अब तो अपने ही अपनों को, बेगाना समझते हैं
सिर्फ अपने घर को ही सारा, जमाना समझते हैं
भुला डाली है लोगों ने, परिभाषा अपनेपन की
वो खून के रिश्तों को केवल, फ़साना समझते हैं
भले ही मतलब के वास्ते, बहा लें दो चार आंसू
वरना मौत की खबर को भी, बहाना समझते हैं
अब तो इतना गिर चुके हैं लोग, अपने ईमान से
कि औरों के माल को अपना, खज़ाना समझते हैं
अब न किसी को भी परवाह, कानून के पेचों की
शातिर तो अब जेलों को, आशियाना समझते हैं
मसला तो सिर्फ जज़्बों का, अहसासों का है यारो
लोग वरना तो गुफ़्तगू को ढर्रा, पुराना समझते हैं
बड़े खुदगर्ज़ हैं लोग, इस बेरहम ज़माने के ' युग '
सभी को अपने तीरों के वास्ते, निशाना समझते हैं।।
सिर्फ अपने घर को ही सारा, जमाना समझते हैं
भुला डाली है लोगों ने, परिभाषा अपनेपन की
वो खून के रिश्तों को केवल, फ़साना समझते हैं
भले ही मतलब के वास्ते, बहा लें दो चार आंसू
वरना मौत की खबर को भी, बहाना समझते हैं
अब तो इतना गिर चुके हैं लोग, अपने ईमान से
कि औरों के माल को अपना, खज़ाना समझते हैं
अब न किसी को भी परवाह, कानून के पेचों की
शातिर तो अब जेलों को, आशियाना समझते हैं
मसला तो सिर्फ जज़्बों का, अहसासों का है यारो
लोग वरना तो गुफ़्तगू को ढर्रा, पुराना समझते हैं
बड़े खुदगर्ज़ हैं लोग, इस बेरहम ज़माने के ' युग '
सभी को अपने तीरों के वास्ते, निशाना समझते हैं।।