नामों में बँधकर, यह ठहर नहीं सकता,
शब्दों के जाल में, यह उतर नहीं सकता।
निर्विकार, निःशब्द, बस बहता सा एक एहसास,
जो दिखे-सुने, वह प्रेम का प्रकाश नहीं पास।
न रंग, न रूप, न कोई पहचाना चेहरा,
ना सीमाओं में बँधा, ना कोई बंधन गहरा।
जहाँ विचार थमे, वहीं यह खिलता,
शांत मन में, जैसे चाँदनी सा गिरता।
यह न अपना, न पराया, न कोई सौदा,
ना प्रश्न, ना उत्तर, ना कोई दौड़ा।
जहाँ "मैं" मिटे और "तू" खो जाए,
वहीं प्रेम अपनी राह स्वयं बनाए।
ना चाहत, ना भय, ना कोई अभिलाषा,
बस मौन की भाषा, निर्मलतम आशा।
हवा की तरह, यह सबको छू जाता,
पर किसी के भी हाथ कभी न आता।
जिसे बाँधा, वह प्रेम हो नहीं सकता,
जिसे कहा, वह सत्य हो नहीं सकता।
यह तो बस एक अनकही रीत है,
जहाँ चुप्पी में बसती अनंत प्रीत है।
शब्दों के जाल में, यह उतर नहीं सकता।
निर्विकार, निःशब्द, बस बहता सा एक एहसास,
जो दिखे-सुने, वह प्रेम का प्रकाश नहीं पास।
न रंग, न रूप, न कोई पहचाना चेहरा,
ना सीमाओं में बँधा, ना कोई बंधन गहरा।
जहाँ विचार थमे, वहीं यह खिलता,
शांत मन में, जैसे चाँदनी सा गिरता।
यह न अपना, न पराया, न कोई सौदा,
ना प्रश्न, ना उत्तर, ना कोई दौड़ा।
जहाँ "मैं" मिटे और "तू" खो जाए,
वहीं प्रेम अपनी राह स्वयं बनाए।
ना चाहत, ना भय, ना कोई अभिलाषा,
बस मौन की भाषा, निर्मलतम आशा।
हवा की तरह, यह सबको छू जाता,
पर किसी के भी हाथ कभी न आता।
जिसे बाँधा, वह प्रेम हो नहीं सकता,
जिसे कहा, वह सत्य हो नहीं सकता।
यह तो बस एक अनकही रीत है,
जहाँ चुप्पी में बसती अनंत प्रीत है।