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टूट के कही बिखर जाऊं...

sssingh

✨The Sanskari Shayari on ZoZo✨
Senior's
Chat Pro User
Chat Moderator
इसे पहले की मैं टूट के कहीं
बिखर न जाऊं,

बिन कहे ही तुझसे कुछ
मैं कहींं चुप न हो जाऊं,

आ जाओ मिलने एक बार ही सही
कि शायद ऐसा हो कि फिर
मै कहीं संभल ही जाऊं

उलझी हूँ आज भी न जाने क्यूँ
तुझमे ही कहीं

आके फिर मेरी ये उलझी जुल्फाेेें को
संवार जाओ न फिर सही

किसको बताऊं
किसको सुनाऊं,
किसको जताऊं,

कैसे मैैैं ये ज़िन्दगी बिताऊँ

क्या गुज़री थी कभी???
क्या गुजरी है अभी???

क्या गुजरती ही रहेगी???

अपने दिल का जख्म
मै कैसे अब भर पाऊं

जो बीती दिल पे पिछले सालों
वो आबिती मै किसको बताऊँ

आ जाओ मिलने इक बार ही सही,
की शायद आगे अब और न
मिल पाऊं कभी

बिछड़े हो तुम जबसे,
रूठा है दिल तबसे,

तेरी हर एक एक बीती
यादों के सहारे ही,

जीती हूँ मै कबसे

इससे पहले की ये मेरी जिंदगी भी रूठ जाए
सारे रिश्ते फिर मुझसे कही छुट जाए ,

बिछड़ जाए मुझसे ये सारे गम

किसी न किसी बहाने से ही सही अब
तो आ जाओ,
तुम मुझसे मिलने कही

नहीं मांगती मै,
अपनी वफाओ का सिला

नही करती मै
अपने दर्द का गिला

मेरी महोब्बत और मै
गुज़र आये है उस महोब्बत के
ज़माने से दूर कही

न मै देती हूँ उन वादों को निभाने का
तुझपे जोर कोई

न मै ये कहती हूं कि तू मुकर गया
वादे न जाने कितने करके कोई

आ जाओ मिलने इक बार ही सही
वो बीते कल से,निकल आओ एक बार ही सही

मै टूटी हूँ आज भी मगर अब भी
बस एक तेरी ही ख्वाहिश रखी हूँ कही

इससे पहली की टूट के फिर से बिखर जाऊं मै कही
बिन तुझसे कुछ कहे ही मै, चुप हो जाऊ,

आ जाओ मिलने एक बार ही सही,
कि शायद फिर मै संभलते संभलते
संभल ही जाऊं कही...!!!
#टूट के कही बिखर जाऊं
 
इसे पहले की मैं टूट के कहीं
बिखर न जाऊं,

बिन कहे ही तुझसे कुछ
मैं कहींं चुप न हो जाऊं,

आ जाओ मिलने एक बार ही सही
कि शायद ऐसा हो कि फिर
मै कहीं संभल ही जाऊं

उलझी हूँ आज भी न जाने क्यूँ
तुझमे ही कहीं

आके फिर मेरी ये उलझी जुल्फाेेें को
संवार जाओ न फिर सही

किसको बताऊं
किसको सुनाऊं,
किसको जताऊं,

कैसे मैैैं ये ज़िन्दगी बिताऊँ

क्या गुज़री थी कभी???
क्या गुजरी है अभी???

क्या गुजरती ही रहेगी???

अपने दिल का जख्म
मै कैसे अब भर पाऊं

जो बीती दिल पे पिछले सालों
वो आबिती मै किसको बताऊँ

आ जाओ मिलने इक बार ही सही,
की शायद आगे अब और न
मिल पाऊं कभी

बिछड़े हो तुम जबसे,
रूठा है दिल तबसे,

तेरी हर एक एक बीती
यादों के सहारे ही,

जीती हूँ मै कबसे

इससे पहले की ये मेरी जिंदगी भी रूठ जाए
सारे रिश्ते फिर मुझसे कही छुट जाए ,

बिछड़ जाए मुझसे ये सारे गम

किसी न किसी बहाने से ही सही अब
तो आ जाओ,
तुम मुझसे मिलने कही

नहीं मांगती मै,
अपनी वफाओ का सिला

नही करती मै
अपने दर्द का गिला

मेरी महोब्बत और मै
गुज़र आये है उस महोब्बत के
ज़माने से दूर कही

न मै देती हूँ उन वादों को निभाने का
तुझपे जोर कोई

न मै ये कहती हूं कि तू मुकर गया
वादे न जाने कितने करके कोई

आ जाओ मिलने इक बार ही सही
वो बीते कल से,निकल आओ एक बार ही सही

मै टूटी हूँ आज भी मगर अब भी
बस एक तेरी ही ख्वाहिश रखी हूँ कही

इससे पहली की टूट के फिर से बिखर जाऊं मै कही
बिन तुझसे कुछ कहे ही मै, चुप हो जाऊ,

आ जाओ मिलने एक बार ही सही,
कि शायद फिर मै संभलते संभलते
संभल ही जाऊं कही...!!!
#टूट के कही बिखर जाऊं
Very nice poem...all the verses are very beautiful....
 
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