Siddhantrt
Epic Legend
माँ की लोरियों के बुलावे पर
झट से आ जाती थी
कभी थोड़ी भी मशक्कत कर
थक जाता, तो आ जाती थी
दिन भर दौड़ भाग रात जब
बिस्तर पर ठहरता तो आ जाती थी
किताबों को ज़रा सा भी
इज्ज़त से ताक लेता तो आ जाती थी,
और अब,
ज़हन पर थकावट का
इश्तेहार चिपका, लाख तलाशता हूँ
पर न मिलती है
और न खुद आती है,
नींद ने, मेरे लिए,
पहले कभी खुद को
इतना गैर न समझा था.....!!
झट से आ जाती थी
कभी थोड़ी भी मशक्कत कर
थक जाता, तो आ जाती थी
दिन भर दौड़ भाग रात जब
बिस्तर पर ठहरता तो आ जाती थी
किताबों को ज़रा सा भी
इज्ज़त से ताक लेता तो आ जाती थी,
और अब,
ज़हन पर थकावट का
इश्तेहार चिपका, लाख तलाशता हूँ
पर न मिलती है
और न खुद आती है,
नींद ने, मेरे लिए,
पहले कभी खुद को
इतना गैर न समझा था.....!!