किसको आती है मसीहाई किसे आवाज़ दूँ,
बोल ऐ ख़ूंख़ार तन्हाई किसे आवाज़ दूँ ।
चुप रहूँ तो हर नफ़स ड़सता है नागन कि तरह,
आह भरने में है रूसवाई किसे आवाज़ दूँ ।
उफ़ ख़ामोशी की ये आहें दिल को बरमाती हुई,
उफ़ ये सन्नाटे की शहनाई किसे आवाज़ दूँ ।
बोल ऐ ख़ूंख़ार तन्हाई किसे आवाज़ दूँ ।
चुप रहूँ तो हर नफ़स ड़सता है नागन कि तरह,
आह भरने में है रूसवाई किसे आवाज़ दूँ ।
उफ़ ख़ामोशी की ये आहें दिल को बरमाती हुई,
उफ़ ये सन्नाटे की शहनाई किसे आवाज़ दूँ ।