्दत से महसूस करते हैं .

फिर एक 'ट्रंक कॉल' आता है और इस बार अमृता फोन उठाती हैं . साहिर के हार्ट अटैक की खबर है . दोस्तों के संग ताश की बाजी खेलते हुए वे दुनिया को विदा कह गए .

अमृता टेरेस पर वापस आ कर चौंक कर पूछती हैं : ' तुम कौन हो ? '
साहिर कहते हैं : ' तुमसे बिना विदा लिए कैसे चला जाता ? मेरी ज़िन्दगी की सारी जमा पूँजी तो तुम ही हो . '

[ अमृता प्रीतम और साहिर लुधियानवी के जीवन पर आधारित (नाटक) ' एक मुलाकात के कुछ अंश]
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Bahut khub surat , padh k acha Laga , thank you
 
Isme thanks kaisa

Itni khubsurat kahani ka wo hissa jisme saar nihit ho aur bakamaal ho...

Padhna hi chahiye logon ko

To bs le aaye sabke liye..
Share kia tab to padh paai to thanks to banta he ,
Har prem Kahani ka milan to khubsurat Hoti he par kabhi kabhi bichod BHI bahut pyaara sa lagta he agar use sahi maineme nibha Sako to , ye padh k Thoda bhabuk to ho gai me par usse BHI acha dono ko jis tarha se pes Kiya writer ne laa- Jabab tha
 
Share kia tab to padh paai to thanks to banta he ,
Har prem Kahani ka milan to khubsurat Hoti he par kabhi kabhi bichod BHI bahut pyaara sa lagta he agar use sahi maineme nibha Sako to , ye padh k Thoda bhabuk to ho gai me par usse BHI acha dono ko jis tarha se pes Kiya writer ne laa- Jabab tha
जरूर ही बेहतरीन लेखन है ये...
अमृता प्रीतम जी अद्भुत कवियत्री और लेखिका
साहिर लुधियानवी बेहतरीन शायर और लेखक

साहिर जी ने तो फिल्मों के लिए भी कई गाने लिखे है, सुनो तो बस खो से जाओगे।

दोनों ही विलक्षण प्रतिभा के धनी।
 
अमृता प्रीतम : " मुझे अपनाया क्यूँ नहीं ? "
साहिर का जबाब था :
" वो अफ़्साना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन
उसे इक ख़ूब-सूरत मोड़ दे कर छोड़ना अच्छा ."


कई बातें ऐसी होती हैं जिन्हें शब्दों की सज़ा नहीं देनी चाहिए ।

साहिर अमृता से सीधे सवाल करते हैं : " इमरोज़ की तुम्हारी ज़िन्दगी में क्या जगह है ? "
अमृता कहतीं हैं : " तुम्हारा प्यार मेरे लिए किसी पहाड़ की चोटी है पर चोटी पर ज्यादा देर खड़े नहीं रह सकते , बैठने को समतल जमीन भी चाहिए और इमरोज़ मेरे लिए समतल जमीन हैं. "

अमृता ये भी कहती हैं : " तुम एक ऐसे छायादार घने वृक्ष के समान हो, जिसके नीचे बैठ कर चैन और सुकून पाया जा सकता है पर रात नहीं गुजारी जा सकती . "
साहिर उनसे पूछते हैं : " इमरोज़ को पता है कि मैं यहाँ हूँ ? "
जबाब में अमृता कहती हैं : " जब बरसों तक उसकी पीठ पर मैं तुम्हारा नाम लिखती रही थी तो यहाँ की खामोशी से भी वो समझ गया होगा कि मैं तुम्हारे साथ हूँ . "

अमृता को खांसी आती है और साहिर कहते हैं : " पानी पी लो " .
अमृता कहती हैं : " तुम पिला दो."

किनारे रखे मटके से साहिर गिलास में पानी ले आते हैं पर कहते हैं : " तुम्हें पता है मुझे ऐसी लिजलिजी मुहब्बत पसंद नहीं . "

यानि साहिर का लिखा सबकुछ ठोस धरातल पर था । वायवीय नहीं था कुछ भी ।

साहिर फिर अमृता से पूछते हैं : 'तुम्हारे व्यक्तित्व में अन्दर की औरत ज्यादा प्रभावी है या कवियत्री ?'
अमृता कहती हैं : " याद है ,जब एक बार तुम्हें बुखार था और मैंने तुम्हारे गले और छाती पर विक्स मला था, उस वक़्त मैं सिर्फ एक औरत रह गयी थी और औरत ही बने रह जाना चाहती थी ."

अमृता ये भी कहती हैं : " हमारे बीच कई दीवार के साथ ,अदब की दीवार भी है . तुम उर्दू में लिखते हो और मैं पंजाबी में . जब 'सुनहड़े' को साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला तो मैंने सोचा ऐसे पुरस्कार का क्या फायदा, जिसके लिए लिखा, उसने तो पढ़ा ही नहीं ."
साहिर कहते हैं : " पंजाबी मेरी मातृभाषा है और मैं तुम्हारी लिखी हर नज़्म पढता हूँ , भले ही बतलाता नहीं ."

थोड़ी देर तक दोनों चुप बैठ रहते हैं पर उनके बीच की बहती प्रेमधारा और बोलती खामोशी दर्शक शिद्दत से महसूस करते हैं .

फिर एक 'ट्रंक कॉल' आता है और इस बार अमृता फोन उठाती हैं . साहिर के हार्ट अटैक की खबर है . दोस्तों के संग ताश की बाजी खेलते हुए वे दुनिया को विदा कह गए .

अमृता टेरेस पर वापस आ कर चौंक कर पूछती हैं : ' तुम कौन हो ? '
साहिर कहते हैं : ' तुमसे बिना विदा लिए कैसे चला जाता ? मेरी ज़िन्दगी की सारी जमा पूँजी तो तुम ही हो . '

[ अमृता प्रीतम और साहिर लुधियानवी के जीवन पर आधारित (नाटक) ' एक मुलाकात के कुछ अंश]
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Reading this made my day !
 
