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तुम्हारे नयन....

Siddhantrt

Epic Legend
हैं अजनबी
पर मुझे थामते हैं
जैसे मज़हबी
किसी अनजान को ढालते हैं
जाने क्यूँ फिर भी
गुमराह होते इस दिल को
इनसे ही दोस्ती करनी है...

हैं करतबी
काली शाम से हैं
लगते मतलबी
कभी बेइमान से हैं
जाने क्यूँ फिर भी
लुटते हुए इस दिल को
इनसे ही दोस्ती करनी है...

हैं दिलनशीं
काबू करते जाम से हैं
हैं तरकशी
ले लेते जान से हैं
जाने क्यूँ फिर भी
घायल होते इस दिल को
इनसे ही दोस्ती करनी है...

तुम्हारे नयन...
हैं अजनबी
हैं मज़हबी
हैं करतबी
हैं मतलबी
हैं दिलनशीं
हैं तरकशी...
 
N
हैं अजनबी
पर मुझे थामते हैं
जैसे मज़हबी
किसी अनजान को ढालते हैं
जाने क्यूँ फिर भी
गुमराह होते इस दिल को
इनसे ही दोस्ती करनी है...

हैं करतबी
काली शाम से हैं
लगते मतलबी
कभी बेइमान से हैं
जाने क्यूँ फिर भी
लुटते हुए इस दिल को
इनसे ही दोस्ती करनी है...

हैं दिलनशीं
काबू करते जाम से हैं
हैं तरकशी
ले लेते जान से हैं
जाने क्यूँ फिर भी
घायल होते इस दिल को
इनसे ही दोस्ती करनी है...

तुम्हारे नयन...
हैं अजनबी
हैं मज़हबी
हैं करतबी
हैं मतलबी
हैं दिलनशीं
हैं तरकशी...
Nice baba ji
 
तुम्हारे नील झील-से नैन,
नीर निर्झर-से लहरे केश।

तुम्हारे तन का रेखाकार
वही कमनीय, कलामय हाथ
कि जिसने रुचिर तुम्हारा देश
रचा गिरि-ताल-माल के साथ,
करों में लतरों का लचकाव,
करतलों में फूलों का वास,
तुम्हारे नील झील-से नैन,
नीर निर्झर-से लहरे केश।
उधर झुकती अरुनारी साँझ,
इधर उठता पूनो का चाँद,
सरों, शृंगों, झरनों पर फूट
पड़ा है किरनों का उन्माद,
तुम्हें अपनी बाँहों में देख
नहीं कर पाता मैं अनुमान,
प्रकृति में तुम बिंबित चहुँ ओर
कि तुममें बिंबित प्रकृति अशेष।

तुम्हारे नील झील-से नैन,
नीर झर्झर-से लहरे केश।

जगत है पाने को बेताब
नारि के मन की गहरी थाह—
किए थी चिंतित औ’ बेचैन
मुझे भी कुछ दिन ऐसी चाह—
मगर उसके तन का भी भेद
सका है कोई अब तक जान!
मुझे है अद्भुत एक रहस्य
तुम्हारी हर मुद्रा, हर वेश।

तुम्हारे नील झील-से नैन,
नीर निर्झर-से लहरे केश।
कहा मैंने, मुझको इस ओर
कहाँ फिर लाती है तक़दीर,
कहाँ तुम आती हो उस छोर
जहाँ है गंग-जमुन का तीर;
विहंगम बोला, युग के बाद
भाग से मिलती है अभिलाष;
और... अब उचित यहीं दूँ छोड़
कल्पना के ऊपर अवशेष।
तुम्हारे नील झील-से नैन,
नीर निर्झर-से लहरे केश।
मुझे यह मिट्टी अपना जान
किसी दिन कर लेगी लयमान,
तुम्हें भी कलि-कुसुमों के बीच
न कोई पाएगा पहचान,


मगर तब भी यह मेरा छंद
कि जिसमें एक हुआ है अंग
तुम्हारा औ’ मेरा अनुराग
रहेगा गाता मेरा देश।
तुम्हारे नील झील-से नैन,
नीर निर्झर-से लहरे केश।
 
हैं अजनबी
पर मुझे थामते हैं
जैसे मज़हबी
किसी अनजान को ढालते हैं
जाने क्यूँ फिर भी
गुमराह होते इस दिल को
इनसे ही दोस्ती करनी है...

