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मैं... मैं हूं....मैं ही रहूंगी

Rockzz ✨श्वेतराग✨

Epic Legend
Senior's
Chat Pro User
एक बेहद खूबसूरत कविता मिली,
लेखिका का नाम पता नहीं चला।
एक बार जरूर पढ़ें...

मैं,

मैं हूँ ,
मैं ही रहूँगी।
मै
"राधा" नहीं बनूंगी,
मेरी प्रेम कहानी में,,,
किसी और का पति हो,
रुक्मिनी की आँख की
किरकिरी मैं क्यों बनूंगी,
मैं
"राधा" नहीं बनूँगी।

मै
"सीता" नहीं बनूँगी,
मै अपनी पवित्रता का,
प्रमाणपत्र नहीं दूँगी,
आग पे नहीं चलूंगी
वो क्या मुझे छोड़ देगा-
मै ही उसे छोड़ दूँगी,
मै
"सीता" नहीं बनूँगी,,

ना मैं
"मीरा" ही बनूंगी,
किसी मूरत के मोह मे,
घर संसार त्याग कर,
साधुओं के संग फिरूं
एक तारा हाथ लेकर,
छोड़ ज़िम्मेदारियाँ-
मैं नहीं
"मीरा" बनूंगी।

"यशोधरा" मैं नहीं बनूंगी
छोड़कर जो चला गया
कर्तव्य सारे त्यागकर
ख़ुद भगवान बन गया,
ज्ञान कितना ही पा गया,
ऐसे पति के लिये
मै पतिव्रता नहीं बनूंगी,

"यशोधरा" मैं नहीं बनूंगी।

"उर्मिला" भी नहीं बनूँगी मैं
पत्नी के साथ का
जिसे न अहसास हो,
पत्नी की पीड़ा का ज़रा भी
जिसे ना आभास हो,
छोड़ वर्षों के लिये
भाई संग जो हो लिया-
मैं उसे नहीं वरूंगी

"उर्मिला" मैं नहीं बनूँगी।

मैं
"गाँधारी" नहीं बनूंगी,
नेत्रहीन पति की आँखे बनूंगी,,
अपनी आँखे मूंद लू
अंधेरों को चूम लू
ऐसा अर्थहीन त्याग
मै नहीं करूंगी,,
मेरी आँखो से वो देखे
ऐसे प्रयत्न करती रहूँगी,,
मैं
"गाँधारी" नहीं बनूँगी।

मै उसी के संग जियूंगी,
जिसको मन से वरूँगी,
पर उसकी ज़्यादती
मैं नहीं कभी संहूंगी
कर्तव्य सब निभाऊँगी
लेकिन,
बलिदान के नाम पर मैं यातना नहीं सहूँगी*
मैं
मैं हूँ,

और मैं ही रहुँगी

सभी महिलाओ को समर्पित

FB_IMG_1726816198367.jpg
 
एक बेहद खूबसूरत कविता मिली,
लेखिका का नाम पता नहीं चला।
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मैं,

मैं हूँ ,
मैं ही रहूँगी।
मै
"राधा" नहीं बनूंगी,
मेरी प्रेम कहानी में,,,
किसी और का पति हो,
रुक्मिनी की आँख की
किरकिरी मैं क्यों बनूंगी,
मैं
"राधा" नहीं बनूँगी।

मै
"सीता" नहीं बनूँगी,
मै अपनी पवित्रता का,
प्रमाणपत्र नहीं दूँगी,
आग पे नहीं चलूंगी
वो क्या मुझे छोड़ देगा-
मै ही उसे छोड़ दूँगी,
मै
"सीता" नहीं बनूँगी,,

ना मैं
"मीरा" ही बनूंगी,
किसी मूरत के मोह मे,
घर संसार त्याग कर,
साधुओं के संग फिरूं
एक तारा हाथ लेकर,
छोड़ ज़िम्मेदारियाँ-
मैं नहीं
"मीरा" बनूंगी।

"यशोधरा" मैं नहीं बनूंगी
छोड़कर जो चला गया
कर्तव्य सारे त्यागकर
ख़ुद भगवान बन गया,
ज्ञान कितना ही पा गया,
ऐसे पति के लिये
मै पतिव्रता नहीं बनूंगी,

"यशोधरा" मैं नहीं बनूंगी।

"उर्मिला" भी नहीं बनूँगी मैं
पत्नी के साथ का
जिसे न अहसास हो,
पत्नी की पीड़ा का ज़रा भी
जिसे ना आभास हो,
छोड़ वर्षों के लिये
भाई संग जो हो लिया-
मैं उसे नहीं वरूंगी

"उर्मिला" मैं नहीं बनूँगी।

मैं
"गाँधारी" नहीं बनूंगी,
नेत्रहीन पति की आँखे बनूंगी,,
अपनी आँखे मूंद लू
अंधेरों को चूम लू
ऐसा अर्थहीन त्याग
मै नहीं करूंगी,,
मेरी आँखो से वो देखे
ऐसे प्रयत्न करती रहूँगी,,
मैं
"गाँधारी" नहीं बनूँगी।

मै उसी के संग जियूंगी,
जिसको मन से वरूँगी,
पर उसकी ज़्यादती
मैं नहीं कभी संहूंगी
कर्तव्य सब निभाऊँगी
लेकिन,
बलिदान के नाम पर मैं यातना नहीं सहूँगी*
मैं
मैं हूँ,

और मैं ही रहुँगी

सभी महिलाओ को समर्पित

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एक बेहद खूबसूरत कविता मिली,
लेखिका का नाम पता नहीं चला।
एक बार जरूर पढ़ें...