अमृता प्रीतम जी का लिखा हुआ हो और गुलजार जी की आवाज़ हो तो इसको कहेंगे सोने पर सुहागा ...।

यह कविता उन्होंने अपने आखिरी दिनों में इमरोज़ जी के लिए लिखी थी । इस कविता का एक एक लफ्ज़ प्यार का प्रतीक है ।
अमृता बहुत बीमार थी उन दिनों ...वह अपने आखिरी दिनों में अक्सर तंद्रा में रहती थी । कभी कभी एक शब्द ही बोलती लेकिन इमरोज़ के लिए हमेशा मौजूद रहती पहले की तरह ही हालांकि इमरोज़ पहले की तरह उनसे बात नही कर पाते थे पर अपनी कविता से उनसे बात करते रहते .। .एक बार खुशवंत सिंह जो अपने घर में अक्सर छोटी छोटी सभा गोष्टी करते रहते थे ..इन दोनों को कई बार बुलाया पर यह दोनों नही जाते थे तब उन्होंने पूछा अमृता को फ़ोन कर के पूछा था कि तुम बाहर क्यों नही निकलते हो ..क्या करते रहते हो सारा दिन तुम लोग ?
अमृता ने जवाब दिया गल्लां ""[बातें ]उन्होंने हंस कर कहा इतनी बातें करते हो तुम दोनों की खतम नही होती है तब अमृता सिर्फ़ हंस कर रह गई ..पता नही दोनों कैसी क्या बातें करते थे कभी शब्दों के माध्यम से कभी खामोशी के जरिये पर दोनों को साथ रहना पसंद था एक दूसरे के आस पास रहना पसंद था ..

मैं तुझे फ़िर मिलूंगी
कहाँ किस तरह पता नही
शायद तेरी तख्यिल की चिंगारी बन
तेरे केनवास पर उतरुंगी
या तेरे केनवास पर
एक रहस्यमयी लकीर बन
खामोश तुझे देखती रहूंगी
या फ़िर सूरज कि लौ बन कर
तेरे रंगो में घुलती रहूंगी
या रंगो कि बाहों में बैठ कर
तेरे केनवास से लिपट जाउंगी
पता नहीं कहाँ किस तरह
पर तुझे जरुर मिलूंगी

या फ़िर एक चश्मा बनी
जैसे झरने से पानी उड़ता है
मैं पानी की बूंदें
और एक ठंडक सी बन कर
तेरे सीने से लगूंगी

मैं और कुछ नही जानती
पर इतना जानती हूँ
कि वक्त जो भी करेगा
यह जनम मेरे साथ चलेगा
तेरे बदन पर मलूंगी
यह जिस्म खतम होता है
तो सब कुछ खत्म हो जाता है

पर चेतना के धागे
कायनात के कण होते हैं

मैं उन कणों को चुनुंगी

मैं तुझे फ़िर मिलूंगी !!
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"My heart broke in his chest"
~yehuda amichai
मुझे यह पंक्ति बेहद पसंद है। यही जो येहूदा अमिचाई एक कविता में कहते हैं-
"उसके सीने में मेरा दिल टूट गया।"
मैं इसे थोड़ा बदल कर कहूँ तो ऐसे कहूँगा-
"उसके सीने में मेरा दिल दफ़न हो गया।"

आप सोचेंगे कैसे होता है यह? कैसे चला जाता है आपका दिल किसी और सीने में और फिर उसको इतना अख्तियार कैसे होता है कि उसे चूर चूर कर दे?

यूँ तो दिल भी कोई ऐसी अलग सी चीज़ है नहीं। ऐसा विज्ञान ने बता ही दिया है। दिल, मन, हृदय और दिमाग सब हमारे ही फैलाए जाल हैं। कायदे से ये जो है बुध्दि और जिसके साथ आता है विवेक उस की सहमति से परे जब हम कोई काम करते हैं तो उस बेवकूफ़ी को ढंकने के लिए एक आड़ ढूंढ कर उसे दिल का नाम दे देते हैं। यहाँ हम अपनी मनमर्जियों को जस्टिफाई कर रहे होते हैं। अपने समर्पण को स्वीकारने का बहाना खोज रहे होते हैं। यूँ जैसे खुद को बहला रहे हों।

पर जब हम लगाव के गाढ़े दौर से गुज़र रहे होते हैं;
जब हमें अच्छा लग रहा होता है सब कुछ;
जब हम कायदे से गुनगुना रहे होते हैं भूली हुई गीतों की सबसे कोमल पंक्तियाँ;
जब पलकें मुस्कान से खिल उठती हैं;
जब किसी की बेमतलब बातों से खिल उठते हैं;
तब हम कभी नहीं सोचते कि बुद्धि जिस निर्मोह या निरासक्ति की प्रैक्टिस करवाती है यहाँ बिसार चुके हैं।

हमें लगता है वह कोई हमारा हो रहा है। हमें लगता है उस पर अपना अधिकार जम रहा है पर सच पूछिए तो हम अपने आप को खोते जाते हैं।
और बरसों बाद जब लौट कर देखते हैं तो उसके सीने में सिमटे अपने दिल की टूटी किरचें चुभती तो हैं कि कैसे पाने की जगह गँवाया ही हमने। कैसे जो लगता था वह तो था ही नहीं। या फिर जो था वह सुंदर था, भरा पूरा था पर बाद में बड़ा खाली कर गया। रीता गया। दिल उसके सीने में ही दफ़्न रहा हम कहीं और बढ़ गए।

***
हर बार मन हारने से पहले बुद्धि चेताती तो है कि एक दिन मुड़ कर देखने पर सवाल उठेगा क्या यह मैं ही था? यह कैसे हुआ? पर अगर दिल धडकना भूल जाए तो फिर जीवन कितना सूना होगा। इसी जीने के वास्ते हम अपना दिल उसके सीने में टूटने को हार आते हैं। बार बार।
 
कहानी: रुके रुके से कदम
“पवन… मैं आ रही हूं, तुम मेरा इंतज़ार करना.” कहते हुए पूर्वा ने फोन रखा ही था कि तभी उसे कुणाल की आवाज़ सुनाई दी, “किससे बात हो रही है? और कहां जाने की तैयारी है?” कुणाल ने उसके बगल में बैठते हुए पूछा.

“कुछ नहीं, बस एक सहेली से मिलने का प्रोग्राम बना रही थी.” पूर्वा ने कहा. कुणाल ने पूर्वा के बालों को सहलाते हुए कहा, “अच्छी बात है, दोस्तों से मिलते रहना चाहिए, रिश्तों में गर्माहट बनी रहती है. पूर्वा…” कुणाल ने पूर्वा का हाथ अपने हाथ में लेकर कहा, “मैं भले ही कभी यह न जता सकूं कि मैं तुमसे कितना प्यार करता हूं, पर मैं जानता हूं कि तुम जानती हो कि तुम ही मेरी जीवनी शक्ति हो. मेरा घर, परिवार, साहस सब तुमसे है.” पूर्वा ने नज़रें झुकाकर पूछा, “आज यह बताने की ज़रूरत क्यों पड़ी?”

कुणाल ने सिर झटकते हुए कहा, “कुछ ख़ास नहीं, बस मन में एक बात आई तो मैंने कह दी.”
कुणाल ने उठते हुए कहा, “चलो, तुम्हें कॉलेज छोड़ता हुआ ऑफ़िस निकल जाऊंगा.”