हैं करतबी
काली शाम से हैं
लगते मतलबी
कभी बेइमान से हैं
जाने क्यूँ फिर भी
लुटते हुए इस दिल को
इनसे ही दोस्ती करनी है...

हैं दिलनशीं
काबू करते जाम से हैं
हैं तरकशी
ले लेते जान से हैं
जाने क्यूँ फिर भी
घायल होते इस दिल को
इनसे ही दोस्ती करनी है...

तुम्हारे नयन...
हैं अजनबी
हैं मज़हबी
हैं करतबी
हैं मतलबी
हैं दिलनशीं
हैं तरकशी...
Nice
 
कुछ पुरानी याद दिलाते हैं,
तुम्हारे नैन...

दिन में भी खुले तीर चलाते हैं,
तुम्हारे नैन...

सोचता हूँ इनमे गुम होकर निहारूँ तुम्हें,
लेकिन इनमे डूबता हूँ तो, बहुत सताते हैं,
तुम्हारे नैन...

जब कभी तुम्हारी तस्वीर देखता हूँ तो,
तस्वीर में अंदर बुलाते हैं,
तुम्हारे नैन...

जब में सोता नहीं हूँ तो,
प्यार से झूला झुलाते हैं,
तुम्हारे नैन...

जिंदगी से तंग आकर रोता हूँ ,
तो चुपाकर सुलाते हैं,
तुम्हारे नैन...

कभी मैं रूठ जाऊँ तो,
बड़े प्यार से मानते हैं,
तुम्हारे नैन...

तुम अगर कभी ना भी चाहो तो,
तुम्हें मुझसे मिलाते हैं,
तुम्हारे नैन...
 
हैं अजनबी
पर मुझे थामते हैं
जैसे मज़हबी
किसी अनजान को ढालते हैं
जाने क्यूँ फिर भी
गुमराह होते इस दिल को
इनसे ही दोस्ती करनी है...

हैं करतबी
काली शाम से हैं
लगते मतलबी
कभी बेइमान से हैं
जाने क्यूँ फिर भी
लुटते हुए इस दिल को
इनसे ही दोस्ती करनी है...

हैं दिलनशीं
काबू करते जाम से हैं
हैं तरकशी
ले लेते जान से हैं
जाने क्यूँ फिर भी
घायल होते इस दिल को
इनसे ही दोस्ती करनी है...

तुम्हारे नयन...
हैं अजनबी
हैं मज़हबी
हैं करतबी
हैं मतलबी
हैं दिलनशीं
हैं तरकशी...
Bhaut sundar kavita
 
कुछ पुरानी याद दिलाते हैं,
तुम्हारे नैन...

दिन में भी खुले तीर चलाते हैं,
तुम्हारे नैन...

सोचता हूँ इनमे गुम होकर निहारूँ तुम्हें,
लेकिन इनमे डूबता हूँ तो, बहुत सताते हैं,
तुम्हारे नैन...

जब कभी तुम्हारी तस्वीर देखता हूँ तो,
तस्वीर में अंदर बुलाते हैं,
तुम्हारे नैन...

जब में सोता नहीं हूँ तो,
प्यार से झूला झुलाते हैं,
तुम्हारे नैन...

जिंदगी से तंग आकर रोता हूँ ,
तो चुपाकर सुलाते हैं,
तुम्हारे नैन...

कभी मैं रूठ जाऊँ तो,
बड़े प्यार से मानते हैं,
तुम्हारे नैन...

तुम अगर कभी ना भी चाहो तो,
तुम्हें मुझसे मिलाते हैं,
तुम्हारे नैन...
Nice 20 20
 
कुछ पुरानी याद दिलाते हैं,
तुम्हारे नैन...

दिन में भी खुले तीर चलाते हैं,
तुम्हारे नैन...

