अपनी मर्जी से कहाँ अपने सफ़र के हम हैं
रुख़ हवाओं का जिधर का है उधर के हम हैं
ख़ुशी से खिला रहता है फूल, उसके चारो तरफ होते है शूल
Phool khile hi nahi ki sukh gaye.
Woh hamse mile hi nahi ki ruth gaye.
Hum jaagte rahe, duniya soti rahi.
Ek baarish hi thi jo hamaare sath roti rahi
तुम कहे भी नहीं की हम तुम्हारे हैं सनमबिछडे़ भी नही , मिले भी नही ,
अजीब फूल थे ,खिले भी नही !!