कार में बैठते हुए पूर्वा ने कुणाल को देखा. सांवला रंग, सामान्य क़द, गालों में पड़ती गहराइयों और भूरी आंखों वाला कुणाल. विवाह के पांच बरस बीत जाने के बाद अब भी ऐसा लगता है मानो वह कोई अजनबी हो. पूर्वा जितना कुणाल को पकड़ने की कोशिश करती, वह उतना ही दूर छिटक जाता था.
जितनी बार वह यह सोचती कि अब वह कुणाल को पूरी तरह जानने लगी है, उतनी ही बार कुणाल का व्यवहार उसे चौंका देता था, ठीक शादी के बाद की पहली रात की तरह.

जब वह दुल्हन बनी, सहमी-सिमटी-सी बैठी अपने पति का इंतज़ार कर रही थी और कुणाल ने आते ही कहा था, “पूर्वा, तुम कपड़े बदल लो, थक गई होगी!” पूर्वा चौंक पड़ी थी, हिंदी फ़िल्मों में देखी गई सुहागरात की तरह वह अपने मन में न जाने क्या-क्या सपने संजोये बैठी थी, कुणाल ने आगे कहा था, “तुम मुझे ग़लत मत समझना पूर्वा, पर हमारी शादी इतनी जल्दी में हुई है कि मुझे तुम्हें जानने और समझने का मौक़ा ही नहीं मिला. इसलिए मैं चाहता हूं कि पहले हम एक-दूसरे को ठीक तरह से जान लें, समझ लें, फिर पति-पत्नी का रिश्ता कायम करें!” पूर्वा को कुणाल की बात तर्कपूर्ण लगी थी, फिर भी वह चौंक तो गई थी.

फिर शादी के छह माह बाद उन दोनों की सुहागरात मनी थी.
“पूर्वा… पूर्वा… कहां खो गई? कॉलेज आ गया!” कुणाल ने उसे हिलाया तो वह अतीत के घेरों से निकल गाड़ी से उतर पड़ी.
अंदर आते ही उसकी मित्र प्रो. रक्षा ने उसका रास्ता रोक कर पूछा, “आज पवनजी नहीं आए?”
“हां, आज हमें जाना है..!” पूर्वा ने कहा तो रक्षा एकटक उसे ही देखती रह गई.
“पूर्वाऽऽ क्या कह रही हो? तुमने कुणाल को छोड़ने का फैसला कर ही लिया?”
“हां… और मैं जानती हूं कि इससे कुणाल को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ने वाला!”
“पूर्वा… तुम शायद आज तक कुणाल को समझ ही नहीं पाई हो. अरे, इतना सुलझा हुआ इंसान तो बड़ी क़िस्मत से मिलता है और तुम हो कि उसे ठोकर मार कर जा रही हो!”
पूर्वा के मन में रह-रह कर रक्षा की बात कौंध रही थी. “क्या मैं सचमुच आज तक कुणाल को समझ नहीं पाई! पर मैंने कोशिश तो पूरी की थी एक अच्छी पत्नी बनने की. कुणाल सचमुच ही कुछ अलग था. वह पूर्वा को अपना दोस्त मानता था और अपनी निजी स्वतंत्रता बनाये हुए उसे भी निजी स्वतंत्रता देना चाहता था. पर पूर्वा के संस्कारों को यही बात तो खटकती थी. वह एक ऐसे परिवार से आई थी, जहां पति को ईश्‍वर का दर्जा दिया जाता था. उनकी हर बात को बिना किसी प्रतिवाद के माना जाता था. पूर्वा को भी एक ऐसा ही पति चाहिए था, जो उसे रोके-टोके, उसके नखरे उठाये, उससे झगड़ा करे… पर कुणाल इससे बिल्कुल अलग था.

ऐसा नहीं था कि वह पूर्वा की ज़रूरतों का ख़याल नहीं रखता था या उससे प्यार नहीं करता था, पर कुछ तो ऐसा था जो पूर्वा को हमेशा खटकता रहता था. पूर्वा को याद हो आया कि जब कुणाल व्यापार को लेकर कुछ ज़्यादा व्यस्त हो गया था और उसे पर्याप्त समय नहीं दे पाता था, तो उसने ख़ुद ही पूर्वा से कहा था, “पूर्वा, तुम कोई नौकरी कर लो! इससे तुम्हारी पढ़ाई का भी सदुपयोग हो जायेगा और तुम्हारा मन भी लगा रहेगा.” पूर्वा फिर चौंक पड़ी थी. ख़ैर, पूर्वा ने नौकरी कर ही ली.
“मैडम… मैडम! आपका फ़ोन है मैडम.” पवन का फ़ोन होगा, सोचकर पूर्वा ने फ़ोन उठाया तो उधर से कुणाल की आवाज़ सुनकर फिर चौंक पड़ी, “पूर्वा तुम ठीक तो हो न?” “हां ठीक हूं, क्यों पूछा?”
“पता नहीं क्यों, आज मन बहुत घबरा रहा है. पूर्वा, मुझे ऐसा लगा कि तुम परेशान हो… ख़ैर, तुम आज जल्दी घर लौट आना. मैं भी आने की कोशिश करूंगा.” पूर्वा सोचने लगी, “तुम्हें मेरी परेशानी का आभास कैसे हो गया कुणाल? क्या अब भी मेरे मन के तार तुम्हारे मन से जुड़े हैं?” पूर्वा ने फ़ोन रखा ही था कि फिर घंटी बजी, “हैलो पूर्वा, पवन बोल रहा हूं, तुम ५ बजे तक एयरपोर्ट पहुंच जाना, मैं तुम्हें वहीं मिलूंगा!”
पूर्वा ने पूछा, “तुम कहां हो?”
“घर… घर…”
“ठीक है, तो मैं चार बजे तक तुम्हारे घर ही आ जाऊंगी, वहां से साथ ही चलेंगे.” इतना कह कर पूर्वा ने फ़ोन रख दिया.