सोचता हूँ इनमे गुम होकर निहारूँ तुम्हें,
लेकिन इनमे डूबता हूँ तो, बहुत सताते हैं,
तुम्हारे नैन...

जब कभी तुम्हारी तस्वीर देखता हूँ तो,
तस्वीर में अंदर बुलाते हैं,
तुम्हारे नैन...

जब में सोता नहीं हूँ तो,
प्यार से झूला झुलाते हैं,
तुम्हारे नैन...

जिंदगी से तंग आकर रोता हूँ ,
तो चुपाकर सुलाते हैं,
तुम्हारे नैन...

कभी मैं रूठ जाऊँ तो,
बड़े प्यार से मानते हैं,
तुम्हारे नैन...

तुम अगर कभी ना भी चाहो तो,
तुम्हें मुझसे मिलाते हैं,
तुम्हारे नैन...
:clapping:
 

बड़े-बड़े दो नयन तुम्हारे
चंदा-सूरज, साँझ-सकारे

मधु के सागर भरे-भरे से
मछली जैसे डरे-डरे से
या सावन के घन कजरारे

कमल खिले दो नीले जल में
या दो मृगछौने जंगल में
या मन के दो सपने प्यारे

मीरा की नूपुर ध्वनि जैसे
मोहन की मुरली गुँजन से
सम्मोहन के स्वर रतनारे

जिसे निहारें वश में कर लें
धन्य भाग्य हों जिसको वर लें

ऐसे हैं बेचूक इशारे ।
 
बड़े-बड़े दो नयन तुम्हारे
चंदा-सूरज, साँझ-सकारे

मधु के सागर भरे-भरे से
मछली जैसे डरे-डरे से
या सावन के घन कजरारे

कमल खिले दो नीले जल में
या दो मृगछौने जंगल में
या मन के दो सपने प्यारे

मीरा की नूपुर ध्वनि जैसे
मोहन की मुरली गुँजन से
सम्मोहन के स्वर रतनारे

जिसे निहारें वश में कर लें
धन्य भाग्य हों जिसको वर लें

ऐसे हैं बेचूक इशारे ।
Wowwwww
 
हैं अजनबी
पर मुझे थामते हैं
जैसे मज़हबी
किसी अनजान को ढालते हैं
जाने क्यूँ फिर भी
गुमराह होते इस दिल को
इनसे ही दोस्ती करनी है...

हैं करतबी
काली शाम से हैं
लगते मतलबी
कभी बेइमान से हैं
जाने क्यूँ फिर भी
लुटते हुए इस दिल को
इनसे ही दोस्ती करनी है...

हैं दिलनशीं
काबू करते जाम से हैं
हैं तरकशी
ले लेते जान से हैं
जाने क्यूँ फिर भी
घायल होते इस दिल को
इनसे ही दोस्ती करनी है...

तुम्हारे नयन...
हैं अजनबी
हैं मज़हबी
हैं करतबी
हैं मतलबी
हैं दिलनशीं
हैं तरकशी...
Wha wha Gajab
 
हैं अजनबी
पर मुझे थामते हैं
जैसे मज़हबी
किसी अनजान को ढालते हैं
जाने क्यूँ फिर भी
गुमराह होते इस दिल को
इनसे ही दोस्ती करनी है...

हैं करतबी
काली शाम से हैं
लगते मतलबी
कभी बेइमान से हैं
जाने क्यूँ फिर भी
लुटते हुए इस दिल को
इनसे ही दोस्ती करनी है...

हैं दिलनशीं
काबू करते जाम से हैं
हैं तरकशी
ले लेते जान से हैं
जाने क्यूँ फिर भी
घायल होते इस दिल को
इनसे ही दोस्ती करनी है...

तुम्हारे नयन...
हैं अजनबी
हैं मज़हबी
हैं करतबी
हैं मतलबी
हैं दिलनशीं
हैं तरकशी...
उस घड़ी देखो उनका आलम
नींद से जब हों बोझल आँखें,
कौन मेरी नजर में समाये
देखी हैं मैंने तुम्हारी आँखें।
 
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