हैं अजनबी
पर मुझे थामते हैं
जैसे मज़हबी
किसी अनजान को ढालते हैं
जाने क्यूँ फिर भी
गुमराह होते इस दिल को
इनसे ही दोस्ती करनी है...
हैं करतबी
काली शाम से हैं
लगते मतलबी
कभी बेइमान से हैं
जाने क्यूँ फिर भी
लुटते हुए इस दिल को
इनसे ही दोस्ती करनी है...
हैं दिलनशीं
काबू करते जाम से हैं
हैं तरकशी
ले लेते जान से हैं
जाने क्यूँ फिर भी
घायल होते इस दिल को
इनसे ही दोस्ती करनी है...
तुम्हारे नयन...
हैं अजनबी
हैं मज़हबी
हैं करतबी
हैं मतलबी
हैं दिलनशीं
हैं तरकशी...
पर मुझे थामते हैं
जैसे मज़हबी
किसी अनजान को ढालते हैं
जाने क्यूँ फिर भी
गुमराह होते इस दिल को
इनसे ही दोस्ती करनी है...
हैं करतबी
काली शाम से हैं
लगते मतलबी
कभी बेइमान से हैं
जाने क्यूँ फिर भी
लुटते हुए इस दिल को
इनसे ही दोस्ती करनी है...
हैं दिलनशीं
काबू करते जाम से हैं
हैं तरकशी
ले लेते जान से हैं
जाने क्यूँ फिर भी
घायल होते इस दिल को
इनसे ही दोस्ती करनी है...
तुम्हारे नयन...
हैं अजनबी
हैं मज़हबी
हैं करतबी
हैं मतलबी
हैं दिलनशीं
हैं तरकशी...