एक वर्ष पुरानी ही तो मुलाक़ात है उसकी पवन से. उसके ही कॉलेज में अंग्रेज़ी प्रो़फेसर हैं पवन. गोरा रंग, आकर्षक व्यक्तित्व, आंखों पर चश्मा और ज़ुबान पर शैली, कीट्स और वडर्सवर्थ की रोमांटिक कविताएं, यह है पवन की पहचान. पहली बार ही मिलने पर पवन की आंखों में अपने लिए कुछ ख़ास भाव पाये थे पूर्वा ने. पवन से मिलकर ही पूर्वा को यह एहसास हुआ था कि ३० का आंकड़ा पार करने के बाद भी, वह सुंदर और आकर्षक है. पवन हर उस बात में माहिर था, जिसकी तमन्ना पूर्वा को हमेशा से रही थी. वह पवन के चुंबकीय आकर्षण में खिंचती ही चली जा रही थी. एक बार पवन पूर्वा को छोड़ने घर आया था तो कुणाल से उसकी मुलाक़ात हो गई थी. पूर्वा ने सोचा, शायद कुणाल जलन महसूस करेगा या कुछ कहेगा, पर कुणाल ने कुछ नहीं कहा.
✍️✍️✍️✍️कुणाल आदमी है या देवता! कभी असंयमित नहीं, कभी अव्यवहारिक नहीं, कभी असंतुलित नहीं! वह कुणाल से चीख-चीख कर कहना चाहती थी कि मुझे पति रूप में एक सामान्य इंसान चाहिए था, देवता नहीं! बुरे इंसान तो फिर भी सहन हो जाते हैं, पर देवताओं का देवत्व कई बार भस्म कर जाता है.
और इस घटना के बाद न जाने किस कुढ़न में पूर्वा के क़दम पवन की ओर बढ़ते ही चले गये थे. घंटों पार्क में बैठे बतियाते रहना, अक्सर रेस्टॉरेन्ट में खाना उनकी दिनचर्या हो गई थी. और ऐसे ही एक दिन, जब दोनों किसी होटल में बैठे कॉफ़ी पी रहे थे, तो अचानक कुणाल किसी के साथ वहां आ गया था. पवन उसे देख कर सकपका गया. कुणाल उनके पास आकर बोला, “अकेले-अकेले कॉफ़ी पी जा रही है!” पवन ने झेंपते हुए कहा, “आइए बैठिये न!”
कुणाल ने हंसते हुए कहा, “अरे नहीं, मैं तो मज़ाक कर रहा था. मैं रुक नहीं पाऊंगा, जरा जल्दी में हूं.” कहते हुए कुणाल तेज़ी से वहां से निकल गया. पवन ने एक लंबी सांस लेते हुए कहा, “आज तो तुम्हारी खैर नहीं पूर्वा.” पूर्वा ने व्यंग्य से होंठ टेढ़े करते हुए कहा, “कुणाल मुझसे कुछ नहीं कहेगा. उसे इस सबसे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता!”
पवन ने चकित होकर कहा, “कुणाल की जगह मैं होता तो सारा घर सिर पर उठा लेता, मेरी पत्नी किसी और के साथ घूमे-फिरे, यह मैं कभी सहन नहीं कर सकता.” पूर्वा ने मुस्कुरा कर कहा था, “शायद इसीलिए मैं तुम्हारे साथ हूं. जानते हो पवन, तुम वह सब हो जो कुणाल नहीं है. तुम अच्छे भी हो और बुरे भी. पर कुणाल स़िर्फ और स़िर्फ अच्छा है, पऱफेक्ट है और उसका यही पऱफेक्शन मुझसे सहन नहीं होता.”
धीरे-धीरे पूर्वा और पवन इतने क़रीब आ गये थे कि जब पवन ने पूर्वा से कहा कि, “छोड़ दो कुणाल को, हम इस शहर से कहीं दूर चले जायेंगे और वहां शादी कर लेंगे.” तब पूर्वा उसकी बात से इंकार न कर सकी थी. और आज जब जाने का व़क़्त क़रीब आ गया, तो पूर्वा न जाने अतीत के किन ख़यालों में डूबी बैठी थी. पूर्वा ने घड़ी देखी तो साढ़े तीन बज चुके थे. वह पवन के घर की ओर चल दी. वह जा तो पवन के पास रही थी, पर उसके दिमाग़ में स़िर्फ और स़िर्फ कुणाल ही घूम रहा था.
वह सोच रही थी, “कैसी होगी कुणाल की प्रतिक्रिया जब वह यह ख़बर सुनेगा? सह पायेगा यह सदमा? इस सबमें भी वह अपनी ही ग़लती तलाशेगा? मैं तो हमेशा से ही उससे दूर जाना चाहती थी, पर आज जब दूर जा रही हूं तो मन क्यों उसकी ओर खिंचता जा रहा है? तो क्या मैं पवन से प्यार नहीं करती…?” पूर्वा न जाने कितनी देर इन्हीं सवालों में उलझी रहती, अगर टैक्सी वाला उसे उतरने को न कहता.
वह धीमे क़दमों से पवन की ओर बढ़ गई. पवन ने उसे कंधों से पकड़ते हुए कहा, “देर कर दी, अब जल्दी करो, एयरपोर्ट बहुत दूर है.” पूर्वा हौले से उसका हाथ हटाते हुए बोली, “मैं तुम्हारे साथ नहीं चल सकती पवन!” पवन ने चौंक कर पूछा, “क्यों, क्या हो गया? क्या तुम मुझसे प्यार नहीं करती?”
पूर्वा ने विरक्त सी हंसी हंसते हुए कहा, “प्यार… पता नहीं… पहले भी करती थी या नहीं?”
पवन चौंक पड़ा, “क्या कह रही हो पूर्वा?”
पर पवन की बात को अनसुना करते हुए पूर्वा अपनी ही रौ में कहे जा रही थी, “… कुणाल के अहम् को चोट पहुंचाने के लिए, उसकी भावनाओं को तकलीफ़ पहुंचाने के लिए, मैं अपनी हदें पार करने चली थी, पर आज जब सच में जाने का व़क़्त आया, तो ऐसा लग रहा है कि कुणाल ने मेरी जड़ों को बहुत गहरे कहीं थाम रखा था, जिसके कारण ही मेरी शाखायें पवन को छू पाईं, उन्हें प्यार कर पाईं और फिर न जाने कब मुझमें यह घमंड आ गया कि मैं अपनी जड़ों के बिना भी जी सकती हूं… पर आज जब जड़ों से बिछड़ने का समय आया तो पता चला कि मैं, मेरी शाखायें सब इन जड़ों की ही नेमत हैं, इनके बिना मेरा कोई अस्तित्व ही नहीं रहेगा. मुझे माफ़ कर देना पवन…. मैं अपनी जड़ों यानी कुणाल से बिछड़ कर नहीं रह सकती. मैं तुम्हारा भी धन्यवाद करना चाहती हूं, क्योंकि तुम्हारे ही कारण मैं कुणाल को जान पाई हूं! अलविदा पवन!” इतना कह कर, पवन को अचंभित-सा छोड़ कर, पूर्वा वहां से चली गई.
घर पहुंच कर पूर्वा ने देखा कि सारा कमरा उसकी पसंद के जरबेरा और रजनीगंधा के फूलों से सजा हुआ है और कुणाल बेचैनी से कमरे में टहल रहा है. पूर्वा को आया देखकर कुणाल ने आतुरता से उसे अपनी बांहों में भर लिया. कुणाल से इस तरह का व्यवहार अनपेक्षित था पूर्वा के लिए.
कुणाल पूर्वा के गाल, माथे, आंखों और होंठों को बेतहाशा चूमते हुए कह रहा था. “मैं जानता था कि तुम लौट आओगी पूर्वा! तुम मुझे यूं अकेला छोड़ कर जा ही नहीं सकती हो.”
पूर्वा सहम गई, “तो क्या… तुम सब जानते थे?” उसने कांपते स्वर से पूछा. कुणाल ने कहा, “हां… आज सुबह मैंने तुम्हारी सारी बातें सुन ली थीं!” पूर्वा की आंखों से आंसू बह रहे थे.
उसने कुणाल के हाथ थाम पूछा, “तो तुमने मुझे रोका क्यों नहीं? क्या इतना भी अधिकार नहीं समझते तुम मुझ पर?”

