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बेशर्मी वाली रात

criss cross

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बेशर्मी वाली रात में ,
ना जाने कितनी बार हुआ ,
गिन - गिन के दम निकल गया ,
जब इश्क उनके साथ हुआ |

कभी हौले से वो मुस्कुराये ,
कभी मदहोशी में हम घबराये ,
वो धीरे - धीरे करते गए ,

हमे बाद में सब ज्ञात हुआ |

पहले दर्द हुआ थोड़ा मीठा ,
फिर दर्द हुआ कयामत तक ,
फिर आदत सी होने लगी ,
जब घर्षण उनके साथ हुआ |

कई बार सुनी कानों में चीख ,
कई बार सहती रही आपबीत ,
वो पहली रात का था मधुर गीत ,

जब उनपर पूरा ऐतबार हुआ |

वासनाओं के छोर में जब ,

हम पूरी तरह लिपट से गए ,
तब रात भी बेशर्म होती गई ,

गिनतियों का पर्दाफाश हुआ
 
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बेशर्मी वाली रात में ,
ना जाने कितनी बार हुआ ,
गिन - गिन के दम निकल गया ,
जब इश्क उनके साथ हुआ |

कभी हौले से वो मुस्कुराये ,
कभी मदहोशी में हम घबराये ,
वो धीरे - धीरे करते गए ,

हमे बाद में सब ज्ञात हुआ |

पहले दर्द हुआ थोड़ा मीठा ,
फिर दर्द हुआ कयामत तक ,
फिर आदत सी होने लगी ,
जब घर्षण उनके साथ हुआ |

कई बार सुनी कानों में चीख ,
कई बार सहती रही आपबीत ,
वो पहली रात का था मधुर गीत ,

जब उनपर पूरा ऐतबार हुआ |

वासनाओं के छोर में जब ,

हम पूरी तरह लिपट से गए ,
तब रात भी बेशर्म होती गई ,

गिनतियों का पर्दाफाश हुआ
बहुत ही खूबसूरत :heart1:

तनिक वासनामय भी:giggle:

किंतु, अप्रतिम अनुभूति:clapping:
 
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बेशर्मी वाली रात में ,
ना जाने कितनी बार हुआ ,
गिन - गिन के दम निकल गया ,
जब इश्क उनके साथ हुआ |

कभी हौले से वो मुस्कुराये ,
कभी मदहोशी में हम घबराये ,
वो धीरे - धीरे करते गए ,

हमे बाद में सब ज्ञात हुआ |

पहले दर्द हुआ थोड़ा मीठा ,
फिर दर्द हुआ कयामत तक ,
फिर आदत सी होने लगी ,
जब घर्षण उनके साथ हुआ |

कई बार सुनी कानों में चीख ,
कई बार सहती रही आपबीत ,
वो पहली रात का था मधुर गीत ,

जब उनपर पूरा ऐतबार हुआ |

वासनाओं के छोर में जब ,

हम पूरी तरह लिपट से गए ,
तब रात भी बेशर्म होती गई ,

गिनतियों का पर्दाफाश हुआ

मन में बसने की कामना है प्रेम,
तन को पाने की लालसा है वासना,
कौन कहता है प्रेम की ख़ातिर
जरूरी होती है मन में वासना?

बिन छुए, हुआ कोमल स्पर्श है प्रेम,
दो ज़िस्मों का मिलन है वासना,
प्रेमी के सम्मान को मान देता प्रेम,
हर मर्यादा को लाँघती है वासना।

है श्रृंगार में है सादगी में भी प्रेम,
आकर्षित करती चपल चेष्टाएं हैं वासना,
सच्चे मन, अच्छे आचरण से होता प्रेम
शारिरिक बनावट निहारती है वासना।

मन की उद्विग्नता को शांत करता है प्रेम,
शारीरिक क्षुधा मात्र मिटाती है वासना,
परत-दर-परत मन को खोलता है प्रेम,
निर्वस्त्र करने को रहती लालायित वासना।

