पर क्यों! अब ओर सहना हैं
अल्फाज़ मैं ख्वाहिश का बयान ना हो रहा था, यह दूरी-ए-मोहब्बत अब ओर हमसे साहा नहीं जा रहा था, उसके दिए हर एक चीजों को संभाल के रखा है मैंने, पर क्यों! इन चीज़ों से लगाव अब छूट नहीं रहा था।
इश्क के बाज़ार मैं अब जज्बातों का मुईना हो रहा था, हर एक लफ्जों मैं अब ईश्क-ए-सबूत मुझसे मांगा जा रहा था, अब हाथ छुटा तो हर कोई खुश हो रहा है, पर क्यों! इन फसलों मैं यह प्यार बढ़े ही जा रहा था।
आंखो मैं नामी और बिखरे हुए हम अब खास लग रहा था, नई चुनौतियों मैं प्यार सच्च के कगार में खड़ा हो रहा था, अब इस ज़ख्म को हमने ऐसे ही छोड़ना ठिक समझा, पर क्यों! यह दिल अब भी समझदारी नहीं दिखा रहा था।
माना यार नहीं हम पर यह दोस्ती भी संभाला नहीं जा रहा था, फिर से वो जज़्बात पैदा ना हो यह डर हमें सता रहा था, ईश्क किया है तभी तो यह सब सहना पड़ रहा है, पर क्यों! एक तरफ़ प्यार अब हमें खोखला कर रहा था।
अल्फाज़ मैं ख्वाहिश का बयान ना हो रहा था, यह दूरी-ए-मोहब्बत अब ओर हमसे साहा नहीं जा रहा था, उसके दिए हर एक चीजों को संभाल के रखा है मैंने, पर क्यों! इन चीज़ों से लगाव अब छूट नहीं रहा था।
इश्क के बाज़ार मैं अब जज्बातों का मुईना हो रहा था, हर एक लफ्जों मैं अब ईश्क-ए-सबूत मुझसे मांगा जा रहा था, अब हाथ छुटा तो हर कोई खुश हो रहा है, पर क्यों! इन फसलों मैं यह प्यार बढ़े ही जा रहा था।
आंखो मैं नामी और बिखरे हुए हम अब खास लग रहा था, नई चुनौतियों मैं प्यार सच्च के कगार में खड़ा हो रहा था, अब इस ज़ख्म को हमने ऐसे ही छोड़ना ठिक समझा, पर क्यों! यह दिल अब भी समझदारी नहीं दिखा रहा था।
माना यार नहीं हम पर यह दोस्ती भी संभाला नहीं जा रहा था, फिर से वो जज़्बात पैदा ना हो यह डर हमें सता रहा था, ईश्क किया है तभी तो यह सब सहना पड़ रहा है, पर क्यों! एक तरफ़ प्यार अब हमें खोखला कर रहा था।