कुणाल ने उसका चेहरा अपने हाथों में भरते हुए कहा, “चाहता था कि रोक लूं, पर फिर लगा कि अगर तुम्हें जाना ही है तो मेरे रोकने का क्या फ़ायदा! और मैं तुम्हें ख़ुश देखना चाहना था. चाहे जिस तरह, चाहे जिसके भी साथ! पर सच कहूं पूर्वा… तो मैं बहुत डर गया था. अगर तुम सचमुच चली जाती तो मेरा क्या होता? पर अब… मैं कोशिश करूंगा अपने को बदलने की. ठीक वैसा ही, जैसा तुम चाहो!” पूर्वा ने मुस्कुरा कर कुणाल का माथा चूमते हुए कहा, “नहीं, तुम्हें बदलने की ज़रूरत नहीं है, मुझे तुम वैसे ही स्वीकार हो जैसे तुम हो- निश्छल, बच्चे की तरह! ग़लत तो मैं थी, जो समझ नहीं सकी, तुम मुझे माफ़..!” वह आगे कुछ न कह सकी, कुणाल ने उसके होंठों पर अपने होंठ जो रख दिए थे.-
 
"हां....यही प्यार है....

लीजिए आपका नींबू पानी.....मुस्कुराते हुए सुधा ने रोज की तरह मार्निंग वाक से लौटे अपने पति मोहन से कहा थैंक्स यार .... कहते हुए मोहन ने भी मुस्कुराते हुए नींबू पानी लिया और घट घट करते हुए पी गया


अरे बैठो कहा चली मोहन ने सुधा से कहां तो वह बोली नाश्ता बनाने जा रही हूं....

नाश्ता....अच्छा सुनो आज नाश्ते में बेसन का हलवा बना लो....जैसे ही मोहन ने यह कहा तो सुधा चौंक कर पीछे की और मुड़ी उसे अपने कानों पर यकीन नहीं हुआ

क्या.... क्या कहा आप ने बेसन का हलवा....जनाब यहां तक मुझे पता है आपको बेसन का हलवा कभी भी पसंद नहीं था तो फिर.... आप कब से बेसन का हलवा खाने लगे....

हां सच में पसंद तो नहीं था लेकिन जब से प्रीति भाभी के यहां बेसन का हलवा खाया तब से मुझे अच्छा भी अच्छा लगने लगा...

अच्छा जी .... चलिए देर आएं दुरुस्त आएं....कहकर मुस्कुरा कर सुधा रसोईघर की और बढ़ गई अब कढ़ाई में बेसन भुने और खूशबू ना उड़े ऐसा हो ही नहीं सकता ऊपर से गुड़ की चाशनी....अभी सुधा ने हलवा तैयार किया ही था कि पड़ोस में रहनेवाली प्रीति भाभी वहां आ पहुंची मानो उन्हें खूशबू खींच लाई हो....

दरवाजे पर प्रीति भाभी को देखकर सुधा उनका स्वागत करते हुए बोली... अरे भाभी आप.... आइए...आइए ना

बहुत सही समय पर आई है आप.... देखिए मैंने भी आज बेसन का हलवा बनाया है लीजिए चखकर बताइए कि आपके बनाए हलवे जैसा स्वादिष्ट बना है या नही

क्या....मेरे जैसे बनाएं....सुबह सुबह मैं ही मिली तुम्हें मजाक उड़ाने के लिए... मैंने तो अपनी जिंदगी में कभी बेसन का हलवा बनाया तक नही.... मुझे आता ही नहीं

क्या.... मगर ये तो .... सुधा अपनी बात पूरी करती तब तक मोहन नहाकर कपड़े बदलकर कमरे से बाहर निकल कर आया और सामने प्रीति भाभी को देखकर बोला... अरे भाभीजी आप ... नमस्ते कहकर उनके पैरों को छूकर आशीर्वाद लेने लगा ... आशीर्वाद लेने के बाद जैसे ही उसकी नजर सुधा के हाथों पर गयी तो वह चौंक गया क्योंकि उसके हाथों में बेसन के हलवे की कटोरी थी जो वो स्वाद चखाने के लिए प्रीति भाभी को दे रही थी

सुधा ने आंख झपकाते हुए मोहन को यूं देखा जैसे पूछ रही हो कि यह क्या चक्कर है आपने मुझसे झूठ क्यों बोला...की आप ने प्रीति भाभी के यहां बेसन का हलवा खाया था जो बहुत स्वादिष्ट बना था

मोहन सारी स्थिति को भांपते हुए सुधा के पास पहुंचा और उसके कंधों पर हाथ रखकर बोला...अब ऐसे गुस्से से मत देखो यार... मै ऐसा नहीं कहता तो क्या तुम अपना मनपसंद बेसन का हलवा बनाती...मुझे मम्मी पापा ने बताया कि तुम्हे बेसन कख हलवा बहुत पसंद है लेकिन ये जानकर की मुझे बेसन का हलवा पसंद नहीं है हमेशा अपनी इच्छा को मारकर यही कहती रही कि अकेले के लिए कौन बनाएं... मैंने दो तीन बार बोला भी कि तुम अपने लिए बनाकर खा लिया करो लेकिन तुमने कभी नही बनाया इसलिए मैंने यह तरीका अपनाया... और देखो जैसे ही मैंने कहा मुझे बेसन का हलवा बड़ा स्वादिष्ट लगा तो तुमने तुरंत ही बना दिया आज मैं तुम्हारे साथ हलवा खाऊंगा कहकर मोहन ने कटोरी में से चम्मच भरकर सुधा के मुंह में डाल दिया और फिर स्वयं के मुंह में चम्मच भरकर....और स्वाद लेते हुए कहा...यार सचमुच बहुत स्वादिष्ट बना है ...ओह सौरी ... भाभीजी आप भी खाकर देखिए ना सुधा भाभी के लिए

खाऊंगी जरुर खाऊंगी....मगर फिलहाल तो मेरा दिल खुशियों से भर दिया तुम दोनों ने .... हमेशा यूंही खुश रहो और सुधा याद से मेरे लिए घर में लेकर जरुर आना कहकर मुस्कुराते हुए प्रीति भाभी वहां से चली गई

उनके जाने के बाद सुधा भीगी हुई पलकों को साफ करते हुए मोहन का हाथ पकड़ कर बोली आपको बेसन का हलवा पसंद नहीं है तो आप मत खाइए मैं वादा करती हूं अपने लिए बना लिया करूंगी मेरे लिए अपना मन मारने की कोई जरूरत नहीं आपको...