प्रेम में तन-मन का एकीकृत हो जाना
एकदूजे के प्रति पूर्ण समर्पित हो जाना
हाँ, ये भी होता है परस्पर प्रेम दर्शाना,
लेकिन इससे पूर्णतः भिन्न होती है वासना।

हाँ माना, 'काम' है प्रेम का भी एक अंग,
पर बिन वासना प्रेम होता नहीं भंग,
हो जहाँ वासना, प्रेम भी हो जरूरी नहीं,
प्रेम हो अगर पावन, वहाँ निराधार है वासना।

पूज्य बना देता है हद से बढ़कर प्रेम,
दानव बना देती है, बढ़ जाए जो वासना,
प्रेम ईश्वर-स्वरूप, वासना है मन का रोग
कौन कहता है पूरक हैं प्रेम और वासना?
 
मन में बसने की कामना है प्रेम,
तन को पाने की लालसा है वासना,
कौन कहता है प्रेम की ख़ातिर
जरूरी होती है मन में वासना?

बिन छुए, हुआ कोमल स्पर्श है प्रेम,
दो ज़िस्मों का मिलन है वासना,
प्रेमी के सम्मान को मान देता प्रेम,
हर मर्यादा को लाँघती है वासना।

है श्रृंगार में है सादगी में भी प्रेम,
आकर्षित करती चपल चेष्टाएं हैं वासना,
सच्चे मन, अच्छे आचरण से होता प्रेम
शारिरिक बनावट निहारती है वासना।

मन की उद्विग्नता को शांत करता है प्रेम,
शारीरिक क्षुधा मात्र मिटाती है वासना,
परत-दर-परत मन को खोलता है प्रेम,
निर्वस्त्र करने को रहती लालायित वासना।

प्रेम में तन-मन का एकीकृत हो जाना
एकदूजे के प्रति पूर्ण समर्पित हो जाना
हाँ, ये भी होता है परस्पर प्रेम दर्शाना,
लेकिन इससे पूर्णतः भिन्न होती है वासना।

हाँ माना, 'काम' है प्रेम का भी एक अंग,
पर बिन वासना प्रेम होता नहीं भंग,
हो जहाँ वासना, प्रेम भी हो जरूरी नहीं,
प्रेम हो अगर पावन, वहाँ निराधार है वासना।

पूज्य बना देता है हद से बढ़कर प्रेम,
दानव बना देती है, बढ़ जाए जो वासना,
प्रेम ईश्वर-स्वरूप, वासना है मन का रोग
कौन कहता है पूरक हैं प्रेम और वासना?
Woh bhai superb :clapping:
 
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बेशर्मी वाली रात में ,
ना जाने कितनी बार हुआ ,
गिन - गिन के दम निकल गया ,
जब इश्क उनके साथ हुआ |

कभी हौले से वो मुस्कुराये ,
कभी मदहोशी में हम घबराये ,
वो धीरे - धीरे करते गए ,

हमे बाद में सब ज्ञात हुआ |

पहले दर्द हुआ थोड़ा मीठा ,
फिर दर्द हुआ कयामत तक ,
फिर आदत सी होने लगी ,
जब घर्षण उनके साथ हुआ |

कई बार सुनी कानों में चीख ,
कई बार सहती रही आपबीत ,
वो पहली रात का था मधुर गीत ,

जब उनपर पूरा ऐतबार हुआ |

वासनाओं के छोर में जब ,

हम पूरी तरह लिपट से गए ,
तब रात भी बेशर्म होती गई ,

गिनतियों का पर्दाफाश हुआ
धीमें कदम
कब आयें सनम
छूआ बदन।

पहली रात
प्रियतम के साथ
होले से बात।

गोरा बदन
ललचाए सजन
तोड़ी शरम

चला सफर
अधरों पर अधर
प्रेम नगर।

धड़के मन
मोहे आएं शरम
रूठे सजन।

टूटे ये अंग
नई-नई उमंग
पीया के संग।

मन कि आस
बरसे जो बादल
मिटें ये प्यास।

हो के मगन
मिलें धरा गगन
बुझी अगन।
 
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