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मैं स्त्री हूं (Women's Day special)

Rockzz ✨श्वेतराग✨

खराब किस्मत का बादशाह (King of bad luck)
Senior's
Chat Pro User
अबला हूं सबला हूं
चाहे जो कहो पर मैं स्त्री हूं

पूर्ण हूं अपूर्ण हूं
आदि भी तो अनादि भी
सम्पूर्ण सृष्टि भी मैं ही हूं
कभी मिश्री की डली सी मीठी
कभी हरी लाल मिर्च सी तीखी
कभी नदी बन पाप धोती हूं
कभी झील के पानी सी ठहरी रहती हूं
कभी समुद्र सी बहती सबको
अपनी आगोश में समाहित करती हूं
कभी हिम की तरह ठोस तो
कभी मोम सी पिघलती रहती हूं

जब तप जाऊं तो सुखी बंजर भी हूं मैं

कभी बेमौसम बारिश सी बरसाती भी मैं
बल मुझमें इतना के बन धरा
सबका भार सहती हूं मैं
शक्ति इतनी के भोले भी अधूरे मेरे बिना
मासूम इतनी के सीता की तरह छली गई
क्रोध इतना के बन काली संहार करती मैं
अपनी कोख में एक और अंश को बोती मैं
पुरुष को पुरुषत्व भी देती मैं
बचपन का वो अनुराग भी मैं

सारा संसार मुझसे ही चलता है
फिर भी संसार में अपने ही
वजूद को ढूंढती भी मैं
कहीं शब्दो से लज्जित होती मैं
कहीं आंखो से निर्वस्त्र होती मैं
स्त्री हूं मैं जो स्त्री से ही दबाई गई
कभी वस्तु की तरह मोल भी लगाया
तो कभी भरी सभा मैं घसीटा भी गया
ताकत भी बनी तो कभी कमजोरी भी मैं
पूजी भी गई पर रही बस स्त्री ही मैं


(महिला दिवस पर विशेष)
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अबला हूं सबला हूं
चाहे जो कहो पर मैं स्त्री हूं

पूर्ण हूं अपूर्ण हूं
आदि भी तो अनादि भी
सम्पूर्ण सृष्टि भी मैं ही हूं
कभी मिश्री की डली सी मीठी
कभी हरी लाल मिर्च सी तीखी
कभी नदी बन पाप धोती हूं
कभी झील के पानी सी ठहरी रहती हूं
कभी समुद्र सी बहती सबको
अपनी आगोश में समाहित करती हूं
कभी हिम की तरह ठोस तो
कभी मोम सी पिघलती रहती हूं

जब तप जाऊं तो सुखी बंजर भी हूं मैं

कभी बेमौसम बारिश सी बरसाती भी मैं
बल मुझमें इतना के बन धरा
सबका भार सहती हूं मैं
शक्ति इतनी के भोले भी अधूरे मेरे बिना
मासूम इतनी के सीता की तरह छली गई
क्रोध इतना के बन काली संहार करती मैं
अपनी कोख में एक और अंश को बोती मैं
पुरुष को पुरुषत्व भी देती मैं
बचपन का वो अनुराग भी मैं

सारा संसार मुझसे ही चलता है
फिर भी संसार में अपने ही
वजूद को ढूंढती भी मैं
कहीं शब्दो से लज्जित होती मैं
कहीं आंखो से निर्वस्त्र होती मैं
स्त्री हूं मैं जो स्त्री से ही दबाई गई
कभी वस्तु की तरह मोल भी लगाया
तो कभी भरी सभा मैं घसीटा भी गया
ताकत भी बनी तो कभी कमजोरी भी मैं
पूजी भी गई पर रही बस स्त्री ही मैं


(महिला दिवस पर विशेष)
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Thnx itni payar dene ke liye ladkiyon ko....
 
अबला हूं सबला हूं
चाहे जो कहो पर मैं स्त्री हूं

पूर्ण हूं अपूर्ण हूं
आदि भी तो अनादि भी
सम्पूर्ण सृष्टि भी मैं ही हूं
कभी मिश्री की डली सी मीठी
कभी हरी लाल मिर्च सी तीखी
कभी नदी बन पाप धोती हूं
कभी झील के पानी सी ठहरी रहती हूं
कभी समुद्र सी बहती सबको
अपनी आगोश में समाहित करती हूं
कभी हिम की तरह ठोस तो
कभी मोम सी पिघलती रहती हूं

जब तप जाऊं तो सुखी बंजर भी हूं मैं

कभी बेमौसम बारिश सी बरसाती भी मैं
बल मुझमें इतना के बन धरा
सबका भार सहती हूं मैं
शक्ति इतनी के भोले भी अधूरे मेरे बिना
मासूम इतनी के सीता की तरह छली गई
क्रोध इतना के बन काली संहार करती मैं
अपनी कोख में एक और अंश को बोती मैं
पुरुष को पुरुषत्व भी देती मैं
बचपन का वो अनुराग भी मैं

सारा संसार मुझसे ही चलता है
फिर भी संसार में अपने ही
वजूद को ढूंढती भी मैं
कहीं शब्दो से लज्जित होती मैं
कहीं आंखो से निर्वस्त्र होती मैं
स्त्री हूं मैं जो स्त्री से ही दबाई गई
कभी वस्तु की तरह मोल भी लगाया
तो कभी भरी सभा मैं घसीटा भी गया
ताकत भी बनी तो कभी कमजोरी भी मैं
पूजी भी गई पर रही बस स्त्री ही मैं


(महिला दिवस पर विशेष)
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अबला हूं सबला हूं
चाहे जो कहो पर मैं स्त्री हूं

पूर्ण हूं अपूर्ण हूं
आदि भी तो अनादि भी
सम्पूर्ण सृष्टि भी मैं ही हूं
कभी मिश्री की डली सी मीठी
कभी हरी लाल मिर्च सी तीखी
कभी नदी बन पाप धोती हूं
कभी झील के पानी सी ठहरी रहती हूं
कभी समुद्र सी बहती सबको
अपनी आगोश में समाहित करती हूं
कभी हिम की तरह ठोस तो
कभी मोम सी पिघलती रहती हूं

जब तप जाऊं तो सुखी बंजर भी हूं मैं

कभी बेमौसम बारिश सी बरसाती भी मैं
बल मुझमें इतना के बन धरा
सबका भार सहती हूं मैं
शक्ति इतनी के भोले भी अधूरे मेरे बिना
मासूम इतनी के सीता की तरह छली गई
क्रोध इतना के बन काली संहार करती मैं
अपनी कोख में एक और अंश को बोती मैं
पुरुष को पुरुषत्व भी देती मैं
बचपन का वो अनुराग भी मैं

सारा संसार मुझसे ही चलता है
फिर भी संसार में अपने ही
वजूद को ढूंढती भी मैं
कहीं शब्दो से लज्जित होती मैं
कहीं आंखो से निर्वस्त्र होती मैं
स्त्री हूं मैं जो स्त्री से ही दबाई गई
कभी वस्तु की तरह मोल भी लगाया
तो कभी भरी सभा मैं घसीटा भी गया
ताकत भी बनी तो कभी कमजोरी भी मैं
पूजी भी गई पर रही बस स्त्री ही मैं


(महिला दिवस पर विशेष)
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Beautiful
 
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