मोहन ने सुधा को चूमते हुए कहा .... जानती हो सुधा जब मम्मी जी यहां आई थी तो बातों बातों में उन्होंने अचानक उसदिन जब मैं अपनी मनपसंद कटहल की सब्जी खाने के लिए पूरा कटहल ले आया था तब उन्होंने बताया था कि तुम्हे कभी भी कटहल खाना अच्छा लगता ही नहीं था बल्कि जिस दिन तुम्हारे घर कटहल बनता था तो तुम्हारे लिए कुछ अलग बनाया जाता था मगर यहां आकर जब तुम्हें पता चला मुझे कटहल बेहद पसंद हैं तो तुमने भी ऐसे जताते हुए खाया जैसे तुम्हें भी कटहल की सब्जी बहुत स्वादिष्ट लगती है सुधा शादी के बाद एक लड़की अपनी सभी पसंद अपने पति और उसके परिवार से जोड़ कर बना लेती है तो क्या एक लड़का अपनी पत्नी के लिए खुद को थोड़ा बहुत नहीं बदल सकता अब तो मैंने सोच लिया है

अबसे तुम्हारी तमाम पसंदीदा चीजें मेरी भी पसंद बनी रहेगी और मैं अपनी सोच से पीछे नहीं हट सकता और मैडम... केवल एक चम्मच से पेट नहीं भरता जल्दी से थाली भरकर लाओ बहुत भूख लग रही है... कहकर मोहन मुस्कुरा दिया तो सुधा भी आंखे पोछंते हुए बोली... सचमुच आज तो मैं भी भरपेट खाऊंगी मुझे भी बहुत भूख लगी है थोड़ी देर में दोनों एक दूसरे को प्यार से देखते हुए स्वादिष्ट बेसन के हलवे का मजा ले रहे थे.
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चांद और चकोर के प्रेम की कहानी किसने न सुनी होगी. दुनिया में जहां प्रेम का बात होगी वहां चांद और चकोर को खूब याद किया जायेगा. दुनिया भर में चांद और चकोर के प्रेम की खूब कहानियां कही जाती हैं. उत्तराखंड के पहाड़ में चांद और चकोर के प्रेम की कही जाने वाली एक दिलचस्प कहानी कुछ ऐसी है-
बड़ी मिन्नतों के बाद जब सूरज के बेटी हुई तो ज्योतिषों ने उसके साथ एक दुःख भी जोड़ दिया. कहा कि दोनों कभी साथ नहीं निकल सकते थे. सूरज और चांद के साथ निकलने का दिन धरती पर कयामत के दिन के तौर पर दर्ज हुआ इसलिये सूरज ने अपनी बेटी के रहने के लिये दूर एक पहाड़ की चोटी को चुना. बड़ी खुबसुरत सी दिखने वाली इस चोटी को चांदकोट कहते थे.

चांदकोट में चांद दो बलवान भैंसों के साथ अकेले रहती थी. वहीं खेती करती, चारा उगाती और अपनी भैंसों के साथ रहा करती. दूध की सफेदी जैसी उजली चांद, पालक के टुक्कों जैसी कोमल थी पर उसके जीवन में जेठ के दिनों जैसी उदासी थी. उसके रूप पर आकाश के सारे राजकुमार मरते थे. सूरज को तो बादल खूब पंसद था उसने बिना चांद से पूछे ही चुपके से उसका रिश्ता बादल से कर दिया था.

एक बार सूरज के घर धरती से एक फटेहाल राजकुमार आया. सूरज ने जब उससे उसके आने का कारण पूछा तो राजकुमार बोला- मेरा इस दुनिया में कोई नहीं, मुझे कोई काम दे दो और अपने यहां रहने की जगह भी दे दो. फटेहाल राजकुमार कई दिनों से भूखा और प्यासा था. उसका हाल देखकर सूरज को उसपर दया आ गयी और कहा- चांदकोट में मेरी बेटी चांद रहती है तुम वहां जाओ और उसकी भैंसों के लिये चारा उगाओ और खाने के लिये खेती करो.

राजकुमार चांदकोट की ओर चल पड़ा. आज से पहले चांदकोट पर कोई आदमी न आया था. जब चांद ने उसे देखा तो उसे चांदकोट पर कदम न रखने को कहा पर राजकुमार न रुका. राजकुमार को चांद के पास आता देख चांद की दोनों भैंसों ने राजकुमार पर हमला करने में देर न की. राजकुमार ने दोनों भैंसों को उनकी नुकीली और मोटी सींग से पकड़कर नियंत्रित किया. राजकुमार का साहस देखकर चांद बड़ी प्रभावित हुई और उसने भैंसों और राजकुमार के बीच के द्वन्द्व को रोक दिया. चांद ने उससे उसके चांदकोट आने का कारण पूछा तो राजकुमार ने बताया कि वह बड़ा अभागा राजकुमार है उसका दुनिया में कोई नहीं इसलिए वह सूरज से मदद मांगने गया था उसी ने दया दिखाते हुए उसे उसकी सेवा के लिये भेजा है.
ठीक है पर तुमको मुझसे दूरी पर रहना होगा क्योंकि मैं किसी आदमी की छाया में नहीं रह सकती, चांद ने कहा. धरती से आये राजकुमार ने उसकी बात पर हामी भरी और अपने काम पर जुट गया. वह कभी चांद के करीब न आया पर चाँद हर दिन उसे काम करते हुये निहारती रहती. धीरे-धीरे चांद के भीतर उसके करीब जाने का डर भी कम होता रहा न जाने कैसे उसके जीवन की उदासी भी कम होती रही. एक दिन जब चांद धरती से आये राजकुमार को निहार रही थी तो दूर घास काट रहे राजकुमार को देख छेड़ती हुई बोली- अरे घास काटने वाले लड़के, तुमको घास काटने के सिवा भी कुछ आता है?