मैं,

मैं हूँ ,
मैं ही रहूँगी।
मै
"राधा" नहीं बनूंगी,
मेरी प्रेम कहानी में,,,
किसी और का पति हो,
रुक्मिनी की आँख की
किरकिरी मैं क्यों बनूंगी,
मैं
"राधा" नहीं बनूँगी।

मै
"सीता" नहीं बनूँगी,
मै अपनी पवित्रता का,
प्रमाणपत्र नहीं दूँगी,
आग पे नहीं चलूंगी
वो क्या मुझे छोड़ देगा-
मै ही उसे छोड़ दूँगी,
मै
"सीता" नहीं बनूँगी,,

ना मैं
"मीरा" ही बनूंगी,
किसी मूरत के मोह मे,
घर संसार त्याग कर,
साधुओं के संग फिरूं
एक तारा हाथ लेकर,
छोड़ ज़िम्मेदारियाँ-
मैं नहीं
"मीरा" बनूंगी।

"यशोधरा" मैं नहीं बनूंगी
छोड़कर जो चला गया
कर्तव्य सारे त्यागकर
ख़ुद भगवान बन गया,
ज्ञान कितना ही पा गया,
ऐसे पति के लिये
मै पतिव्रता नहीं बनूंगी,

"यशोधरा" मैं नहीं बनूंगी।

"उर्मिला" भी नहीं बनूँगी मैं
पत्नी के साथ का
जिसे न अहसास हो,
पत्नी की पीड़ा का ज़रा भी
जिसे ना आभास हो,
छोड़ वर्षों के लिये
भाई संग जो हो लिया-
मैं उसे नहीं वरूंगी

"उर्मिला" मैं नहीं बनूँगी।

मैं
"गाँधारी" नहीं बनूंगी,
नेत्रहीन पति की आँखे बनूंगी,,
अपनी आँखे मूंद लू
अंधेरों को चूम लू
ऐसा अर्थहीन त्याग
मै नहीं करूंगी,,
मेरी आँखो से वो देखे
ऐसे प्रयत्न करती रहूँगी,,
मैं
"गाँधारी" नहीं बनूँगी।

मै उसी के संग जियूंगी,
जिसको मन से वरूँगी,
पर उसकी ज़्यादती
मैं नहीं कभी संहूंगी
कर्तव्य सब निभाऊँगी
लेकिन,
बलिदान के नाम पर मैं यातना नहीं सहूँगी*
मैं
मैं हूँ,

और मैं ही रहुँगी

सभी महिलाओ को समर्पित

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Wow simply superb:heart1:
 
एक बेहद खूबसूरत कविता मिली,
लेखिका का नाम पता नहीं चला।
एक बार जरूर पढ़ें...

मैं,

मैं हूँ ,
मैं ही रहूँगी।
मै
"राधा" नहीं बनूंगी,
मेरी प्रेम कहानी में,,,
किसी और का पति हो,
रुक्मिनी की आँख की
किरकिरी मैं क्यों बनूंगी,
मैं
"राधा" नहीं बनूँगी।

मै
"सीता" नहीं बनूँगी,
मै अपनी पवित्रता का,
प्रमाणपत्र नहीं दूँगी,
आग पे नहीं चलूंगी
वो क्या मुझे छोड़ देगा-
मै ही उसे छोड़ दूँगी,
मै
"सीता" नहीं बनूँगी,,

ना मैं
"मीरा" ही बनूंगी,
किसी मूरत के मोह मे,
घर संसार त्याग कर,
साधुओं के संग फिरूं
एक तारा हाथ लेकर,
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मैं नहीं
"मीरा" बनूंगी।

"यशोधरा" मैं नहीं बनूंगी
छोड़कर जो चला गया
कर्तव्य सारे त्यागकर
ख़ुद भगवान बन गया,
ज्ञान कितना ही पा गया,
ऐसे पति के लिये
मै पतिव्रता नहीं बनूंगी,

"यशोधरा" मैं नहीं बनूंगी।

"उर्मिला" भी नहीं बनूँगी मैं
पत्नी के साथ का
जिसे न अहसास हो,
पत्नी की पीड़ा का ज़रा भी
जिसे ना आभास हो,
छोड़ वर्षों के लिये
भाई संग जो हो लिया-
मैं उसे नहीं वरूंगी

"उर्मिला" मैं नहीं बनूँगी।

मैं
"गाँधारी" नहीं बनूंगी,
नेत्रहीन पति की आँखे बनूंगी,,
अपनी आँखे मूंद लू
अंधेरों को चूम लू
ऐसा अर्थहीन त्याग
मै नहीं करूंगी,,
मेरी आँखो से वो देखे
ऐसे प्रयत्न करती रहूँगी,,
मैं
"गाँधारी" नहीं बनूँगी।

मै उसी के संग जियूंगी,
जिसको मन से वरूँगी,
पर उसकी ज़्यादती
मैं नहीं कभी संहूंगी
कर्तव्य सब निभाऊँगी
लेकिन,
बलिदान के नाम पर मैं यातना नहीं सहूँगी*
मैं
मैं हूँ,

और मैं ही रहुँगी

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bahot hi khub kavita :happy1:
 
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