धरती से आया लड़का एकदम से ठिठका और कुछ जवाब न दिया. बस चांद को देखता रहा. चांद उसके पास गयी और पास बैठने की जगह बनाई और हाथी के दातों के बने पासे निकाले. दोनों साथ बैठकर खेलने लगे.

उस दिन के बाद से दोनों हर रोज बैठकर पासे खेलते और खूब हँसते. चांदकोट की पहाड़ी के आस-पास बुरुंज खिलने लगे, न्यौली चिड़िया के गाने हवाओं में सुनाई देने लगे. चांदकोट की पहाड़ी में प्रेम की बयार बहने लगी चांद और धरती का राजकुमार एक-दूजे से प्रेम करने लगे. चांद और धरती के राजकुमार के प्रेम की बातें आसमान में तरह-तरह से उड़ने लगी और ख़बर बादल तक पहुंच गयी.

बादल सीधा सूरज के पास पहुंचा और चांद की शिकायत करते हुये सूरज को उसका वादा याद दिलाने लगा. सूरज को जब चांद और धरती के राजकुमार के बारे में पता चला तो उसे खूब क्रोध आया. उसने उसी दिन चांद और बादल का विवाह करने की ठानी. जब सूरज ने चांद को अपना फैसला सुनाया तो वह खूब रोई. मतवाला बादल तो चांद को कभी पंसद ही न था. पर सूरज ने उसकी एक न सुनी.

बादल बारात लेकर चांदकोट की पहाड़ी पर आया और चांद और बादल के विवाह का मौका आया. सूरज ने बादल की खूब आवाभगत की और बादल के साथ सात रंगों के वचन लेने को चाँद को बुलाने लोगों को भेजा. चांद कहीं न मिली. लोगों ने उसे सब जगह ढूंढा पर वह न मिली. सूरज के आदमी चारों दिशाओं में गये और आखिर में उन्हें चांदकोट के सबसे ऊंचे पेड़ पर लटका हुआ चांद का शरीर मिला. मौत के बाद भी चांद उजली और सुंदर लग रही थी.

धरती से आये राजकुमार ने चांद को नीचे उतारा और तब तक उससे लिपटा रहा जब तक कि सूरज के लोगों ने उसे उससे अलग न किया. सूरज के लोग चांद का शरीर लेकर चले गये. धरती के राजकुमार ने उनका पीछा किया. नदी के किनारे चांद की चिता सजी हुई थी. जैसे ही चांद की चिता में आग लगी धरती का राजकुमार जलती चिता में कूद गया. कहते हैं धरती के राजकुमार की रूह एक पक्षी में बदल गई दुनिया उसे चकोर नाम से जानती है जो आज भी अपनी चांद को ढूंढ़ता फिरता है.
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चांद और चकोर के प्रेम की कहानी किसने न सुनी होगी. दुनिया में जहां प्रेम का बात होगी वहां चांद और चकोर को खूब याद किया जायेगा. दुनिया भर में चांद और चकोर के प्रेम की खूब कहानियां कही जाती हैं. उत्तराखंड के पहाड़ में चांद और चकोर के प्रेम की कही जाने वाली एक दिलचस्प कहानी कुछ ऐसी है-
बड़ी मिन्नतों के बाद जब सूरज के बेटी हुई तो ज्योतिषों ने उसके साथ एक दुःख भी जोड़ दिया. कहा कि दोनों कभी साथ नहीं निकल सकते थे. सूरज और चांद के साथ निकलने का दिन धरती पर कयामत के दिन के तौर पर दर्ज हुआ इसलिये सूरज ने अपनी बेटी के रहने के लिये दूर एक पहाड़ की चोटी को चुना. बड़ी खुबसुरत सी दिखने वाली इस चोटी को चांदकोट कहते थे.

चांदकोट में चांद दो बलवान भैंसों के साथ अकेले रहती थी. वहीं खेती करती, चारा उगाती और अपनी भैंसों के साथ रहा करती. दूध की सफेदी जैसी उजली चांद, पालक के टुक्कों जैसी कोमल थी पर उसके जीवन में जेठ के दिनों जैसी उदासी थी. उसके रूप पर आकाश के सारे राजकुमार मरते थे. सूरज को तो बादल खूब पंसद था उसने बिना चांद से पूछे ही चुपके से उसका रिश्ता बादल से कर दिया था.

एक बार सूरज के घर धरती से एक फटेहाल राजकुमार आया. सूरज ने जब उससे उसके आने का कारण पूछा तो राजकुमार बोला- मेरा इस दुनिया में कोई नहीं, मुझे कोई काम दे दो और अपने यहां रहने की जगह भी दे दो. फटेहाल राजकुमार कई दिनों से भूखा और प्यासा था. उसका हाल देखकर सूरज को उसपर दया आ गयी और कहा- चांदकोट में मेरी बेटी चांद रहती है तुम वहां जाओ और उसकी भैंसों के लिये चारा उगाओ और खाने के लिये खेती करो.

राजकुमार चांदकोट की ओर चल पड़ा. आज से पहले चांदकोट पर कोई आदमी न आया था. जब चांद ने उसे देखा तो उसे चांदकोट पर कदम न रखने को कहा पर राजकुमार न रुका. राजकुमार को चांद के पास आता देख चांद की दोनों भैंसों ने राजकुमार पर हमला करने में देर न की. राजकुमार ने दोनों भैंसों को उनकी नुकीली और मोटी सींग से पकड़कर नियंत्रित किया. राजकुमार का साहस देखकर चांद बड़ी प्रभावित हुई और उसने भैंसों और राजकुमार के बीच के द्वन्द्व को रोक दिया. चांद ने उससे उसके चांदकोट आने का कारण पूछा तो राजकुमार ने बताया कि वह बड़ा अभागा राजकुमार है उसका दुनिया में कोई नहीं इसलिए वह सूरज से मदद मांगने गया था उसी ने दया दिखाते हुए उसे उसकी सेवा के लिये भेजा है.
ठीक है पर तुमको मुझसे दूरी पर रहना होगा क्योंकि मैं किसी आदमी की छाया में नहीं रह सकती, चांद ने कहा. धरती से आये राजकुमार ने उसकी बात पर हामी भरी और अपने काम पर जुट गया. वह कभी चांद के करीब न आया पर चाँद हर दिन उसे काम करते हुये निहारती रहती. धीरे-धीरे चांद के भीतर उसके करीब जाने का डर भी कम होता रहा न जाने कैसे उसके जीवन की उदासी भी कम होती रही. एक दिन जब चांद धरती से आये राजकुमार को निहार रही थी तो दूर घास काट रहे राजकुमार को देख छेड़ती हुई बोली- अरे घास काटने वाले लड़के, तुमको घास काटने के सिवा भी कुछ आता है?

धरती से आया लड़का एकदम से ठिठका और कुछ जवाब न दिया. बस चांद को देखता रहा. चांद उसके पास गयी और पास बैठने की जगह बनाई और हाथी के दातों के बने पासे निकाले. दोनों साथ बैठकर खेलने लगे.

उस दिन के बाद से दोनों हर रोज बैठकर पासे खेलते और खूब हँसते. चांदकोट की पहाड़ी के आस-पास बुरुंज खिलने लगे, न्यौली चिड़िया के गाने हवाओं में सुनाई देने लगे. चांदकोट की पहाड़ी में प्रेम की बयार बहने लगी चांद और धरती का राजकुमार एक-दूजे से प्रेम करने लगे. चांद और धरती के राजकुमार के प्रेम की बातें आसमान में तरह-तरह से उड़ने लगी और ख़बर बादल तक पहुंच गयी.

बादल सीधा सूरज के पास पहुंचा और चांद की शिकायत करते हुये सूरज को उसका वादा याद दिलाने लगा. सूरज को जब चांद और धरती के राजकुमार के बारे में पता चला तो उसे खूब क्रोध आया. उसने उसी दिन चांद और बादल का विवाह करने की ठानी. जब सूरज ने चांद को अपना फैसला सुनाया तो वह खूब रोई. मतवाला बादल तो चांद को कभी पंसद ही न था. पर सूरज ने उसकी एक न सुनी.

बादल बारात लेकर चांदकोट की पहाड़ी पर आया और चांद और बादल के विवाह का मौका आया. सूरज ने बादल की खूब आवाभगत की और बादल के साथ सात रंगों के वचन लेने को चाँद को बुलाने लोगों को भेजा. चांद कहीं न मिली. लोगों ने उसे सब जगह ढूंढा पर वह न मिली. सूरज के आदमी चारों दिशाओं में गये और आखिर में उन्हें चांदकोट के सबसे ऊंचे पेड़ पर लटका हुआ चांद का शरीर मिला. मौत के बाद भी चांद उजली और सुंदर लग रही थी.

धरती से आये राजकुमार ने चांद को नीचे उतारा और तब तक उससे लिपटा रहा जब तक कि सूरज के लोगों ने उसे उससे अलग न किया. सूरज के लोग चांद का शरीर लेकर चले गये. धरती के राजकुमार ने उनका पीछा किया. नदी के किनारे चांद की चिता सजी हुई थी. जैसे ही चांद की चिता में आग लगी धरती का राजकुमार जलती चिता में कूद गया. कहते हैं धरती के राजकुमार की रूह एक पक्षी में बदल गई दुनिया उसे चकोर नाम से जानती है जो आज भी अपनी चांद को ढूंढ़ता फिरता है.
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Bahut khubsurat kahanj he, chakor chakor kehte sunithi par chakor ki kahani kabhi suni naj thi, thak you for shareing this story
 
अमृता प्रीतम : " मुझे अपनाया क्यूँ नहीं ? "
साहिर का जबाब था :
" वो अफ़्साना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन
उसे इक ख़ूब-सूरत मोड़ दे कर छोड़ना अच्छा ."


कई बातें ऐसी होती हैं जिन्हें शब्दों की सज़ा नहीं देनी चाहिए ।

साहिर अमृता से सीधे सवाल करते हैं : " इमरोज़ की तुम्हारी ज़िन्दगी में क्या जगह है ? "
अमृता कहतीं हैं : " तुम्हारा प्यार मेरे लिए किसी पहाड़ की चोटी है पर चोटी पर ज्यादा देर खड़े नहीं रह सकते , बैठने को समतल जमीन भी चाहिए और इमरोज़ मेरे लिए समतल जमीन हैं. "

अमृता ये भी कहती हैं : " तुम एक ऐसे छायादार घने वृक्ष के समान हो, जिसके नीचे बैठ कर चैन और सुकून पाया जा सकता है पर रात नहीं गुजारी जा सकती . "
साहिर उनसे पूछते हैं : " इमरोज़ को पता है कि मैं यहाँ हूँ ? "
जबाब में अमृता कहती हैं : " जब बरसों तक उसकी पीठ पर मैं तुम्हारा नाम लिखती रही थी तो यहाँ की खामोशी से भी वो समझ गया होगा कि मैं तुम्हारे साथ हूँ . "

अमृता को खांसी आती है और साहिर कहते हैं : " पानी पी लो " .
अमृता कहती हैं : " तुम पिला दो."

किनारे रखे मटके से साहिर गिलास में पानी ले आते हैं पर कहते हैं : " तुम्हें पता है मुझे ऐसी लिजलिजी मुहब्बत पसंद नहीं . "

यानि साहिर का लिखा सबकुछ ठोस धरातल पर था । वायवीय नहीं था कुछ भी ।

साहिर फिर अमृता से पूछते हैं : 'तुम्हारे व्यक्तित्व में अन्दर की औरत ज्यादा प्रभावी है या कवियत्री ?'
अमृता कहती हैं : " याद है ,जब एक बार तुम्हें बुखार था और मैंने तुम्हारे गले और छाती पर विक्स मला था, उस वक़्त मैं सिर्फ एक औरत रह गयी थी और औरत ही बने रह जाना चाहती थी ."

अमृता ये भी कहती हैं : " हमारे बीच कई दीवार के साथ ,अदब की दीवार भी है . तुम उर्दू में लिखते हो और मैं पंजाबी में . जब 'सुनहड़े' को साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला तो मैंने सोचा ऐसे पुरस्कार का क्या फायदा, जिसके लिए लिखा, उसने तो पढ़ा ही नहीं ."
साहिर कहते हैं : " पंजाबी मेरी मातृभाषा है और मैं तुम्हारी लिखी हर नज़्म पढता हूँ , भले ही बतलाता नहीं ."

थोड़ी देर तक दोनों चुप बैठ रहते हैं पर उनके बीच की बहती प्रेमधारा और बोलती खामोशी दर्शक शिद्दत से महसूस करते हैं .

फिर एक 'ट्रंक कॉल' आता है और इस बार अमृता फोन उठाती हैं . साहिर के हार्ट अटैक की खबर है . दोस्तों के संग ताश की बाजी खेलते हुए वे दुनिया को विदा कह गए .

अमृता टेरेस पर वापस आ कर चौंक कर पूछती हैं : ' तुम कौन हो ? '
साहिर कहते हैं : ' तुमसे बिना विदा लिए कैसे चला जाता ? मेरी ज़िन्दगी की सारी जमा पूँजी तो तुम ही हो . '

[ अमृता प्रीतम और साहिर लुधियानवी के जीवन पर आधारित (नाटक) ' एक मुलाकात के कुछ अंश]
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Nice story bro, Keep writing
 
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